-विद्युत नियामक आयोग ने लगाया ऊर्जा निगम के अफसरों पर जुर्माना

-वैकल्पिक ऊर्जा दायित्व निभाने में बरती लापरवाही, नियम भी तोड़े

देहरादून: विद्युत नियामक आयोग ने काम में लापरवाही बरतने और नियमों को ठेंगा दिखाने वाले ऊर्जा निगम के मैनेजिंग डायरेक्टर एसएस यादव समेत निगम के 4 अन्य अधिकारियों पर हजारों रुपये का जुर्माना ठोका है। एमडी एसएस यादव पर 50 हजार का जुर्माना लगाया गया है। इसके अलावा फाइनेंस डायरेक्टर एमए खान पर 30 हजार, चीफ इंजीनियर एके सिंह पर 20 हजार, इंजीनियर सुनील वैद्य पर 10 हजार और एक्जीक्यूटिव इंजीनियर प्रवेश कुमार पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया है। नियामक आयोग ने आदेश दिया है कि सभी अफसर जुर्माने की राशि एक महीने के अंदर जमा कर दें। नहीं तो दो हजार रुपये के रोजाना के हिसाब से पेनाल्टी भी ठोकी जाएगी। आयोग ने वैकल्पिक ऊर्जा दायित्व निभाने में लापरवाही बरतने और नियमों की अनदेखी के मामले में ये कार्रवाई की है। साथ ही आयोग ने आदेश दिया है कि जो दायित्व पूर्व में दिए गए थे उनको 31 अक्टूबर तक हर हाल में पूरा करें।

निगम ने नहीं दी थी रिपोर्ट

उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग (यूईआरसी) के सचिव नीरज सती ने बताया कि रेगुलेशन के अनुसार यूपीसीएल को वर्ष 2015-16 में कुल बिजली खपत की 8 फीसदी बिजली वैकल्पिक ऊर्जा से लेनी थी। आरपीओ को पूरा करने में 700 मिलियन यूनिट की कमी रह गई थी। निगम ने आयोग में याचिका दायर कर कहा कि गत वर्ष का शेष इस वर्ष पूरा कर लिया जाएगा। जून 2016 में नियामक आयोग ने सुनवाई के बाद ऊर्जा निगम को 31 जुलाई तक 700 एमयू का 7.5 फीसद के रिन्यूवेबल एनर्जी सर्टिफिकेट खरीदने के आदेश दिए। यह सर्टिफिकेट एनर्जी एक्सचेंज से डेढ़ रुपये प्रति यूनिट की दर पर मिलते हैं, लेकिन निगम ने समय सीमा पूरी होने के बावजूद रिपोर्ट नहीं दी।

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जानबूझकर की गई लापरवाही!

आयोग ने निगम को कारण बताओ नोटिस जारी किया था, लेकिन निगम ने जवाब दिया कि भारत सरकार ने आरपीओ को कम करने का आदेश दिया है, इसलिए सर्टिफिकेट नहीं खरीदे गए। इसके बाद ही आयोग ने सख्ती दिखाई। बुधवार को आयोग ने अपने आदेश में कहा कि भारत सरकार के आदेश के अनुसार में 400 एमयू की कमी रहेगी। वहीं, आरपीओ में संशोधन एक विधिक प्रक्रिया है। इसी के अनुसार आगामी वर्षो के लिए लक्ष्य तय किया जाएगा। वर्तमान में जो विनियम हैं, उसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता। आयोग ने कहा कि ऐसा लगता है कि आयोग के आदेशों का पालन जानबूझकर नहीं किया गया।