देहरादून ब्यूरो। घर में आग शाम करीब 4:30 बजे लगी। फायर स्टेशन मौके से सिर्फ आधा किमी की दूरी पर होने के बावजूद फायर ब्रिगेड की गाड़ी को मौके पर पहुंचने में आधा घंटे का वक्त लग गया। बताया जाता है कि गाड़ी मौके पर तो पहुंची, लेकिन फायर ब्रिगेड के कर्मचारी नोजल तक नहीं लगा पाये। स्थानीय लोगों की मदद लेकर किसी तरह नोजल लगाई गई। आग बुझाने का काम शुरू हुआ, लेकिन 2400 लीटर पानी की क्षमता वाली फायर ब्रिगेड का पानी 10 मिनट में ही खत्म हो गया। इसके बाद गाड़ी को पानी भरने ले जाना पड़ा।

5 घंटे तक धधकती रही आग
त्यूनी की फायर ब्रिगेड का पानी खत्म होने के बाद हिमाचल प्रदेश के जुब्बल और उत्तरकाशी के मोरी से फायर ब्रिगेड बुलवाई गई। दोनों जगहों से एक-एक फायर ब्रिगेड मौके पर पहुंची। इसके बाद ही आग बुझाने का काम शुरू हो पाया। इसके बाद तीनों फायर ब्रिगेड की गाडिय़ां करीब 5 घंटे बाद आग बुझा पाई। तब तक पूरा चार मंजिला मकान पूरी तरह से जल चुका था। बमुश्किल दो बच्चों के शव बरामद हुए। त्यूनी पुलिस के अनुसार मकान का ज्यादातर हिस्सा लकड़ी से बना होने के कारण आग तेजी से फैली और उसे काबू नहीं किया जा सका।

आग के आंकड़े चौंकाने वाले
उत्तराखंड में आग लगने से मरने वालों के आंकड़े बेहद चिन्ताजनक हैं। उत्तराखंड फायर ब्रिगेड की लापरवाही हालांकि इस विभाग की वेब साइट पर भी नजर आ जाती है। विभाग की वेबसाइट में राज्य में आग की घटनाओं के 2020 तक के ही आंकड़े उपलब्ध हैं। समझा जाता है कि ये आंकड़े आखिरी बार मई, 2020 में अपडेट किये गये थे। उसके बाद इसकी जरूरत नहीं समझी गई।

11 वर्षों में 2369 मौतें
फायर एंड इमरजेंसी सर्विसेज की वेबसाइट पर 2020 तक के ही आंकड़े मौजूद हैं। 2020 में 40 लोगों की मौत दर्ज की गई है। इस वेबसाइट पर दर्ज आंकड़े बताते हैं कि राज्य में 2010 से 2020 तक 11 वर्षों के दौरान आग से जलकर 2369 लोगों की मौत हुई। अन्य वर्षों के अपेक्षा 2020 में दर्ज घटनाओं और मृतकों की संख्या से पता चलता है कि इस वर्ष के भी आधे-अधूरे आंकड़े ही वेबसाइट पर दर्ज किये गये हैं।

वर्षवार आग की घटनाएं
वर्ष घटनाएं मौतें
2010 2367 179
2011 1771 254
2012 3513 249
2013 1956 223
2014 2087 279
2015 2215 277
2016 3187 218
2017 2570 327
2018 2994 200
2019 3014 123
2020 1910 40
स्रोत : उत्तराखंड फायर एंड इमरजेंसी सर्विसेज की वेब साइट

त्यूनी में पहले भी अग्निकांड
त्यूनी ने यह पहला मौका नहीं है, जब इस तरह का अग्निकांड हुआ है। इस बार आग केवल एक घर में लगी, लेकिन 2005 में पूरा कस्बा ही आग की चपेट में आ गया था। इस घटना के बाद त्यूनी खंडहर में तब्दील हो गया था। 2011 में एक बार फिर यहां आग लगी और इस बार भी काफी नुकसान हुआ। जानकारों का कहना है कि पूरे जौनसार क्षेत्र में मकान बनाने में लकड़ी का इस्तेमाल काफी ज्यादा होता है। इसलिए आग लग जाने की स्थिति में उस पर काबू पाना संभव नहीं हो पाता। आमतौर पर उत्तराकाशी और देहरादून जिले के जौनसार क्षेत्र में हर वर्ष घरों में आग लगने की घटनाएं होती हैं।