- कॉलेज इलेक्शन में बड़ी राजनीतिक पार्टियों का खुला दखल
- लिंगदोह की सिफारिशों की भी उड़ाई जा रहीं धज्जियां
DEHRADUN: पैसे और ताकत के दम पर इलेक्शन जीतने की जद्दोजहद, शराब की बोतलें लेकर सड़कों पर हुड़दंग, मारपीट और प्रिंसिपल के साथ तक हाथापाई, पिछले कुछ सालों में स्टूडेंट पॉलिटिक्स की यही तस्वीर देखने को मिली है। दून के कॉलेजों में स्टूडेंट यूनियन इलेक्शन की इमेज बिलकुल क्लियर है। ये इलेक्शन किसी भी एंगल से एमपी और एमएलए के इलेक्शन से कम नहीं रहे। सभी इक्वेशंस पर गौर करें तो स्टूडेंट पॉलिटिक्स न सिर्फ लक्ष्य विहीन, दिशाहीन और बेहद बुरे दौर से गुजर रही है।
सड़कों पर जमकर हुड़दंग
इलेक्शंस के दौरान स्टूडेंट्स फुल फॉर्म में नजर आते हैं। सड़कों पर हुड़दंग, पटाखे और सीटियों के शोर के बीच डरा सहमा शहर, कुछ ऐसा ही इन दिनों भी देखने को मिल रहा है। हर ओर पोस्टर्स, बैनर्स और रैलियों का आलम है। अकेले डीएवी कॉलेज की बता करें तो यहां का इलेक्शन विधानसभा इलेक्शन से कम नजर नहीं आता। स्टूडेंट यूनियन इलेक्शन को लेकर पिछले तीन दिनों में निकली रैलियों ने शहर की रफ्तार को कई बार ब्रेक लगाए। सभी ग्रुप्स शक्ति प्रदर्शन में जुटे हैं, इसके लिए फिर चाहे लिंगदोह की धज्जियां ही क्यों ने उड़ें, इन्हें कोई परवाह नहीं।
आए दिन बाइक रैलियां
कॉलेज के अंदर और बाहर पोस्टर्स और बैनर्स से दीवारें पटी पड़ी हैं, जबकि लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों की मानें तो चुनाव प्रचार सामग्री में पोस्टर, बैनर, फ्लेक्स और पैंफलेट के लिए कोई स्थान ही नहीं। छात्र संघ चुनाव में नियमों की बात करें तो अधिसूचना जारी होने के बाद चुनाव के दौरान वाहनों का उपयोग वर्जित है, लेकिन यहां आए दिन बाइक रैलियां निकाली जा रही हैं।
बढ़ रहा है क्राइम रिकॉर्ड
कैंपस से बाहर अगर पुलिस डायरी पर नजर डालें तो कॉलेजों के छात्र नेताओं का क्राइम रिकॉर्ड चकित करता है। मारपीट, हत्या का प्रयास, आर्म्स एक्ट के दर्जनों मामले छात्रों पर दर्ज हैं। पिछले सात सालों की बात करें तो डीएवी के एबीवीपी के तकरीबन दो दर्जन छात्रों पर ब्क् से ज्यादा मुकदमे दर्ज हुए हैं। वहीं एनएसयूआई के क्ब् छात्रों के खिलाफ ख्0 मामले दर्ज हैं। इसके अलावा आर्यन ग्रुप के आधा दर्जन छात्र नेताओं पर क्9 मामले दर्ज हैं।
स्टूडेंट्स का सत्ता कनेक्शन
एबीवीपी हो या फिर एनएसयूआई दोनों ही दल ऐसे ही छात्रों को चुनाव में उतारती है, जिनका रिकॉर्ड साफ-सुथरा होता है, लेकिन इनके पीछे पुराने धुरंधर और शार्प माइंडेड सीनियर्स का मास्टर माइंड लगातार काम करता है। चुनाव के लिए क्रिमिनल माइंडेड छात्र नेता सत्ता तक अपनी पकड़ रखते हैं। इसका ताजा उदाहरण बुधवार को एबीवीपी की रैली में भी देखने को मिला, जहां छात्रों की रैली की पूरी बागडोर भाजपा और भाजयुमो के वरिष्ठ नेता संभाले हुए थे।
क्या कहती हैं लिंगदोह की सिफारिशें
- चुनाव प्रचार में अधिकतम एक प्रत्याशी पांच हजार तक खर्चा कर सकता है।
- प्रिंटेड पोस्टर, पैंफलेट या अन्य प्रचार सामग्री वर्जित।
- प्रचार के लिए वाहन, लाउड स्पीकर व जानवरों का प्रयोग बैन।
- प्रत्याशी के लिए अंडर ग्रेजुएट कोर्स के लिए अधिकतम एज लिमिट ख्ख् साल, व पोस्ट ग्रेजुएट के लिए ख्8 साल अधिकतम।
- प्रत्याशी के लिए क्लासेज में मिनिमम 7भ् परसेंट उपस्थिति अनिवार्य।
- आपराधिक रिकॉर्ड, मुकदमा, सजा या अनुशासनात्मक कार्रवाई वाला छात्र प्रत्याशी योग्य नहीं।
- प्रत्याशी यूनिवर्सिटी या कॉलेज का नियमित छात्र हो।
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चुनाव में नियमों का पालन हो इसके लिए बुधवार को संयुक्त रूप से बैठक कर छात्रों को दिशा निर्देश दे दिए गए हैं। अगर कोई नियमों से खिलवाड़ होता पाया गया तो सख्त कार्रवाई की जाएगी।
----- डा। सदानंद दाते, एसएसपी, देहरादून
कई बार रैली बाहर से आती है तो वर्जित सामग्री के साथ कुछ तत्व कैंपस में प्रवेश कर जाते हैं। इस पर नियंत्रण के लिए कमेटियां गठित कर दी गई हैं। चुनान नियमों के तहत ही होगा।
------ डा। गोपाल क्षेत्री, मुख्य चुनाव अधिकारी, डीएवी कॉलेज