जिनकी मनमानी रोकने को बनाया था एक्ट, अब उनसे ही ली जाएगी राय

एक्सक्लूसिव

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-प्राइवेट डॉक्टर्स और लैब्स संचालकों के विरोध के आगे झुकी सरकार

-प्राइवेट क्लीनिक्स की मनमानी रोकने को बनाया गया था एक्ट

-अब डॉक्टरों के सुझावों के आधार पर एक्ट में होगा बदलाव

देहरादून

आम लोगों से प्राइवेट क्लीनिक्स और पैथोलॉजी लैब्स में लूट न हो, इसके लिए सरकार ने क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट बनाया था, लेकिन हैरत की बात ये है कि निजी डॉक्टरों और लैब्स संचालकों के विरोध के आगे सरकार ने घुटने टेक दिए हैं। प्राइवेट क्लीनिक्स और लैब्स चलाने वालों ने सरकार पर इतना दबाव डाला कि सरकार अब इस एक्ट में उन्हीं के सुझावों के मुताबिक फेरबदल करने जा रही है जिनकी मनमानी पर नकेल कसने के लिए ये एक्ट बनाया गया था। एक्ट में बदलाव के लिए बाकायदा प्राइवेट क्लीनिक्स और लैब्स चलाने वालों से सुझाव मांगे गए हैं। यानि अब उन्हीं के क्लीनिक और उन्हीं के नियम। यहां सवाल ये उठता है कि अगर प्राइवेट क्लीनिक्स की ही मनमानी चलनी है तो फिर एक्ट के क्या मायने?

10 नवबंर को अगली बैठक

गौर हो कि स्वास्थ्य विभाग ने क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट को लागू करने की डेडलाइन 26 सितंबर दी थी, लेकिन डॉक्टरों के दबाव के आगे सरकार ने प्राइवेट अस्पतालों के रजिस्ट्रेशन कराने की तारीख आगे बढ़ा दी थी। इसके बाद अब एक बार फिर शासन ने आईएमए से क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के मानकों में फेरबदल करने के लिए सुझाव मांगे हैं। जिसके लिए अगली तारीख 10 नवंबर तय की गई है। दरअसल क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट में कई प्रकार की औपचारिकताओं को लेकर डॉक्टर पसोपेश में हैं। प्राइवेट क्लीनिक चला रहे डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ अभी तक इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि ये एक्ट उनकी सहूलियत के लिए बनाया गया है या उनको बेरोजगार करने के लिए।

औपचारिकताओं में छूट रहे पसीने

क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट में रजिस्ट्रेशन कराने के लिए जो औपचारिकताएं रखी गई हैं उनको पूरा करने और मानकों में खरा उतरने के लिए प्राइवेट क्लीनिक चलाने वाले डॉक्टरों के पसीने छूट रहे हैं। दरअसल क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट में रजिस्ट्रेशन को लेकर क्लीनिक, पैथोलॉजी लैब, फिजियोथेरेपी सेंटर, अस्पताल, नैचरोपैथी सेंटर आदि चिकित्सा क्षेत्र में सेवा देने वाले डॉक्टरों को व्यावसायिक भवन की मंजूरी, नगर निगम से एनओसी, मेडिकल वेस्ट को लेकर विभागों से मंजूरी आदि औपचारिकताओं को पूरा करने में आफत आ रही है। जिससे डॉक्टरों में इस एक्ट को लेकर कई प्रकार का विरोध चल रहा है। साथ ही इस एक्ट में बनाए गए मानक और प्रावधान जैसे ओपीडी का चार्ज, सारे टेस्ट के रेट, क्लीनिक में काम कर रहे कर्मचारियों को वेतन, उनकी शैक्षिक योग्यता आदि को लेकर डॉक्टरों में काफी रोष भी है। डॉक्टर, फिजियोथेरेपिस्ट, पैथोलॉजी लैब चलाने वाले डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ भी इसका विरोध कर रहे हैं। इनका मानना है कि सरकार क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट में बहुत कड़े कानून लाई है जिससे उनको रजिस्ट्रेशन कराने में दिक्कत हो रही है।

बयान-

क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट को लागू करने से पहले सभी प्रकार की समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। जो दिक्कतें डॉक्टरों को आ रही हैं उनके समाधान के लिए हमने आईएमए से सुझाव मांगे हैं। डॉक्टरों से यह पूछा गया है कि उनके हिसाब से मानकों में कितनी ढील होनी चाहिए। इसके बाद एक्ट में बदलाव किया जा सकता है।

डॉ। वाईएस थपलियाल, प्रभारी सीएमओ

देहरादून पर्वतीय इलाका है इसलिए हमने क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के मानकों में बदलाव की मांग की है। यह पूरे राज्य के लिए है। हम इस मसले पर जल्द बैठक कर कुछ निर्णय लेंगे। 10 नवबंर को अगली बैठक प्रस्तावित है, जिसमें हम अपनी बातों को शासन के आगे रखेंगे।

डॉ। जेपी शर्मा, जिला अध्यक्ष देहरादून, आईएमए