देहरादून (ब्यूरो)। राज्य के अधिकारी किस तरह से डिफॉल्टर पट्टाधारकों को खनन लाइसेंस कॉन्टिन्यू रखने के लिए नियम विरुद्ध आदेश दे रहे हैं, इस बारे में दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने हाल में भी रिपोर्ट लिखी थी। खनन क्षेत्र में यह रिपोर्ट काफी चर्चा में भी रही। ऐसा नहीं है कि अधिकारी और नेता मिलकर सिर्फ पट्टाधारियों को ही लाभ पहुंचाने के लिए नियमों के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हों, बल्कि अब तो निजी भूमि मालिकों को भी भूमि समतलीकरण के नाम पर खनन की अनुमति दी जा रही है। खास बात यह है कि निजी भूमि पर किये जा रहे खनन से कोई रॉयल्टी नहीं ली जा रही। ऐसे में एक तरफ जहां खनन माफिया किसी न किसी तरह निजी भूमि पर खनन की अनुमति लेने के प्रयास में रहता है, वहीं दूसरी और इस नीति से राजस्व को भी नुकसान पहुुंच रहा है।

2000 करोड़ का नुकसान
धामी सरकार ने पिछले वर्ष 28 अक्टूबर उपखनिज संशोधन अधिनियम-2001 में बदलाव किया था। इसमें निजी भूमि के समतलीकरण के नाम पर खनन करने की छूट दे दी गई थी। इसके लिए सरकार को कोई रॉयल्टी नहीं दी जानी थी। नतीजा यह हुआ कि खनन माफिया निजी भूमि के समतलीकरण के नाम पर किये जाने वाले खनन में कूद गये। दून सहित कुछ जगहों पर इस तरह का खनन अवैध रूप से किये जाने के मामले भी सामने आये और गिरफ्तारियां व वाहन सीज भी हुए। इसके बावजूद प्राइवेट लैंड में खनन होता रहा। अनुमान है कि इस तरह के खनन से सरकार को दो हजार करोड़ रुपये की राजस्व हानि हुई।

हाई कोर्ट ने रद की नीति
पिछले महीने हाई कोर्ट में इस संबंध में दायर एक याचिका पर सुनवाई हुई तो कोर्ट ने इसे मौलिक अधिकारों का हनन मानते हुए इसे 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की संज्ञा दी और इस संशोधन को रद कर दिया था। तब से एक महीना बीत जाने के बाद भी सरकार की ओर से ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जा सका है, जिससे प्राइवेट लैंड पर खनन पर कारगर रोक लग सके।