देहरादून (ब्यूरो)। शहीद मेजर विभूति ढौंडियाल वो शख्सियत हैैं, जिन्हें देश रक्षा के आगे और कुछ नहीं दिखता था। डर उनके लिए कुछ था ही नहीं। बचपन से ही उन्होंने देश की रक्षा का ख्वाब बुना था और अपनी मंजिल तक भी पहुंचे। इस वीर सपूत ने हंसते-हंसते देश के लिए अपनी जान दे दी। विभूति का जन्म 19 फरवरी 1985 को हुआ था। उनके पिता ओमप्रकाश ढौंडियाल का वर्ष 2012 में देहांत हो चुका है। वह कंट्रोलर ऑफ डिफेंस अकाउंट्स (सीडीए) में सेवारत रहे। उनकी मां सरोज यहां दून में रहती हैं। विभूति तीन बहन के इकलौते भाई थे।

बचपन से ही देखा था सेना में जाने का सपना
विभूति की दसवीं तक की पढ़ाई सेंट जोजफ्स एकेडमी से की, जबकि 12वीं पाइनहाल स्कूल से पास की। विभूति ने बचपन से ही फौजी बनने का सपना देखा था। वह कई बार असफल भी हुए, पर हार नहीं मानी और कोशिश करते रहे। साल 2011 में ओटीए से पासआउट होकर वह सेना का हिस्सा बने।

घर में सुनाते थे ऑपरेशन के किस्से
मेजर विभूति बचपन के दोस्त मयंक खडूड़ी ने बताया था कि विभूति को हमेशा नेतृत्व करने का शौक था। छुट्टी के दौरान देहरादून आने पर वह हमेशा अपने ऑपरेशन के किस्से रोमांच के साथ सुनाता था। 55-राष्ट्रीय राइफल्स का हिस्सा रहते हुए मेजर विभूति के लिए डर नाम की कोई चीज ही नहीं थी।

परिवार से ही मिली सेना में जाने की प्रेरणा
मेजर विभूति ढौंडियाल के मामा और बहनोई भी सेना में हैं और इन दोनों से उन्हें काफी प्रेरणा मिली। यह भी एक बड़ी वजह थी विभूति ने कई बार असफल होने के बाद भी कोशिश नहीं छोड़ी और अपने उस सपने को पूरा किया, जिसे वह बचपन से देखते आ रहे थे।

पत्नी भी चली पति की राह पर
मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल की शादी 19 अप्रैल 2018 को नितिका कौल के साथ हुई थी। उनके वैवाहिक जीवन को 10 महीने ही हुए थे कि विभूति कश्मीर में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। ऐसे मुश्किल दौर में भी नितिका ने हार नहीं मानी। उन्होंने न सिर्फ खुद को संभाला, बल्कि स्वजन को भी हिम्मत दी। उन्होंने तय कर लिया था वह विभूति के सपने के साथ ही आगे बढ़ेंगी। नितिका इसी साल 29 मई को सेना में अफसर बनीं। वह ओटीए (ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी) चेन्नई से पासआउट होकर पति की राह पर चल पड़ी हैैं।