सियासी संग्राम-गढ़वाल क्षेत्र के नेताओं ने गर्माया क्षेत्रवाद का मुद्दा

-खुद पीसीसी अध्यक्ष ने लगाए संतुलन न बनाए जाने के आरोप

-सीएम समेत तमाम बड़े पदों पर कुमाऊं के वर्चस्व पर उठ रहे सवाल

-राज्यसभा सीट पर टम्टा को उतारने के बाद तीखे हुए गढ़वाल क्षेत्र के नेताओं के तेवर

देहरादून

चुनाव से ऐन पहले राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी में क्षेत्रवाद का मुद्दा गर्मा गया है। गढ़वाल क्षेत्र के नेताओं ने इस बहस को इतना बढ़ा दिया है कि यह कलह का रूप ले चुकी है। दरअसल सूबे में हर चुनाव क्षेत्रवाद को ही भावनात्मक मुद्दा बनाकर लड़ा जाता रहा है। इस बार तो खुद पार्टी के प्रदेश मुखिया किशोर उपाध्याय ने ही क्षेत्रवाद का मुद्दा जोरशोर से उठा दिया है। अब कांग्रेस के ज्यादातर विधायक कहने लगे हैं कि सीएम हरीश रावत क्षेत्रीय संतुलन बनाने में असफल रहे हैं और गढ़वाल के नेताओं की उपेक्षा की जा रही है जबकि पार्टी की सबसे ज्यादा विधायक गढ़वाल से ही जीतकर आए हैं। इसी बात पर तमाम विधायकों की नाराजगी सामने आ रही है। गढ़वाल मंडल के नेता कह रहे हैं कि तमाम बड़े पदों पर कुमाऊं का दबदबा कायम कर दिया गया है और इसके लिए वे सीएम हरीश रावत को ही दोषी मान रहे हैं। हालांकि सीएम ने मंत्रिमंडल विस्तार में क्षेत्रवाद के समीकरणों को संतुलित कहने की बात कही है। वे कह चुके हैं कि मंत्रिमंडल विस्तार में गढ़वाल क्षेत्र को तवज्जो दी जाएगी।

कुमाऊं का दबदबा

गढ़वाल क्षेत्र के तमाम नेता और विधायक इसी बात से नाराज हैं कि हरीश रावत के सीएम बनने के बाद ज्यादातर बड़े पद कुमाऊं क्षेत्र के हिस्से को ही दिए गए हैं। ये मुद्दा प्रदीप टम्टा को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद ज्यादा तूल पकड़ने लगा है। दरअसल इस पद के लिए गढ़वाल से पीसीसी अध्यक्ष किशोर उपाध्याय का प्रबल दावा था। प्रदीप टम्टा को हरीश रावत का बेहद करीबी माना जाता है। चारों तरफ पार्टी के प्रदेश स्तर के नेता यही कह रहे हैं कि हरीश रावत हर जगह अपनी मनमानी कर रहे हैं। पीडीएफ भी इसीलिए वक्त वक्त पर अपनी नाराजगी व्यक्त करती रहती है कि गढ़वाल इलाके का प्रतिनिधित्व लगातार कम किया जा रहा है।

आंकड़ों की सच्चाई

उत्तराखंड में 2012 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने कुल 36 सीटें जीती थीं। इनमें से 21 सीटें गढ़वाल मंडल से उसके खाते में आई थीं जबकि कुमाऊं क्षेत्र से उसे सिर्फ 15 विधायक ही मिले। दोनों ही क्षेत्रों से 4-4 मंत्री बनाए हैं। अब क्षेत्रवाद का मुद्दा गर्माया है और सवाल उठ रहे हैं कि सीएम भी कुमाऊं से हैं तो नंबर टू मंत्री भी कुमाऊं से ही। और तो और, सबसे भारी भरकम विभागों से लैस कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य भी वहीं से ताल्लुक रखते हैं। विधानसभा स्पीकर भी कुमाऊं से ही हैं। और अब राज्यसभा में दूसरे सदस्य के तौर पर भेजने के लिए भी कुमाऊं से ही प्रदीप टम्टा को चुना गया है।

बॉक्स

कहां का कितना प्रतिनिधित्व?

गढ़वाल कुमाऊं

विधायक 21 15

मंत्री 4 4 (सीएम समेत)

राज्यसभा सदस्य 0 1 (टम्टा दूसरे उम्मीदवार)

वर्जन

क्षेत्रीय असंतुलन का असर 2017 के चुनाव पर जरूर पड़ेगा। जो अभी तक हुआ है वह नहीं होना चाहिए था। 2002 में भी यही स्थिति थी। उसका नुकसान पार्टी को भुगतना पड़ा था। अगर दो मंत्री पद गढ़वाल को दे भी दिए गए तो इससे काम नहीं चलेगा।

किशोर उपाध्याय, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष

अब कैबिनेट में बचे दोनों मंत्री पद गढ़वाल कोटे को दिए जाने चाहिए। केंद्रीय स्तर पर भी गढ़वाल को तरजीह देकर संतुलन बनाया जा सकता है।

अनुसूया प्रसाद मैखुरी, डिप्टी स्पीकर

बीजेपी में भी कुमाऊं का दबदबा

जहां एक तरफ सत्ताधारी कांग्रेस में कुमाऊं के दबदबे को लेकर गढ़वाल के नेताओं में खुलकर नाराजगी दिख रही है वहीं बीजेपी भी इससे अछूती नहीं है। यहां भी अंदरखाने चर्चा यही है कि पार्टी में गढ़वाल क्षेत्र की उपेक्षा की जा रही है। गौरतलब है कि इस वक्त बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष (अजय भट्ट) दोनों ही पद कुमाऊं के खाते में हैं। पिछले दिनों अजय भट्ट के अध्यक्ष बनने के बाद गढ़वाल के नेताओं ने नेता प्रतिपक्ष का पद गढ़वाल को देने की मांग पर खूब बयानबाजी की थी।