विमल पैदल करेंगे चुनाव प्रचार

विमल असुर के पास सालों से जमा किए दस हज़ार रुपए हैं. वह इसे चुनाव प्रचार में ख़र्च करेंगे. उन्हें उम्मीद है कि आदिम जनजाति समुदाय के लोग और उनके पिता से उन्हें कुछ मदद मिलेगी और फिर भी पैसे कम पड़े तो वह अपनी ज़मीन भी गिरवी रखने की सोचेंगे. हालांकि उनके मां-बाबा को भी अब तक पता नहीं है कि उनका असुर का बेटा चुनाव लड़ने वाला है. विमल कहते हैं कि वह  पैदल ही जंगल-पहाड़ों में आदिवासियों के पास जाएंगे. वहीं कलेबा (दिन का खाना)चूड़ा और गुड़ होगा, जिनके यहां शाम गुज़ारेंगे वहीं बियारी (रात का खाना) का इंतज़ाम कर लेंगे. विमल ने मैट्रिक तक पढ़ाई की है. वह पिछले सात साल से आदिम जनजाति समुदाय के बीच समाज सेवा के कार्यों से जुड़े हैं. इन्हीं कार्यों से जुड़े रहने की वजह से उनके मन में ख्याल आया कि अगर वे एक जनप्रतिनिधि के रूप में चुने जाते हैं, तो आदिम जनजातियों के विकास में बेहतर योगदान कर सकते हैं.

आदिम जनजाति में चर्चा हुई तेज

झारखंड में आठ आदिम जनजातियां हैं. इनमें असुर परिवार लोहरदगा, गुमला और सिमडेगा के पहाड़ों-जंगलों में बसते हैं. असुरों के पुरखे लोहे गलाकर पंरपरागत औज़ार बनाने का काम करते रहे हैं. लेकिन अब लोग इस पेशे से विमुख हो रहे हैं. आदिम जनजातियों के बीच इसकी चर्चा होने लगी है कि विमल चुनाव लड़ने वाले हैं. लोगों का मानना है कि विमल समाज का अगुवा बनेगा. झारखंड में विधानसभा की 81 में से 28 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए सुरक्षित हैं. इन्हीं में शामिल है गुमला ज़िले का विशुनपुर विधानसभा क्षेत्र, जहां से विमल असुर चुनाव लड़ रहे हैं. उनका गांव विशुनपुर इलाक़े के सुदूर पहाड़ पोलपोल पाट में है, जो ज़िला मुख्यालय से क़रीब सौ किलोमीटर दूर है. विमल को झारखंड विकास मोर्चा ने अपना उम्मीदवार बनाया है.

फोन आने पर रोमांचित हो जाते है असुर

विमल असुर ये जानकर हैरत में पड़ जाते हैं कि चुनाव लड़ने के लिए 24 लाख तक ख़र्च करने की अनुमति किसी उम्मीदवार को मिलती है, जबकि उन्हें इसका अंदाज़ा नहीं कि चुनाव में इससे कई गुना अधिक ख़र्च किए जाते हैं. अभी तक विमल ने अपने लिए पोस्टर पर्चे नहीं छपवाए हैं. उनके पास एक ही पासपोर्ट साइज़ की फ़ोटो है. उन्हें पार्टी की तरफ़ से इन चीज़ों के मिलने का इंतज़ार है.

अलबत्ता उनके मोबाइल पर गांवों से आदिवासी युवकों का फ़ोन आता है, तो वह बहुत रोमांचित हो उठते हैं.

हमारी जनजाति सिर्फ शोध का विषय

विमल कहते हैं कि चुनाव नहीं जीतने पर वे नए सिरे से लोहे गलाने और औज़ार बनाने के काम की शुरुआत करेंगे और युवाओं को पुरखों के पेशे से जोड़ने की कोशिशों के साथ पुरानी पहचान को नई शक्ल देंगे. विमल का मानना है कि आदिम जनजातियों में असुर अति पिछड़ी श्रेणी में आते हैं, जिनकी अर्थव्यवस्था न्यूनतम स्तर पर है. विमल कहते हैं कि दुनिया तेज़ी से आगे बढ़ रही है लेकिन उनके समुदाय के लोग अपने वजूद की हिफ़ाज़त के लिए संघर्ष ही कर रहे हैं. उनके अनुसार, आदिम जनजाति विकास के साथ कदमताल नहीं कर सके हैं. यही वजह है कि हमारा वजूद संग्राहलयों में सिमट कर रह गया है. हम आज सिर्फ शोध के विषय भर बने हैं.

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