मंगलवार 30 जून को, बृहस्पति और शुक्र का एक संयोजन हुआ। संयोजन का मतलब है कि दो ग्रह या एक ग्रह और चंद्रमा या एक ग्रह और एक स्टार आसमान में अपनी अपनी कक्षा में एक साथ एक सीध में दिखाई देते हैं, ये एक आकर्षक खगोलीय घटना है। देखा जाए तो इस संयोजन का कोई वास्तविक खगोलीय महत्व नहीं है, लेकिन वे देखने के लिए बेहद खूबसूरत अनुभव है। हजारों साल में होने वाला ऐसा संयोजक एक दुर्लभ दृश्य है हालाकि खगोलशास्त्रियों के किसी अनुसंधान के लिए इसका उतना बड़ा महत्व नहीं है। बृहस्पति और शुक्र का ये संयोजन काफी समय बाद दिखाई दिया है।

पिछले दिनों पर्यवेक्षकों को इन दो ग्रहों को कुछ हफ्तों के लिए करीब करीब एक साथ आगे बढ़ते देखने का अवसर मिल गया। 30 जून को शुरू हुई इस विशेष परिक्रमा में ऐसा लगा कि जैसे ये दोनों ग्रह एक के ऊपर एक दूसरे की उंगली पकड़े एक ही समय में ऐ साथ चल रहे थे। खगोल शास्त्र  का अध्ययन करने वालों को बृहस्पति और शुक्र दोनों को कवर करने शानदार मौका प्राप्त हो गया है। 

Jupiter and Venus conjunction

हालाकि देखने में भले ही दोनों ग्रह काफी करीब लग रहे हों पर हकीकत में, वे मीलों की दूरी पर ही थे। शुक्र पृथ्वी से लगभग 46 लाख मील की दूरी पर और बृहस्पति पृथ्वी से 560 मिलियन मील की दूरी पर है। आसमान पर शुक्र, बृहस्पति की तुलना में ज्यादा चमकदार प्रतीत होता है। पृथ्वी के इतना करीब होने के कारण शुक्र बड़ा दिखता है पर वास्तव में बृहस्पति, हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है और शुक्र की तुलना में 11 से अधिक गुना बड़ा है, लेकिन हमारे ग्रह से अपनी इतनी ज्यादा दूरी और मद्धम चमक के चलते छोटा दिखता है।

आमतौर पर ग्रहों को स्पष्ट देखने के लिए सबसे अच्छी स्थिति रात में अंधेरे के समय होती है। जब सितारे, नीहारिकाएं और आकाशगंगाओं की तरह फेंट आब्जेक्टस काफी हद तक साफ नजर आते हैं। बृहस्पति और शुक्र के संयोजन किसी भी स्थान से देखने का सही समय ऐसा ही होगा। तब उन बड़े शहरों से भी जहां  प्रदूषण के कारण आसमान धुंधला हो गया हो ये सितारे काफी आसानी से खासे उज्ज्वल दिखाई देंगे। वैसे इन्हें देखने के लिए सबसे अच्छा समय शाम को गोधूलि के दौरान है। जब ये पश्चिमी क्षितिज के पीछे होंगे।

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