- हमें भी पढ़ाओ संस्था के सचिव कुमार अरुणोदय बोले शिक्षा व्यवस्था पर

- कॉफी विद दैनिक जागरण आई नेक्स्ट में शिक्षाविद् कुमार अरुणोदय से बातचीत

PATNA : स्कूल में बच्चों के बिताए कुछ घंटे चाहे कितने भी अच्छे क्यों न हों, जबतक घर में उन्हें अच्छा माहौल नहीं मिलेगा उनका विकास संभव नहीं। टेंशन फ्री स्कूल के साथ जरूरी टेंशन फ्री घर भी हैं। समाज में शिक्षा को सिर्फ साक्षरता से न जोड़ते हुए संपूर्ण व्यक्तित्व विकास से जोड़ा जाना चाहिए। यह बातें बताई शिक्षाविद् और हमें भी पढ़ाओ संस्था के सचिव कुमार अरुणोदय ने। वे कॉफी विद दैनिक जागरण आई नेक्स्ट में चर्चा के दौरान शिक्षा व्यवस्था पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने बताया कि शिक्षा के लिए बच्चों से अधिक पैरेंट्स को सीखने की जरूरत है। वे अपनी आकांक्षाओं को बच्चों पर इस कदर थोपते हैं कि बच्चे दवाब में अपने व्यक्तित्व का बेहतर विकास नहीं कर पाते।

पैरेंट्स समझें, हर हाल में हो शांति

अरुणोदय बताते हैं कि इस समय परिवार में लोग ये समझते हैं कि स्कूल की पढ़ाई हो रही है तो उनकी क्या जिम्मेदारी। पैरेंट्स जिम्मेदारी काफी ज्यादा है और सबसे बड़ी जिम्मेदारी घर को शांत रखने की है। बच्चों के साथ खेलें, उनके साथ समय बिताएं और उनमें अच्छे संस्कार दें। परीक्षा में अच्छे मा‌र्क्स ले आना विकास की पहचान नहीं है। जरूरी है कि हम इंसान बनने की प्रक्रिया में कितने परिपूर्ण हुए हैं।

शिक्षा और स्वास्थ्य हो फोकस एरिया

सरकार की व्यवस्था पर बोलते हुए कुमार अरुणोदय ने कहा कि मैंने प्रधानमंत्री और कई मंत्रियों से बार बार आग्रह किया है कि बाकी विकास बाद में भी होगा, पहले शिक्षा और स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान होना चाहिए। नई शिक्षा नीति बनाई जाए जिससे शिक्षा में पूरे देश में समग्र सिलेबस बनाया जाए। इस देश में क्00 से ज्यादा शिक्षा बोर्ड होंगे जिनके सिलेबस में काफी अंतर है। पूरे देश के लिए एक सिलेबस हो जिससे देश के बच्चे एक दूसरे क्षेत्र में महापुरुषों को जान पाएं और एक दूसरे की संस्कृति और इतिहास का सम्मान कर पाएं।

अगर राम चाहिए तो दशरथ बनना होगा

कुमार कहते हैं कि हम सब की बच्चों से काफी उम्मीदें होती है। हम अपने अरमानों का बोझ बच्चों पर थोप रहे हैं। अगर पूछा जाए कि आपका बेटा कैसा हो तो सभी कहेंगे वह मर्यादा पुरुषोत्तम राम जैसा हो, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि राम को बनाने के लिए उनमें कैसे संस्कार दिए गए थे। हर अभिभावक को बच्चों की परवरिश भी राम जैसी ही करनी होगी। बच्चों को उनकी क्षमता के आधार पर काम करने देना चाहिए। जैसे अगर होमी जहांगीर भाभा के पिता उन्हें साहित्य पढ़ने को कहते तो भारत एक बेहतरीन वैज्ञानिक को पाने से चूक जाता। वैसे ही रवींद्रनाथ टैगोर अगर साइंस पढ़ने के लिए बाध्य किए जाते तो साहित्य को रवींद्रनाथ नहीं मिलते। बच्चों को अपने मन की करने दीजिए, वे आगे ही जाएंगे।