PATNA: पटना यूनिवर्सिटी में रिसर्च वर्क वर्षो से बाधित है। विभाग तो कई हैं लेकिन इसमें ऐसी व्यवस्था ही नहीं है, जिसमें रिसर्च वर्क को महत्व दिया जा सके। यही वजह है कि न केवल यूनिवर्सिटी की रैंकिंग में समस्या आ रही है और छात्रों को शिक्षा का माहौल भी नहीं मिल रहा है। न जर्नल प्रकाशित हो रहे और न ही रिसर्च वर्क के लिए एक्टिविटी प्लान।

पीजी डिपार्टमेंट हो तो कुछ सोचे

पटना साइंस कॉलेज के प्रिंसिपल प्रो। यूके सिन्हा ने बताया कि बिहार में पीयू ऐसा यूनिवर्सिटी है जहां पीजी डिपार्टमेंट ही नहीं है। जब तक स्वतंत्र पीजी डिपार्टमेंट की स्थापना नहीं होगी यहां रिसर्च के बारे में काम होना ही मुश्किल है। इसके लिए सरकार को पहल करनी होगी।

पैसा देर से मिलता है तो क्या करें

वर्ष ख्008 का पैसा ख्0क्ख् में मिला। यूनिवर्सिटी को यूजीसी सयम पर पैसा नहीं देता है। क्ख्वीं योजना ख्0क्7 में समाप्त हो रहा है। जबकि अभी तक आधी राशि भी नहीं मिली है। योजना के अंतर्गत क्ख् करोड़ रुपए मिलना था जबकि बीते वर्ष तक मात्र पांच करोड़ रुपए ही मिले। पीयू रजिस्ट्रार संजय सिन्हा ने बताया कि यहां बेहद खराब स्थिति है। छात्र जब कॉलेज छोड़ कर चले जाते हैं तब उन्हें स्कॉलरशिप और रिसर्च के लिए तय राशि मिलती है। यदि पैसा समुचित रूप से और समय पर मिले तो कुछ बात बने। उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी राशि की यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट हमेशा देता है फिर भी ऐसी स्थिति है।

सरकार कब होगी जबावदेह

पीयू टीचर्स एसोसिएशन (पूटा) महासचिव प्रो। अनिल कुमार ने कहा कि यह ऐसी यूनिवर्सिटी है जहां सरकार शिक्षकों को वेतन देने तक ही सीमित है। जबकि यह स्ट्रेंथ भी करीब फ्0 से फ्भ् प्रतिशत ही रह गया है। ऐसे में केन्द्र या राज्य सरकार की ओर से समुचित रूप से रिसर्च के लिए राशि का प्रावधान नहीं होने से क्या होगा। दूसरी ओर रूटीन क्लास में भी शिक्षकों की कमी है। हर महीने कई शिक्षक रिटायर हो रहे हैं और रिक्त स्थान पर शिक्षकों की बहाली वर्षो से बंद है। आखिर रिसर्च छात्रों को करना है लेकिन जब शिक्षक ही नहीं होंगे तो उन्हें गाइड कौन करेगा।

पीयू में मशीनें हुई बंदी

यहां हाल ही में पीयू डिस्पेंसरी के लिए डिजिटज एक्स-रे खरीदी गई। लेकिन एक बार भी प्रयोग नहीं हुआ और धूल खाकर खराब हो गई। पीयू रजिस्ट्रार ने बताया कि मशीन खरीद मद में पैसे बचे थे और निर्णय हुआ कि यहां अल्ट्रासाउंड मशीन लगाई जाए, लेकिन बाद में यह निर्णय वापस ले लिया गया। क्योंकि जब स्टाफ ही नहीं होंगे तो लाखों की मशीन का लाभ किसी को नहीं मिल सकता है।

क्या है नियम

पीयू में भी अन्य यूनिवर्सिटी की तरह ही डिपार्टमेंट की ओर से रिसर्च और डिपार्टमेंट में एकेडमिक एक्टिविटी के लिए प्रपोजल बनाकर भेजा जाता है। इसके बाद यह यूनिवर्सिटी की ओर से स्वीकृत या संशोधित कर भेज दिया जाता है। इसके बाद यूजीसी या फंडिंग संस्था के द्वारा स्वीकृत राशि भेजी जाती है। लेकिन यहां जंग खा चुकी व्यवस्था से डिपार्टमेंट हेड भी तंग आ चुके हैं। सूत्र तो यहां तक कहते हैं कि पटना साइंस कालेज में पढ़ने का कारण यहां का अत्यधिक कम फी होना है। जबकि एक समय ऐसा था जब साइंस कालेज में एडमिशन के लिए होड लगती थी। वर्तमान में कुछ ही डिपार्टमेंट हैं, जहां रिसर्च को लेकर कुछ कार्य हो रहा है। जैसे- बॉयोटेक्नोलाजी, जियोलाजी, बॉटनी आदि।

यूनिवर्सिटी की ओर से यह प्रयास रहता है कि यहां एक बेहतर और रिसर्च ओरिएंटेड वर्क हो, लेकिन इसमें अब तक हमलोग असफल रहे हैं। यूजीसी की ओर से समय पर योजना राशि नहीं मिलती है। कई बार छात्रों के पास-आउट होने पर उनके टूर, रिसर्च वर्क का पैसा आता है। ऐसी स्थिति में सुधार की जरूरत है।

- संजय सिन्हा, रजिस्ट्रार पीयू