नेचर की देन हैं तितलियां  

देश में लगभग पंद्रह सौ प्रजाति की  तितलियां पाई जाती हैं, जिसमें झारखंड में भी सैकड़ों प्रजाति की तितलियां पाई जाती हैं। इन तितलियां को सहेज कर रखने के लिए बिरसा जैविक उद्यान में तितली पार्क बनाया जा रहा है। ठंड और बरसात के समय में इस जैविक पार्क और इसके आसपास के गांवों में बेशुमार प्रजातियां को तितलियां देखी जा सकती हैं। जिसमें कॉमन रूप से इमीग्रेंट, मॉरमून, Žलैक पेंसिल, कामन टाइगर, ग्रास ज्वैल, लेमन पेंसी,  कामन सैलर और कामन जैम जैसी प्रजाति की तितलियां शामिल हैं। वैसे झारखंड मे तितलियों की संख्या पर आज तक किसी ने रिसर्च नहीं किया है।

ग्लोबल वार्मिंग से खतरा  

तितलियां स्वच्छ परिवेश की सूचक होती हैं। तितली मधुमक्खी के बाद दूसरी ऐसी कीट है जो परागण का कार्य करती हंै। ग्लोबल वार्मिंग के कारण तितलियों जैसी नाजुक प्रजातियों पर खतरा मंडरा रहा है। जीव विज्ञानियों का मानना है कि अगर क्लाइमेट में ऐसा ही चेंज आता रहा है तो तितलियां एक दिन विलुप्त हो जाएंगी।

खेती के लिए हैं अच्छा संकेत  

तितलियों पर रिसर्च कर रहे एसएस मेमोरियल कॉलेज के टीचर आनंद ठाकुर का कहना है कि तितलियां फूलों, झाडिय़ों, दलदली जमीनों और घने जंगलों में रहना पसंद करती हैं। तितलियों का बड़ी संख्या में बाहर आना खेती के लिहाज से अच्छा संकेत है। तितलियों के लिए पार्क बनाना भी अच्छी बात है।

तो समाप्त हो जाएंगे प्लांट्स  

बटरफ्लाई पेलिनेशन में मेजर रोल प्ले करती हैं। एक फूल से दूसरे फूल पर यह परागकण को ले जाती हैं। ऐसे में अगर तितलियां समाप्त हो जाएंगी तो कई प्लांट और फ्लॉवर्स पर खतरा आ जाएगा। ऐसे में तितलियों को बचाना जरूरी हो गया है। रेडिएशन के कारण भी तितलियों पर खतरा उत्पन्न हो गया है। ऐसे में कई प्रजाति की तितलियां अब बहुत कम दिखती है। इको सिस्टम को मैनेज करने में तितलियों की बहुत भूमिका होती है। तितलियां पॉल्यूशन को भी कम करती हैं। इसके साथ ही यह आंखों को भी सुकून देती हैं। इसके साथ ही रांचीआइट्स के लिए भी यह पार्क प्वाइंट ऑफ अट्रैक्शन होगा। जू में आनेवाले विजिटर्स भी इस पार्क को एंज्वॉय कर सकेंगे।