रांची(ब्यूरो)। बीते दो साल से नगर निगम राजधानी रांची में सिटी बस चलाने का प्रयास कर रहा है। लेकिन अबतक इसमें निगम को सफलता नहीं मिली है। इसके लिए तीन बार टेंडर भी निकला, लेकिन किसी एजेंसी ने दिलचस्पी नहीं ली है। दरअसल, नगर निगम आज भी एक दशक पुराने मॉडल पर ही बस चलाने के लिए एजेंसी की तलाश कर रहा है। यही वजह है कि कंपनी आगे नहीं आ रही है। गौरतलब हो कि रांची में 244 सिटी बस चलाने की योजना है। जिसमें 220 बसें डीजल से चलने वाली, जबकि महज 24 इलेक्ट्रिक बस हैं। इसके लिए बीते छह महीने से टेंडर निकल रहा है। लेकिन कंपनियां आगे नहीं आ रही हैं। इसके अलावा बसों का ऑपरेशन, मेनटेनेंस और ट्रांसफर पर भी निगम ने टेंडर निकाला था। लेकिन इसमें सिर्फ महाराष्ट्र की एक कंपनी को छोड़कर किसी ने भी दिलचस्पी नहीं ली। इस कारण नगर निगम को टेंडर रद्द करना पड़ा। एजेंसी का चयन नहीं होने के कारण न तो बसें सड़क पर उतर रही हैं और न ही नागरिकों को इसका लाभ ही मिल पा रहा है।

रूट तय पर बस ही नहीं

बसों के चलने के लिए रूट तय कर लिये गए हैं। करीब 30 रूटों का चयन किया गया है। इसके अलावा पब्लिक ऑन डिमांड पर भी निर्णय लिया जाएगा। लेकिन इसके लिए बस और उसे चलाने वाले का होना जरूरी है। कई एजेंसीज हैं जो डीजल के बस नहीं चलाना चाहती हैं। इससे पॉल्यूशन में इजाफा होता है। जबकि नगर निगम आज भी डीजल बसों की ही खरीदारी कर रहा है। सिटी बस चलाने की डेटलाइन कई बार फेल हो चुकी है। बीते साल नवंबर महीने में ही इसकी शुरुआत होनी थी। लेकिन यह डेटलाइन भी फेल हो चुकी है। इसके बाद जनवरी का समय निर्धारित किया गया है। इस महीने भी ये देखने वाली बात होगी की यह सर्विस शुरू हो पाती है या नहीं।

ट्रासंपोर्टेशन की बड़ी समस्या

राजधानी रांची में पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन की भारी समस्या है। बीते 23 सालों में कई बार इसे सुधारने का दावा किया गया। लेकिन हर बार यह दावा फेल ही साबित हुआ। राजधानी बनने के बाद से अबतक नगर निगम ने करीब 250 सिटी बसों पर करोड़ो रुपए फूंक दिए हैं। लेकिन वर्तमान में सिर्फ 35 बसें ही ऑपरेट हो रही हैं। अर्बन ट्रांसपोर्ट सिस्टम के नाम पर नगर निगम गिनी-चुनी सिटी बस ही चला रहा है। एमजी रोड में 22 और रातू रोड, कांटाटोली होते हुए धुर्वा तक 18 बसों का परिचालन हो रहा है। इसके अलावा सभी रूट पर ऑटो ही पब्लिक ट्रंासपोर्ट का सहारा है। साथ ही ई-रिक्शा से भी लोग आना-जाना कर रहे हैं।

ऑटो व ई-रिक्शा ही सहारा

वर्तमान में 15 हजार से अधिक ऑटो और करीब पांच हजार ई-रिक्शा शहर की सड़कों पर दौड़ रहे हैं। इनमें 70 परसेंट ऑटो और ई-रिक्शा अवैध रूप से चल रहे हैं। इन्हीं वाहनों की वजह से सड़क पर जाम की समस्या हो रही है। परिवहन विभाग के अनुसार वैध रूप से करीब 2300 ऑटो को ही परमिट दिया गया है। जबकि शहर में 12 हजार से अधिक ऑटो अवैध रूप से चल रहे हैं। किराया के रूप में भी लोगों को बड़ी रकम चुकानी पड़ रही है। इससे शहर में प्रदूषण भी फैल रहा है। बसों का परिचालन होने से लोगों का सफर आसान होता।

कबाड़ हो गईं पहले की बसें

2005 में नगर निगम को 51 सिटी बसें मिली थीं। इनमें से 20 ही सड़क पर उतर पाईं, 31 बसें नगर निगम के स्टोर में रखी-रखी कबाड़ हो गईं। वहीं 2009 में भी 200 सिटी बसें खरीदी गई थीं, इनमें से 160 कबाड़ हो गईं। सिर्फ 40 बसें ही चल रही हैं। फिलहाल जो बसें चल रही हैं, उनकी भी सेहत कुछ अच्छी नहीं है। बस चलते-चलते कहीं भी बंद हो जाती है। बैठने के लिए सीटिंग अरेंजमेंट भी काफी खराब है। बस की सीट खराब हो चुकी है। बस में कैपासिटी से ज्यादा पैसेंजर बैठा लिये जाते हैं।