रांची (ब्यूरो) । हादसा किसी मुहूर्त का इंतजार नहीं करता। वो कभी भी और कहीं भी आकर तबाही मचा सकता है। यह हमारे हाथ में नहीं होता। लेकिन इन हादसों से सबक लेकर बचने की तैयारी हम पहले से जरूर कर सकते हैं। फिर भी लोग ऐसे गंभीर हादसों के प्रति सचेत नजर नहीं आते। सबसे जरूरी स्थान हॉस्पिटल है, जहां लोग अपने मर्ज के इलाज के लिए आते है वहां भी सेफ्टी का ख्याल नहीं रखा जा रहा। राजधानी रांची के गली-गली में हॉस्पिटल खुल गए हैं, जो बिना किसी मापदंड को पूरा किए संचालित हो रहे हैं। हॉस्पिटल में मरीज और उनके परिजनों की जान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। कई अस्पताल ऐसे हैं जहां सुरक्षा मानकों का ख्याल नहीं रखा गया है। अस्पताल प्रबंधकों ने सबसे अहम फायर डिपार्टमेंट से एनओसी लेना भी जरूरी नहीं समझा। फायर सेफ्टी के नाम पर इन अस्पतालों में सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है। आज भी कई अस्पताल ऐसे हैं, जहां आग लगने पर उसपर काबू पाने के लिए कोई मुकमल इंतजाम नहीं है। यही वजह है कि बीते दिनों धनबाद के एक अस्पताल में बड़ा हादसा हो गया। आग लगने के कारण यहां डॉक्टर दंपती समेत करीब आधा दर्जन लोगों की मौत हो गई। रांची में भी ऐसी घटना की पुनरावृति न हो, इसके लिए अभी से अलर्ट होना जरूरी है।
गली-गली हेल्थ की दुकान
राजधानी रांची में सैकड़ों क्लिनिक और हॉस्पिटल खुल गए हैं। आलम यह है कि गली-गली में हेल्थ की दुकान चल रही हैं। हेल्थ की इन दुकानों में आग बुझाने के उपकरण भी नहीं हैं। यदि कहीं हैं भी तो वो अपडेट नहीं हैं। देखरेख और मेनटेनेंस के अभाव में फायर सेफ्टी उपकरण बेकार हो चुके हैं। इन अस्पतालों में आगलगी जैसी घटनाएं होती हैं तो लोगों को जान बचाकर भागने की भी जगह नहीं मिलेगी। क्योंकि काफी कंजस्टेड जगहों पर लोगों ने हॉस्पिटल खोल रखा है। शहर के ऐसे ही कुछ हॉस्पिटल्स की पड़ताल की गई। कुछ अस्पतालों में आग से लडऩे के लिए प्रॉपर इंतजाम दिखे, तो अधिकतर में लापरवाह ही नजर आए।

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झारखंड नेशनल हॉस्पिटल
कांटाटोली के समीप स्थित झारखंड नेशनल हॉस्पिटल में सुरक्षा मानकों की धज्जियां उड़ाई जा रही है। हॉस्पिटल में आग पर काबू पाने का कोई इंतजाम नहीं है। नाम मात्र के लिए एक-दो फायर एक्सटिंग्विशर लगा हुआ है। वह भी एक्सपायर हो चुके हैं। इस हॉस्पिटल में प्रमुख डॉक्टर जेड होडा हैं। जब उनसे बात करने का प्रयास किया गया तो अस्पताल के कर्मियों ने डॉक्टर के शहर से बाहर होने की बात बताई। कर्मचारियों ने बताया कि अस्पताल में हर मर्ज का इलाज किया जाता है। लेकिन हॉस्पिटल की स्थिति देख ऐसा लगता है जैसे यह खुद लाइलाज है।

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बाबा अस्पताल

रातू रोड सुखदेव नगर इलाके में स्थित बाबा अस्पताल। यह मुख्य रूप से गर्भवती महिलाओं के इलाज के लिए जाना जाता है। पूरे दिन यहां गर्भवती महिलाओं की भीड़ लगी रहती है। यहां सिर्फ गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं का इलाज होता है। दूर-दराज से गर्भवती महिलाएं इलाज के लिए यहां आती हैं। यहां भी आग से निपटने का कोई खास इंतजाम नहीं है। एक्सटिंग्विशर लगे हैं, लेकिन वह भी एक्सपायर हैं। संर्कीण गली में यह हॉस्पिटल संचालित हो रहा है। जहां दमकल गाड़ी पहुंचने में भी असुविधा होगी। अस्पताल की संरचना भी काफी पुरानी हो चुकी है।

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हरगोविंद नर्सिंग होम
रातू रोड अमरूद बगान स्थित हरगोविंद नर्सिंग होम की भी यही कहानी है। यहां तो फायर एक्सटिंग्विशर कब के फेल हो चुके हैं। अस्पताल में अब भी सेंट्रलाइज फायर फाइटिंग सिस्टम नहीं लगाया गया है। इस अस्पताल में भी ज्यादातर गर्भवती महिलाएं ही इलाज के लिए आती हैं। फायर सेफ्टी पर बात करने के लिए अस्पताल में कोई मौजूद भी नहीं था। लेकिन मरीज अपने इलाज के इंतजार में जरूर बैठे हुए नजर आए। यह हॉस्पिटल भी संकरी गली में है। जहां कोई हादसा होने पर दमकल गाड़ी के पहुंचने में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

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हॉपवेल हॉस्पिटल

कर्बला चौक स्थित हॉपवेल हॉस्पिटल की कहानी ही अलग है। यह अस्पताल एक अपार्टमेंट में संचालित हो रहा है। यहां जगह-जगह एक्सटिंग्विशर लगे है, लेकिन सेंट्रलाइज फायर फाइटिंग सिस्टम नहीं लगाया गया है। हॉस्पिटल के आसपास इलेक्ट्रिक वायर का जंजाल है। वहीं कर्बला चौक के आसपास पूरे दिन जाम की स्थिति बनी रहती है। जिस कारण यहां भी फायर ब्रिगेड के वाहन पहुंचने में परेशानी आ सकती है। अस्पताल प्रबंधन से बात करने की कोशिश की गई, लेकिन यहां मौजूद स्टाफ ने किसी के न होने की बात कही।
ऑटोमेटिक फायर फाइटिंग सिस्टम का जमाना
बदलते समय में आज सबकुछ ऑटोमेटिक हो रहा है। स्वास्थ्य सुविधाओं में भी कई बदलाव आए हैं। एक से बढक़र एक मशीनें आ गई हैं। उसी तरह सुरक्षा मानक भी अपडेट होते रहते हैं। आज सेंट्रलाइज और ऑटोमैटिक फायर फाइटिंग सिस्टम ने जगह लिया है, जिसे हर वह स्थान पर लगाना जरूरी है जहां लोगों का मूवमेंट ज्यादा रहता है। हॉस्पिटल में भी इसे लगाना अनिवार्य है। लेकिन राजधानी के अधिकतर हॉस्पिटल आज भी पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं। किसी भी अस्पताल संचालन से पहले नगर निगम, एन्वायरमेंट, फायर, हेल्थ डिपार्टमेंट से एनओसी लेना जरूरी होता है। सुरक्षा मानकों की जांच के बाद विभाग की ओर से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट जारी किया जाता है। एनओसी लेने के लिए अस्पतालों को सारी क्राइटेरिया माननी होती है। लेकिन विडंबना यह है कि गली मोहल्लों में छोटी जगह में हॉस्पिटल संचालित करने वाले प्रबंधक क्राइटेरिया पूरा नहीं करते, जिस कारण वे एनओसी लिए बिना ही हॉस्पिटल संचालन शुरू कर देते हैं।
क्या है मानक
--अस्पताल में आगजनी से बचाव के लिए ओवर हेड पंप होने चाहिए।
-- हर 30 मीटर पर राइजर होना चाहिए।
-- हर फ्लोर पर डिलीवरी आउटलेट होना चाहिए।
-- हर फ्लोर पर फायर अलार्म और स्मोक डिटेक्टर लगा होना चाहिए।
-- स्प्रिंकलर फायर सर्विस इनलेट सहित दुरुस्त ऑटो पंपिंग सिस्टम उपलब्ध होना चाहिए।
-- अपडेट फायर एक्सटिंग्विशर का होना भी जरूरी है।
-- प्रत्येक फ्लोर पर होज रील और हाइड्रेंट रोज लगा होना जरूरी


सभी अस्पतालों को एनओसी और एडवाइजरी लेना जरूरी है, जो हॉस्पिटल बिना एनओसी लिए संचालित हो रहे हैं, उनकी जांच करके कार्रवाई की जाएगी।
-जितेंद्र तिवारी, प्रभारी फायर अफसर, डोरंडा