रांची(ब्यूरो)। राजधानी रांची के रेलवे स्टेशन पर पैसेंजर्स की सुविधा के लिए प्रीपेड ऑटो सर्विस शुरू की गई है, लेकिन इस सर्विस को जिस उद्देश्य से शुरू किया गया था वो पूरा नहीं हो रहा है। तीन महीने में ही यह सर्विस हांफती नजर आ रही है। दरअसल रेलवे स्टेशन के आसपास अब भी ऑटो ड्राइवर मंडराते रहते हैं। रांची आने वाले पैसेंजर्स को इससे काफी परेशानी होती है। प्लेटफार्म पर ट्रेन के पहुंचते ही ऑटो ड्राइवर स्टेशन के बाहर जमा हो जाते हैं। रांची रेलवे स्टेशन में प्रीपेड ऑटो सर्विस को शुरू हुए चार महीने बीत चुके हैं। लेकिन यह सफल होता नजर नहीं आ रहा है। पैसेंजर्स को राहत देने के लिए प्रीपेड ऑटो सर्विस की शुरुआत हुई है। लेकिन मॉनिटरिंग के अभाव में इसका ठीक से अनुपालन नहीं हो रहा है। न पैसेंजर्स को ही कोई राहत मिल रही है।

रेट चार्ट का भी नहीं हो रहा पालन

रेलवे स्टेशन से चलने वाले ऑटो के लिए भाड़ा तय किया गया था, जिसमें परिवहन विभाग और ऑटो चालक संघ की सहमति थी। लेकिन हकीकत कुछ और ही है। यहां प्रीपेड ऑटो सर्विस से बाहर चलने वाले ऑटो चालक यात्रियों से मनमाना ऑटो भाड़ा वसूल रहे हैं। यात्रियों को सहूलियत देने और मनमाना भाड़ा वसूली में रोक लगाने के लिए ही प्रीपेड सर्विस शुरू की गई है। प्रीपेड सर्विस के तहत यात्रियों को स्टेशन से बाहर निकलते ही पहले किराया चुकाना होता है, जिसके बाद ऑटो पैसेंजर को निर्धारित स्थान तक छोड़कर आते हैं। लेकिन परेशानी यह है कि अधिकतर लोगों को प्रीपेड ऑटो सर्विस की जानकारी ही नहीं है। न रेलवे प्रबंधन की ओर से पैसेंजर को इसकी जानकारी दी जाती है। जिस वजह से लोग इसका फायदा नहीं उठा पाते। हालांकि इसका संचालन कर रहे आरपीएफ के अधिकारी का कहना है जब से यह सर्विस शुरू हुई है, करीब दो सौ लोगों ने इसका लाभ उठाया है।

पहले भी फेल हो चुकी है यह सर्विस

रेलवे स्टेशन में प्रीपेड ऑटो सर्विस कोई नया नहीं है। पहले भी यह सेवा शुरू की गई थी। लेकिन देखरेख के अभाव में यह ठप हो गया। 2010 और 2015 में प्रीपेड ऑटो सर्विस की शुरुआत की गई थी। ठीक से संचालन नहीं होने के कारण कुछ ही दिनों में यह बंद हो गया। एक बार फिर तीन महीने पहले यह सेवा आम लोगों के लिए शुरू की गई, लेकिन इस बार भी यही हाल है। तीन महीने में ही यह सिस्टम हांफने लगा है। प्रीपेड ऑटो सर्विस होने के बाद भी यहां मनमाना भाड़ा वसूला जा रहा है। पैसेंजर्स की भी मजबूरी है। इसलिए वे भी पैसे देकर जाने को तैयार हो जाते हैं। ऐसे में प्राइवेट ऑटो वालों की चांदी है। खासकर रात और सुबह-सुबह आने वाली टे्रन के पैसेंजरों को काफी ज्यादा परेशानी हो रही है। यात्री रात में खुद को सेफ महसूस नहीं करते हैं। पैसेंजर की मजबूरी देखते हुए ऑटो चालक भी अनाप-शनाप भाड़े की डिमांड कर देते हैं।

स्टेशन के बाहर ऑटो चालकों की मनमानी

रांची रेलवे स्टेशन हो या हटिया दोनों जगह आटो चालक अपनी मनमानी करते हैं। मनमाना भाड़ा वसूलने के साथ-साथ पैसेंजर के साथ नोक-झोंक की भी शिकायतें आती रहती हैं। स्टेशन के प्रवेश द्वार तक ऑटो और ई-रिक्शा लेकर ड्राइवर पहुंच जाते हैं। लेकिन रेल प्रशासन इन्हें कुछ नहीं कहता है। वहीं सवारी के बाहर निकलते ही उनके हाथों से बैग छीन कर गाड़ी में रखते हुए जबरन ऑटो में बैठने को कहते हैं। सोमवार को सुबह साढ़े सात बजे जब हटिया पटना एक्सप्रेस प्लेटफार्म पर पहुंची और यात्री बाहर निकलने लगे, वैसे ही दर्जनों ऑटो चालक प्रवेश द्वार पर आकर खड़े हो गए और चिल्लाने लगे। ऐसे में प्रीपेड की सुविधा होते हुए भी सिर्फ वही लोग इसका फायदा उठा रहे जिन्हें इसकी जानकारी है। दूसरे पैसेंजर अब भी प्राइवेट ऑटो चालकों के हाथों ठगे जा रहे हैं।

प्रीपेड ऑटो सर्विस बूथ का संचालन आरपीएफ के जिम्मे है। इसका अच्छा रिस्पांस भी मिल रहा है। करीब दो सौ लोग इसका फायदा उठा चुके हैं। इसे और ज्यादा बेहतर बनाया जाएगा। कोई शिकायत आई है तो उसे देख लिया जाएगा।

प्रशांत यादव, डीएससी, आरपीएफ