रांची(ब्यूरो) । सरकारी काम-काज सब भगवान भरोसे है, यह बात ऐसे ही नहीं कही जाती है। हर सेक्टर में सरकारी सुविधा जो सीधे आम जनता से जुड़ी है उसका हाल बुरा है। चाहे वह सरकारी अस्पताल हो, सरकारी विद्यालय या फिर पब्लिक की सुविधा के लिए शुरू की गई सिटी बस सेवा। सभी की स्थिति फटेहाल वाली है। आलम यह है कि राजधानी में चलने वाली सिटी बस बीच सड़क में कही भी बंद हो जा रही है। बस में बैठे पैसेंजर, ट्रैफिक पुलिस समेत अन्य राहगीर बस को धक्का देकर आगे बढ़ाते हैं। दरअसल सिटी में चलने वाली सिटी बस की हालत जर्जर हो चुकी है। बार-बार इसमें खराबी आ जाती है। एक तरफ नगर निगम के अलग-अलग डीपो में खड़ी-खड़ी सौ से अधिक बसें पहले ही कंडम हो चुकी हैं। वहीं दूसरी ओर सड़क पर जो बसें चल रही हैं उनकी भी सेहत ठीक नहीं है। आए दिन कुछ न कुछ खराबी इन बसों में आती रहती हैं। बीते हफ्ते रांची के कचहरी चौक से आगे सिटी बस खराब हो गई। बस में पैसेंजर बैठे हुए थे। आम लोगों ने ही नीचे उतर कर बस को धक्का लगाते हुए सड़क के किनारे किया।

करोड़ों की बसें हुईं कबाड़

जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय नवीकरण मिशन के तहत राजधानी रांची में करोड़ों रुपए खर्च करके दो सौ से अधिक बसें खरीदी गईं। लेकिन राजभवन के समीप नगर निगम स्टोर और बकरी बाजार में कंडम अवस्था में पड़ी सिटी बसें यह बताने के लिए काफी हैं कि जनता के पैसों की किस प्रकार बर्बादी की गई है। मेनटेनेंस के अभाव में दो सौ से अधिक बसों को बर्बाद किया जा चुका है। अन्य बसें भी जर्जर होने की स्थिति में हैं। बसों में मामूली खराबी आने पर भी उनकी मरम्मत नहीं कराई जाती है, बल्कि उसे लाकर डीपो में खड़ा कर दिया जाता है, जिसके बाद खड़ी-खड़ी बस में और खराबी होनी शुरू हो जाती है। एक ओर राज्य सरकार 244 नई सिटी बसें खरीदने की योजना तैयार कर रही है। वहीं दूसरी ओर पहले से खरीदी गईं बसों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। न तो इसकी रिपेयरिंग कराई जा रही है और न ही ऑक्शन कर बसों की बिक्री की जा रही है। दिनोंदिन बस का मार्केट वैल्यू गिरता जा रहा है। वो दिन दूर नहीं जब बसों को कबाड़ में बेचने की स्थिति आ जाए।

नशेडिय़ों का अड्डा बनीं सिटी बसें

पब्लिक की सुविधा के लिए शुरू की गई सिटी बस आज नशेडिय़ों और जुआरियों का अड्डा बन चुकी हैं। डीपो और स्टोर में खड़ी इन सिटी बसो में देर शाम नशेड़ी जुटते हैं और बस में ही शराब का सेवन करते हैं। बसों में लगे सारे सामान भी चोरी हो चुके हैं। नगर निगम इसकी सुध लेने की कोशिश भी नहीं कर रहा है। जिन बसों को मामूली पैसे खर्च करके ठिक किया जा सकता था, उसे भी सड़ा दिया गया। जेएनएनयूआरएम के तहत राजधानी रांची में 2005 में करीब पांच करोड़ की लागत से 51 बसों के साथ यह सर्विस शुरू की गई थी। बाद में नगर निगम ने और भी बसों की खरीदारी की। एक समय यह संख्या बढ़कर 91 तक पहुंच चुकी थी। 2017 में नगर निगम ने फिर एक बार करीब साढ़े तीन करोड़ रुपए की लागत से 26 बसें खरीदीं। लेकिन आज नगर निगम के पास ठीक-ठाक अवस्था में करीब 25 बसें ही रह गई हैं। उनकी भी स्थिति ठीक नहीं है।

अफसरों की गाड़ी चकाचक, पब्लिक को सुविधा नहीं

नगर निगम में ही अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों को भी वाहन उपलब्ध कराया गया है। तत्कालीन मेयर और डिप्टी मेयर को भी गाड़ी दी गई है। लेकिन अफसरों और जनप्रतिनिधियों के वाहन कभी खराब नहीं होते, ये हमेशा चकाचक रहते हैं। वाहन कुछ साल पुराने होते ही नए की खरीदारी भी कर ली जाती है। लेकिन आम पब्लिक जिनके टैक्स के पैसे से नगर निगम के अधिकारियों को सुविधाएं मिलती है, उन्हें ही नजरअंदाज कर दिया जाता है। पब्लिक से जुड़ी ढंग की सिटी बस फैसिलिटी भी निगम जनता को उपलब्ध नहीं करा पा रहा है। बसों की संख्या कम रहने के कारण जानवरों की तरह ठूंसकर यात्री बिठाए जाते हैं। मजबूरी में यात्री भी इसी तरह से यात्रा करने को विवश हैं।