रांची (ब्यूरो) । झारखंड की जेलों में आदिवासी कैदी क्यों बंद हैं? इस पर अब रिसर्च किया जाएगा। झारखंड की जेलों में बंद अंडर ट्रायल आदिवासी कैदियों पर रिसर्च किया जाएगा। इन कैदियों पर रिसर्च करने के लिए डॉ राम दयाल मुंडा ट्राइबल वेलफेयर रिसर्च इंस्टीट्यूट की ओर से रिसर्च संस्थान व यूनिवर्सिटी की ओर से एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट मांगा गया है, जिसका विषय झारखंड में विचाराधीन कैदी सिस्टम की उदासीनता, कानूनी प्रावधान व न्याय की गुंजाइश है। रिसर्च स्कॉलर और रिसर्च संस्थानों से आवेदन आने के बाद टीआरआई द्वारा एजेंसी चयन करके काम शुरू किया जाएगा।

अंडर ट्रायल में 'यादा आदिवासी

टीआरआई द्वारा जो एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट मांगा गया है उसमें यह कहा गया है कि विचाराधीन कैदी वे लोग होते हैं जिन पर किसी अदालत में मुकदमा चल रहा होता है और ऐसे मुकदमे के दौरान उन्हें जेल में न्यायिक हिरासत में रखा जाता है। अंडर ट्रायल कैदियों में झारखंड के आदिवासी कैदियों की संख्या भी अ'छी खासी है।

क्यों होगा रिसर्च

-समाज के आर्थिक रूप से कमजोर तबके के किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी पर होने वाली परेशानियों के प्रकार व सीमा को पहचानना।

-विचाराधीन कैदियों की सामाजिक, आर्थिक व शैक्षिक पृष्ठभूमि का पता लगाना। बुनियादी अधिकार व कानूनी प्रावधानों तक पहुंचना

-सभी श्रेणियों के विचाराधीन कैदियों के मामले में देरी होने का क्या कारण है

राष्ट्रपति ने जताई थी चिंता

बीते दिनों राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने छोटे-मोटे अपराधों में जेल की सजा काट रहे आदिवासियों की दुर्दशा का जिक्र किया था, जिसके बाद शीर्ष अदालत ने इसका संज्ञान लिया। झारखंड की जेलों में भी कई ऐसे विचाराधीन कैदी हैं, जिन्हें यह जानकारी तक नहीं है कि उन्हें किस अपराध में गिरफ्तार किया गया था। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मामूली अपराधों में वर्षो से कैद आरोपियों द्वारा जमानत की शर्तें पूरी न कर पाने वालों को जेल से रिहाई की चर्चा की थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामूली अपराधों में जेल में बंद ऐसे आरोपियों की जानकारी मांगी थी, जो जमानत की शर्तें पूरी न कर पाने की वजह से जेलों में बंद हैं।

90 परसेंट कैदी निरक्षर

झारखंड में 90 परसेंट से अधिक कैदी निरक्षर हैं या उन्होंने अधिकतम 12वीं तक की पढ़ाई की है। यह भी तथ्य है कि रा'य की जेलों में लगभग इतने ही प्रतिशत बंदी दूरदराज के गांव, बस्तियों वाले हैं। बंदियों की पढ़ाई-लिखाई के दृष्टिकोण से घाघीडीह, जमशेदपुर जेल अव्वल है। आंकड़े के अनुसार, इस कारागार में कुल 1,893 बंदियों में 91 निरक्षर, कक्षा 1-10 तक पढ़े 800, बारहवीं तक की पढ़ाई करने वाले 734, स्नातक करने वाले 110, स्नातकोत्तर की पढ़ाई करने वाले 51 और टेक्निकल ट्रेनिंग किए हुए 107 बंदी थे।

जेलों में क्षमता से 'यादा कैदी

महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि रा'य में अवस्थित सेंट्रल जेलों को छोडक़र हर जिला के कारागार या उप कारागार में कैदियों की संख्या जेलों की क्षमता से कई गुना अधिक है। जिला कारा या उप कारा में बंदियों की संख्या 50 प्रतिशत से अधिक होना आम बात है। किसी-किसी जेल में उनकी संख्या दोगुनी या तिगुनी भी है। देवघर केंद्रीय कारा की क्षमता सिर्फ 335 लोगों की है, लेकिन इसमें 900 से भी 'यादा लोगों को रखा गया। यह बात भी सामने आई है कि कन्विक्शन रेट या बंदियों को कोर्ट से सजा मिलने की दर अत्यंत कम है। औसतन यह महज दो से तीन प्रतिशत ही है।

पाकुड़ जेल में आदिवासी बंदी 'यादा

प्रतिशत के हिसाब से अनुसूचित जनजाति बंदियों की सबसे 'यादा संख्या पाकुड़ जेल में है। जहां लगभग सौ परसेंट बंदी आदिवासी हैं। इसके बाद देवघर सेंट्रल जेल में 86 प्रतिशत और खूंटी जेल में 77 प्रतिशत है। अनुसूचित जाति के बंदियों की संख्या सबसे 'यादा बोकारो जेल में है, जो 69 प्रतिशत है। दूसरे नंबर पर चाईबासा जेल 38 प्रतिशत और तीसरे नंबर पर तेनुघाट जेल 27 प्रतिशत है।