RANCHI

मौसम विज्ञान विभाग के आरके महतो बताते हैं कि रांची और आसपास के क्षेत्र जैसे नामकुम, बुढ़मू, कांके, पिठोरिया ये सभी वज्रपात क्षेत्र घोषित हैं। रांची समेत ये सारे जगह पठारी हैं। प्री मॉनसून से लेकर मॉनसून सीजन तक जब भी गर्मी बढ़ती है, तो गर्जन वाले बादल बन जाते हैं। इससे एक एनर्जी चार्ज होती है, जिसकी क्षमता काफी ज्यादा होती है। बादलों के बीच ये एनर्जी यूटिलाइज नहीं होती, जो वज्रपात के तौर पर जमीन पर गिरती रहती है। उन्होंने बताया कि पठारी क्षेत्र के साथ इन क्षेत्रों की जमीन के नीचे मेटलिक तत्व यानी खनिज पदार्थ बहुत ज्यादा हैं। बादलों के टकराव से जो एनर्जी चार्ज होती है, उन्हें जमीन के नीचे के मेटाबॉलिक बॉडी खींचते हैं, क्योंकि ये जल्द गर्म हो जाते हैं। इसमें गर्म हवाएं भी सहायता करती हैं। इसलिए पठारी के साथ जमीन के नीचे के तत्व इन्हें खींच रहे हैं और यहां ज्यादा वज्रपात हाे रहा है।

सेंसर और अरेस्टर लगाने की योजना

बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी परिसर में एक सेंसर लगाया गया है, जहां से फ्00 किमी के दायरे में यह पता लग जाएगा कि कहां कितनी बार बिजली गिरी व उसकी ताकत कितनी थी। उसके बाद उस क्षेत्र में सेफ्टी ग्रिड लगाते हुए लाइटनिंग अरेस्टर लगाए जाएंगे। वज्रपात से लोगों को बचाने के लिए स्टेट गवर्नमेंट ने ख्0 अरेस्टर लगाने की प्लानिंग की है।

8 करोड़ की लगेगी मशीन

राज्य में वज्रपात से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए झारखंड सरकार लगभग आठ करोड रुपए की लागत वाली मशीन लगाएगी। यह मशीन वज्रपात की पूर्व जानकारी देने में सक्षम होगी। इसके लिए राज्य का आपदा प्रबंधन विभाग काम करेगा। इसके लिए डिजास्टर रिस्पांस फोर्स का भी गठन होगा।

--------------

फॉर योर इनफॉर्मेशन---

ऐसे बचाता है लाइटनिंग अरेस्टर

आसमान में बिजली पैदा होते ही लाइटनिंग अरेस्टर एक्टिवेट हो जाता है। बिजली गिरने से पहले ही उसके चार्ज को तोड़कर कर उसकी क्षमता घटा देता है। क्षमता घटते ही अरेस्टर बिजली को खींच कर सीधे जमीन में डाल देता है।