RANCHI: उपदेशों की आधुनिक परंपराओं में सभी दूसरों को सिखाते हैं और दूसरों पर दायित्व भी मढ़ देते हैं। यहां बस्तियों में न तो जल निकासी की व्यवस्था है और न ही इच्छाशक्ति। सभी सरकार को ही दोषी ठहराते हैं लेकिन शहर की कुछ अच्छी कॉलोनियों में ऐसे भी लोग मिल जाएंगे जो हर दिन अपने शौक को हजारों लीटर पानी से पूरा करते हैं। वहीं दूसरी ओर मलीन बस्तियों में पानी की किल्लत को लेकर हर दिन हंगामे का दौर जारी रहता है। भले ही शहर की नालियां बारिश के मौसम में सड़कों पर होकर बहती हों लेकिन ये सच है कि उन नालियों से निकलने वाली गंदगी किसी मलीन बस्ती का ही हिस्सा बनती है। रांची की तस्वीरें सरकार के वादों और इरादों के बीच की गहरी खाई का प्रदर्शन करती दिखाई देती हैं लेकिन व्यवस्थाओं को अमलीजामा पहनाना आज तक संभव नहीं हो पाया है। गिरता जल स्तर और हाथ बांधकर बैठे नगर निगम और विभाग के पदाधिकारी सुर्खियों में आने के लिए बयानों के बहादुर भले बन जायें लेकिन जमीनी सच्चाई यही है कि अब अगर हालात पर काबू नहीं पाया गया तो राजधानी के लोगों के लिए आने वाले दिनों में पानी की विकराल समस्या हो जाएगी।

डेली 87 एमजीडी पानी जरूरी

राजधानी रांची को हर दिन करीब 87 एमजीडी पानी की जरूरत है, जबकि सप्लाई मात्र 51 एमजीडी की हो पाती है। रूक्का डैम से एक दिन में 30 एमजीडी, गोन्दा डैम से 4 एमजीडी तो हटिया डैम से 10 एमजीडी पानी की आपूर्ति की जाती है। मतलब साफ है कि करीब 45 परसेंट लोगों को विभिन्न स्रोतों से पानी की व्यवस्था करनी पड़ती है।

4 मीटर गिरा ग्राउंड वाटर लेवल

पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के आंकड़े बताते हैं कि राजधानी रांची के शहरी क्षेत्र का ग्राउंड वाटर लेवल चार मीटर तक गिरा है। जिनके यहां बोरिंग है उन्हें हर गर्मी में बोरिंग फेल होने का डर बना रहता है। किशोरगंज, न्यू मधुकम, मधुकम, सुखदेव नगर, मोरहाबादी, आनंद नगर सहित कई ऐसे इलाके में जहां वाटर लेवल 300 फीट के पार चला गया है। वहीं हार्वेस्टिंग के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है। निगम में रजिस्टर्ड कुल 1 लाख 58 हजार घरों में से मात्र 11 हजार 200 घरों में हार्वेस्टिंग सिस्टम डेवलप किया गया है।

प्यास बुझाने को चाहिए 61 जलमीनार

नगर विकास विभाग ने शहर में पानी सप्लाई की कार्ययोजना बनाने के लिए जुडको को अधिकृत किया था। जुडको ने जो डीपीआर तैयार की थी उसके हिसाब से शहर को कम से कम 4 लाख 51 हजार 470 किलोलीटर पानी की जरूरत है उसके लिए शहर में कम से कम 61 जलमीनारों की जरूरत है। लेकिन वर्तमान में सिर्फ 24 जलमीनारें हैं जिनसे शहर की 40 फीसदी आबादी को ही करीब 1 लाख 71 हजार किलोलीटर यानी केएलडी वाटर की सप्लाई हो पा रही है।

पानी का अत्यधिक दोहन

पानी की कमी के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार सेक्टर है भवन निर्माण। कंक्रीट में तब्दील होते शहर में हर दिन अंधाधुंध निर्माण कार्य हो रहा है जिसके लिए पानी की बहुत ज्यादा जरूरत होती है। डीप बोरिंग कर निर्माण कार्य किया जा रहा है और नगर निगम ही कंस्ट्रक्शन वर्क के लिए डीप बोरिंग की परमिशन देता है। कंस्ट्रक्शन पूरा होने तक लाखों एमएलडी पानी बर्बाद हो जाता है।

रिचार्ज जोन एरिया में कंस्ट्रक्शन से परेशानी: नितिश प्रियदर्शी

प्रसिद्ध भू-गर्भ शास्त्री नितिश प्रियदर्शी का कहना है कि शहर में अंधाधुंध कंस्ट्रक्शन जिस प्रकार हो रहा है उससे पानी की समस्या और ज्यादा उत्पन्न होगी। सिटी के रिचार्ज जोन में इमारतें खड़ी कर दी गई हैं। तालाबों और नदियों के किनारे बन रही इमारतों से बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। कई तालाब खत्म हो गये, नदियों का अस्तित्व खतरे में हैं। वहीं बारिश भी समय पर नहीं होती है। पहले जहां मई महीने से वाटर लेवल नीचे जाता था वहीं अब जनवरी-फरवरी से ही वाटर लेवल नीचे की ओर खिसकने लगा है। चूंकि रांची हार्ड रॉक जोन है, पानी पत्थरों के दरारों के बीच मिलता है, लोग जहां तहां बोरिंग कर देते हैं और वाटर लेवल कहीं दूसरी स्थान पर चला जाता है। नितिश प्रियदर्शी का कहना है कि सिटी में 20-20 फीट की दूरी पर बोरिंग हो रही है, जो घातक हैं। लोग खुली जगहों को कंक्रीट से ढंक रहे हैं और हर बारिश में करीब 60 फीसदी पानी बह जाता है। जल संचयन की व्यवस्था नहीं है।