जल संकट की स्थिति उत्पन्न
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RANCHI: राजधानी की आधी आबादी पानी संकट से जूझ रही है। रांची शहर की बात की जाए तो विगत दस वषरें में पानी की समस्या जस की तस बनी हुई है। आधी से ज्यादा आबादी को एक दिन में मुश्किल से एक बार ही पानी मिल पा रहा है। आधी रांची ड्राई जोन से तब्दील है। लेकिन इस समस्या का अभी तक कोई हल नही निकला है। भीषण गर्मी के चलते झारखण्ड के झील-तालाब सूखते जा रहे हैं। जंगलों की कटाई, भूगर्भ जल का अत्यधिक दोहन और तकनीक के अत्यधिक इस्तेमाल से झारखण्ड में भारी जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है। अगर राजधानी रांची की बात करें तो अब से डेढ़-दो दशक पहले जहां महज 50 से 60 फीट की गहराई में लबालब पानी मिलता था, वहीं आज कई हिस्सों में 300-400 फीट बोरिंग में भी पानी नसीब नहीं हो रहा है।

नदियों के इर्द-गिर्द बसी आबादी
रांची में कई इलाके तालाब, जलाशय आदि के ना होने से ड्राई जोन घोषित हो चुके हैं, पठारी क्षेत्र होने से बरसात का जल भी रांची में नहीं ठहर पाता है। रांची की लगभग आधी आबादी को जलापूर्ति करने वाले गोंदा व हटिया डैम के इर्द-गिर्द जहां तेजी से आबादी बढ़ रही है, वहीं हरमू और स्वर्णरेखा नदी का अतिक्रमण कर लिया गया है। रांची में नई-नई इमारतें बनाने के लिए कई तालाबों, जलाशयों को भर दिया गया। फिलहाल रांची में मात्र 42 तालाब ही बचे हैं, जिसमें से अधिकतर या तो बेकार है या जीर्णोद्धार की बाट जोह रहे हैं। यह स्थिति तब है, जबकि वेटलैंड यानी आ‌र्द्र भूमि एरिया के अंतिम छोर से कम से कम 200 मीटर की परिधि में किसी तरह के निर्माण कार्य पर प्रतिबंध है। ऐसे में जैव विविधता का हश्र क्या होगा, यह भविष्य तय करेगा। दरअसल वेटलैंड सूखे की स्थिति में जहां पानी को बचाने में मदद करते हैं, वहीं बाढ़ के हालात में यह जलस्तर को कम करने व सूखी मिट्टी को बांध कर रखने में भी मददगार होते हैं।

कागज पर नगर निगम की योजना
राजधानी के लोग विगत कई सालों से गर्मी के मौसम में जरूरत का आधा पानी पीकर गुजारा कर रहे हैं। नई प्लानिंग सरकार और नगर निगम तो हर बार करती है, लेकिन उसे धरातल पर लाने में भारी कोताही बरती जाती है। पानी के संबंध में हर योजना अधूरी पड़ी है। कहीं पाइपलाइन है, तो सप्लाई का पानी नही है। जहां पानी की बहुतायत है, वहां पाइपलाइन नही है।

पानी संकट का विकराल रूप
रांची का आधे से ज्यादा हिस्सा ड्राई जोन में कन्वर्ट हो चुका है। कांके रोड, मोरहाबादी, लालपुर, बरियातू, रातू रोड समेत कई घनी आबादी वाले इलाके पूरी तरह ड्राई जोन में तब्दील होने लगे हैं, ऐसे में पानी की समस्या अति विकराल रूप ले रही है। इन इलाकों में ग्राउंड वाटर लेवल काफी नीचे जा चुका है।

क्या है ग्राउंड वाटर लेवल

बरियातू: 200-250 फीट

कांके: 350-400 फीट

हरमू: 200- 300 फीट

धुर्वा: 400-500 फीट

तुपुदाना: 300-400 फीट

रातू रोड: 400-500 फीट

कहीं लाल पानी तो कहीं वो भी नदारद
ड्राई जोन एरिया में कई स्थानों पर तो लाल रंग का पानी निकलता है। इस पानी में आयरन की मात्रा काफी अधिक रहती है, जो न तो पीने के योग्य है न ही स्किन के लिए ठीक है। इस पानी से कपड़े तक धोना मुश्किल है। क्योंकि सफेद कपड़े लाल रंग के दिखने लगते हैं। कई इलाकों में पानी पूरी तरह नदारद है। वहां की स्थिति और भी ज्यादा गंभीर हो गई है।

इन इलाकों में समय पर पानी नहीं
पानी की समस्या से जूझ रहे क्षेत्रों में बूटी, बरियातू, विकास, दीपा टोली, कोकर, मोरहाबादी, करमटोली, मेन रोड, हिंदपीढ़ी, चुटिया, डोरंडा, हरमू, विद्यानगर और रातू रोड का पूरा क्षेत्र शामिल है। सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र हिंदपीढ़ी और रातू रोड हैं। यहां लोग पूरी तरह सप्लाई पानी पर ही निर्भर हैं। चापाकल और निगम की टंकियों के ना होने से स्थिति और भी गंभीर हो गई।