- सोल कारोबारी राजकुमार लालवानी की हत्या के बाद गागा की थी पुलिस को तलाश

- गागा ने कोर्ट किया सरेंडर, पुलिस का गिरफ्तार करने का दावा साबित हुआ खोखला

आगरा। भरतपुर हाउस गोलीकांड को साढ़े तीन महीने से ज्यादा का वक्त गुजर चुका है। तभी से पुलिस आरोपियों में शामिल डिब्बा कारोबारी को गिरफ्तार करने का दावा कर रही थी। लेकिन पुलिस के हाथ गागा उर्फ स्वदेश वर्मा के गिरेबां तक तो दूर आसपास तक भी नहीं पहुंच सके। सोमवार को गागा ने पुलिस को गच्चा देते हुए कोर्ट में सरेंडर कर दिया, पुलिस हाथ मलती रह गई। पुलिस को महीनों से जिसकी तलाश थी, वो सरेंडर के करीब साढ़ें तीन घंटे बाद ही जमानत पर बाहर आ गया।

पहले भी किया था सरेंडर का प्रयास

दोपहर करीब 12 बजे गागा दीवानी पहुंचा। सीजेएम कोर्ट में सरेंडर किया। सुनवाई के दौरान उसे कोर्ट से राहत मिल गई। 20-20 हजार की दो जमानत व बंधपत्र पर रिहाई के आदेश हुए। बताया गया कि गागा पक्ष पहले भी कोर्ट आया, लेकिन देरी के चलते सुनवाई नहीं हो सकी थी। सोमवार को वह समय पर पहुंचे और सुनवाई हो सकी।

फोन करने पर भी नहीं पहुंची पुलिस

मृतक राजकुमार लालवानी के भाई सुदर लालवानी भी सोमवार को दीवानी परिसर में मौजूद थे। उन्होंने गागा के सरेंडर के दौरान पुलिस को फोन किया। दोपहर पौने 12 बजे से वह इंस्पेक्टर को कॉल मिलाते रहे, लेकिन फोन नहीं उठा। 12:27 पर कॉल उठा और बोला गया कि पुलिस अभी पहुंचती है। लेकिन पुलिस नहीं पहुंची। गागा आराम से अपनी कार से आया और कोर्ट में चला गया। सुंदर लालवानी के मुताबिक उसके साथ एक पुलिसकर्मी भी था। इससे पुलिस के रवैये पर भी सवाल उठ रहे हैं। गागा की जमानत के बाद मृतक कारोबारी के परिजन दहशत में हैं। सुंदर लालवानी का कहना था पता नहीं वह अब क्या करेगा।

पुलिस ने दिया गागा का साथ

इस मामले में थाने से एक एसआई गागा की पैरवी करते नजर आए। शनिवार को भी वह पैरवी करने आए थे, जबकि अब तक पुलिस गागा की अरेस्टिंग की बात करती रही। पुलिस ने गागा के खिलाफ कुर्की की तैयारी कर रखी थी। कोर्ट से मामले में 82 ले रखी थी।

पुलिस की दबिश और गागा की सैर

भरतपुर हाउस कॉलोनी में 20 जून को सोल कारोबारी राजकुमार ललवानी की हत्या की गई थी। तभी से पुलिस को इस केस में डिब्बा कारोबारी गागा की तलाश थी। तब से तीन सितम्बर तक करीब 105 दिन या साढ़े तीन से ज्यादा का समय बीत गया। इस दौरान पुलिस ने कई बार गागा तक पहुंचने की बात कही। अधिकारियों ने दावा किया कि जल्द ही वह गिरफ्त में होगा, लेकिन ये खोखले ही साबित हुए। पुलिस उसकी खोज में दबिश देने का दावा करती रही और गागा के देश-विदेश में सैर करने की खबर आती रहीं।

शुरू से ही किया बचाने का प्रयास

भरतपुर हाउस गोलीकांड में गागा को लेकर पुलिस का रवैया शुरू से ही सवालों के घेरे में रहा। मामले में शुरूमें रस्तोगी, चालक रवि व गागा पर हत्या का मुकदमा पंजीकृत किया गया। इंस्पेक्टर राजा सिंह के मुताबिक रस्तोगी ने मात्र गागा का नाम लिखा था। विवेचना में धारा हट गई और चौथ वसूली की धारा में गागा को नामजद किया गया।

दोस्ती से संघर्ष तक की कहानी

भरतपुर हाउस निवासी राजकुमार लालवानी का सिकंदरा एरिया में सोल का कारोबार था। उसके साथी संजीव रस्तोगी का किनारी बाजार में चांदी का काम है। दोनों में गहरी दोस्ती थी, लेकिन डिब्बे के काम जब हाथ काले हुए तो दोस्ती दुश्मनी में बदल गई। डिब्बे के खेल ने लालवानी को कर्जदार बना दिया। 20 जून को संजीव रस्तोगी लालवानी के घर गया। किसी बात पर विवाद हुआ फायरिंग हुई। लालवानी के सिर में गोली लगी, जबकि रस्तोगी की कमर की तरफ रीढ़ की हड्डी के पास दो गोली लगीं। परिजनों ने रस्तोगी के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कराया। परिजनों को भी षड़यंत्र में दोषी ठहराया।

Posted By: Inextlive