अर्चना को बचपन में आधा किलोमीटर भी पैदल चलने की इजाजत नहीं थी लेकिन एक दिन उन्होंने एक वॉकाथान में 45 किलोमीटर पैदल चलकर सारे दायरे तोड़ दिए. फिर इस हौसले ने कुछ ऐसी उड़ान भरी कि अब वह इंडिया की पहली सिविलियन बेस जम्पर और स्काइडाइवर हैं. जानते हैं एक ट्रेडिशनल वुमन से बेस जम्पर और स्काइडाइवर बनने तक की उनकी कहानी...


आसमान से छलांग लगाने का खयाल पहली बार कब और कैसे आया?बात 1997 की है जब मैं अपने हसबैंड राजीव के साथ हनीमून पर दार्जिलिंग गई थी. राजीव एक सबमरीन ऑफिसर हैं और स्पोर्ट लविंग पर्सन हैं. एक दिन वहां एक वॉकाथान हुआ जिसमें हम दोनों शामिल हुए, तब मैं 45 किमी पैदल चली. पैरों में छाले पड़ गए थे लेकिन मैंने अपना टारगेट अचीव किया. मैंने रियलाइज किया कि मैंने जो चाहा वह पूरा कर लिया. फिर राजीव का मोटिवेशन और मेरा डेडिकेशन काम आया. मैं हिमायलन माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट के 15 दिन के कोर्स में एनरोल हो गई और इस तरह मेरा हौसला बढ़ता गया. मैं एडवेंचर को एंज्वॉय करने लगी, एडवेंचरस टास्क के दौरान मैं कम्फर्टेबल फील करने लगी.Read more: VJ Bani-Girl with 20 tattoosपहला जंप लगाने से ठीक पहले आप कैसा फील कर रही थीं?
कुछ ऐसी फीलिंग थी जो अपने आप में एकदम डिफरेंट थी. यह काम पहली बार कर रही थी इसलिए एक अनजाना डर जरूर था. मेरा पहला ट्रायल जंप 18 अक्टूबर 2007 को यूएसए के सॉल्ट लेक सिटी में हुआ था. वहां दो इंस्ट्रक्टर मुझे पकड़े हुए थे. मैं बहुत ज्यादा कंफर्टेबल नहीं थी. जमीन और आसमान के बीच वह एक लाइफ चेंजिंग मोमेंट था.


क्या आपको लगा कि मेल डॉमिनेटिंग काम करके आपने दायरे तोड़ दिए?मुझे यह जरूर लगा कि मैंने कुछ नया और बड़ा काम किया है लेकिन ऐसा भी नहीं है मेल डॉमिनेटिंग फील्ड से जुड़ा काम वुमन नहीं कर सकती है. इंडिया में स्कोप कम है लेकिन विदेशों में यह आम बात है.Read more: Gul Panag-Put your life in the fourth gear!अमूमन लोग स्काइडाइविंग के बाद बेस जम्पिंग में आते हैं लेकिन आपने पहले बेस जम्पिंग की और बाद में स्काइडाइविंग, कोई खास वजह?असल में यह कोई ऐसी फील्ड तो है नहीं जहां आप आज रिहर्सल कर लें और कल फाइनल परफॉर्मेंस दे दें. यहां प्रैक्टिस के दौरान ही फाइनल कट होता है. राजीव के मोटिवेशन ने मुझे कभी भी सेफ ह्रश्वलानिंग के बारे में सोचने नहीं दिया.जंप करने के बाद क्या ये खयाल आया कि आप दुनिया का सबसे टफ काम भी कर सकती हैं?

मैं यह तो नहीं कहूंगी कि दुनिया के हर टफ काम मैं कर सकती हंू लेकिन हवाओं की उड़ान और समुद्र की गहराइयों ने मुझे इतना हौसला जरूर दे दिया है कि मैं उस काम को एक बार ट्राई जरूर करना चाहूंगी. कोई भी एडवेंचरस वर्क आपकी मेंटल पॉवर को इंक्रीज करता है, आपको रिलैक्स करता है. इस दौरान हमें यही सिखाया जाता है कि अगर आपने ठान लिया है तो बस उसे पूरा करने में जुट जाएं.Read more: For Ami Shroff gender is no barक्या एडवेंचर का कीड़ा या कुछ हटकर करने की सोच बचपन से ही दिमाग में थी?नहीं. बिल्कुल नहीं, इंफैक्ट मैं इंटीरियर डिजाइनिंग भी इस सोच के साथ नहीं कर रही थी कि मुझे इसमें करियर बनाना है. मेरी थिंकिंग थी कि चलो कुछ नहीं तो अपना घर तो बेहतर ढंग से डेकोरेट कर सकूंगी.कभी लगा कि ये सब बस की बात नहीं?नहीं...मैंने ठान लिया था कि इसे पूरा करके रहूंगी, ऐसे में मैं कमजोर कैसे पड़ सकती थी.'मुझे बस स्पेस मिले,वो स्पेस जहां सिर्फ मैं हूं, मेरी सोच हो, मेरे ख्वाब हो. चाहे मैं बंद कमरे में बैठकर सोचूं या उसे हकीकत में पूरा करूं वह छूट मिलनी चाहिए.'-Archana Sardana, SkydiverWhy did we choose her?
क्योंकि हवा में छलांग लगाने के इनके हौसलों से देश की आम लड़कियां भी इंस्पायर होती हैं. क्योंकि वह वुमन के लिए पर्सनल स्पेस की वकालत करती हैं. क्योंकि वह लड़कियों को उनके पैशन को फॉलो करने के लिए इंस्पायर करती हैं.Who is Archana Sardana?-अर्चना सरदाना इंडिया की पहली सिविलियन वुमन स्काइडाइवर और बेस जंपर हैं.-अर्चना ने कई बेस जंप्स और 60 अंडरवॉटर डाइव्स दुनिया की अलग-अलग जगहों से कंप्लीट किए हैं.-वह युनाइटेड स्टेट्स पैराट्रूपर्स एसोसिएशन की ओरसे 335 स्काइडाइव्स कंह्रश्वलीट कर,सी लाइसेंस पाने वाली पहली इंडियन वुमन हैं.-इस अचीवमेंट के लिए 2011 में उनका नाम लिमका बुक ऑफ रिकॉड्र्स में भी दर्ज हुआ.

Posted By: Satyendra Kumar Singh