24 अक्‍टूबर 1921 को जन्‍मे आरके लक्ष्‍मण को लोग बेहतरीन भारतीय काटूर्निस्‍ट के रूप में जानते हैं. यूं तो उनके हाथ से बना हर एक कार्टून अपने आप में अद्भुत है लेकिन उनके कुछ खास काम ऐसे हैं जिनका नाम लेते ही आंखों के सामने आरके लक्ष्‍मण्‍ा की छवि अपने आप ही उभर आती है. उनके ऐसे कामों में से एक है उनकी रचना 'द कॉमन मैन'. लक्ष्‍मण ने अपना कॅरियर लोकल अखबारों और मैग्‍जीन्‍स में एक पार्ट टाइम कार्टूनिस्‍ट के रूप में शुरू किया. कॉलेज स्‍टूडेंट रहते हुये उन्‍होंने अपने भाई आरके नारायण की कहानियों को कार्टून्‍स की जुबानी बयां किया. अपने पढ़ाई के दौरान वह शिवसेना संस्‍थापक बाल ठाकरे के सहपाठी भी रहे हैं. लंबे समय तक पॉलिटिकल कार्टूनिस्‍ट के रूप में काम करने के बाद उन्‍होंने 'टाइम्‍स ऑफ इंडिया' ज्‍वाइन किया और यहां से 'कॉमन मैन' करेक्‍टर के लिये प्रसिद्ध हो गये. आइये जानें आरके लक्ष्‍मण के कुछ खास कामों के बारे में...


एशियन पेंट का गट्टू : दीवारों पर ब्रश्ा और रंगों का जादू  


एशियन पेंट्स का पेंटर ब्वॉय गट्टू तो आप सबको याद होगा ही. अगर ये कहा जाये कि आर के लक्ष्मण ने 1954 में एशियन पेंट्स के गस्टी गट्टू को जन्म दिया था, तो ये गलत नहीं होगा. आर के लक्ष्मण की ये क्रियेशन गट्टू इसी सन में प्रकाश में आई थी, जब एशियन ऑयल और पेंट कंपनी बड़े पैमाने पर 3.5 लाख रुपये के टर्नओवर पर कारोबार कर रही थी. हाथों में पेंट ब्रश पकड़े ये शरारती स्ट्रीट ब्वॉय की तस्वीर एशियन पेंट्स की कॉरपोरेट भूमिका की याद दिलाती है.  गट्टू के स्केच को देखकर ऐसा लगा जैसे इस शरारती लड़के ने पूरे भारत के लिये रंगों की पूरी दुनिया को ही खोलकर रख दिया हो. आरके लक्ष्मण की बनाई उसकी तस्वीर पेंट ब्रश के उस जादू को बयां कर रही थी जो भारत के अनगिनत घरों और संरचनाओं के दीवारों पर छाने वाला था.1954 से 2006 तक इस गट्टू का जादू जमकर चला और उसके बाद 2006 में वो खुद ब खुद गायब हो गया.मालगुड़ी डेज : स्वामी और उसके दोस्तों की दुनिया

मालगुडी डेज आरके नारायण के प्रसिद्ध उपन्यासों में से एक है. आरके लक्ष्मण ने अपने भाई के इस उपन्यास को पूरी तरह से कार्टून की जुबानी बयां किया. मालगुडी डेज की कहानी की बात करें तो ये कहानी है कुछ मध्यमवर्गीय और उच्चवर्गीय दोस्तों की. ये दोस्त मालगुडी गांव के इकलौते स्कूल में एक साथ पढ़ते हैं और एकदूसरे के सुख-दुख में बराबरी से शामिल होते हैं. इनके बीच की पूरी कहानी को आरके लक्ष्मण ने अपने स्केचेस के माध्यम से बयां किया है. इसके बाद इनकी कहानी में एक समय वो भी आता है जब ये दोस्त एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं. अब बात करें मालगुडी डेज के लेखक की तो आरके नारायण का जन्म मद्रास में 1906 में हुआ था. उन्होंने अपना स्नातक महाराजा कॉलेज माईसोर से पूरा किया. उन्होंने 1935 में 29 साल की उम्र में अपना पहला नॉवेल 'स्वामी एंड फ्रेंड्स' लिखा. यहां से शुरू हुआ मालगुडी का सफर, जब एक शहर का जन्म हुआ. उन्होंने कई बेहतरीन उपन्यास, पांच लघु कथायें, दो ट्रैवेल बुक्स, चार निबंध संग्रह, एक संस्मरण और कुछ भारतीय महाकाव्यों और मिथकों के अनुवाद भी लिखे. अब अगर कोई ये कहे कि नारायण इंग्लिश के महान भारतीय लेखक थे, तो ये कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. अपने काटूर्निस्ट भाई आरके लक्ष्मण की ही तरह उन्होंने भी खूब प्रसिद्धी बटोरी.तमिल फिल्म : कामराज   2004 में आई तमिल फिल्म कामराज एक बायोग्राफिकल फिल्म है. 2004 में आई तमिल फिल्म कामराज एक बायोग्राफिकल फिल्म है. निर्देशक बालाकृष्णन की बनाई फिल्म तमिलनाडु के राजनेता के. कामराज की जिंदगी पर आधारित है. इन्हें व्यापक रूप से 1960 की भारतीय राजनीति का 'किंग मेकर' स्वीकार किया गया. कामराज 1954 से 1963 तक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और 1952 से 1954  तक व 1969 से 1975 तक सांसद बनकर रहे.Hindi News from India News Desk

 

Posted By: Ruchi D Sharma