ऑफिस में पर्सनल होना पड़ सकता है महंगा
ऑफिस में लोग लगभग अपना पूरा दिन बिताते हैं. कुछ को-वर्कर्स अच्छे फ्रेंड्स भी बन जाते हैं. अब पूरा दिन उनके साथ रहने पर बातें भी खूब होती हैं जिसमें पर्सनल लाइफ भी शामिल होती है. इन सारी चीजों के साथ हम ऑफिस में ही एक और घर बना लेते हैं और कहीं ना कहीं पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ के बीच की लाइन धीरे-धीरे हल्की होने लगती है. इस पर एक्सपट्र्स कहते हैं कि जहां ऑफिस में फ्रेंडली एंवॉयरमेंट वर्क प्रोडक्टिविटी को इंप्रूव करता है वहीं कलीग्स या बॉस से हद से ज्यादा पर्सनल लाइफ शेयर करना बेहद हार्मफुल प्रूव हो सकता है. वे कहते हैं कि अगर प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ के बीच बाउंड्री ना बनाई जाए तो प्रोफेशनल लेवल पर एक वर्कर की ना सिर्फ वर्किंग एबिलिटीज बल्कि सेल्फ रिप्सेक्ट पर भी असर पड़ सकता है. इसीलिए पर्सनल लाइफ से रिलेटेड डिस्कशंस में सोच समझकर इन्वॉल्व होना चाहिए.
एक्सपट्र्स तो ये भी कहते हैं कि खुद को पूरी तरह अलूफ रखना भी कोई समझदारी नहीं पर पर्सनल लेवल पर मिस्टीरियस होना बहुत जरूरी है. तो अगर आपके ऑफिस में भी ऐसा ही एंवॉयरमेंट बना हुआ है तो जानिए कुछ डूज एंड डोंट्स जो पर्सनल लाइफ को प्रोफेशनल लाइफ से दूर रखने में आपकी हेल्प करेगा.
Don’t get personal with your bossहो सकता है आपके अपने बॉस के साथ प्रोफेशनल टम्र्स काफी अच्छे हों पर पर्सनल लेवल पर भी ऐसा हो, ये जरूरी नहीं. बॉस को अगर आपके बारे में जरूरत से ज्यादा इंफॉर्मेशन है तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि अपने बेनिफिट के लिए वह आपका फायदा नहीं उठाएगा या फिर ये भी हो सकता है उसका आपको देखने का नजरिया भी बदल जाए. बॉस के साथ ज्यादा मिंगल होने से उसपर एक तरह की डिपेंडेंसी भी बन जाती है जो आपकी वर्किंग एबिलिटीज को अफेक्ट कर सकती है. किसी इंपॉर्टेंट सिचुएशन पर बॉस के साथ आपका पर्सनल रिलेशन कभी काम नहीं आ सकता.
ऑफिस कलीग्स बहुत ज्यादा पर्सनल ना हो पाएं और एक हेल्दी एंवॉयरमेंट बना रहे इसके लिए भी कुछ बातों का जानना जरूरी है.सबसे पहले ये जानने की कोशिश करें कि आप सबसे ज्यादा किसके साथ सहज महसूस करते हैं और ट्रस्ट कर सकते हैं. प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ के बीच बाउंड्री खड़ी करने के लिए कलीग्स या फ्रेंड्स से वर्किंग ऑवर की बजाय लंचटाइम या छुट्टी के बाद बात करना प्रिफर करें. पर्सनल लाइफ से रिलेटेड डिस्कशन को सोच-समझ कर करना चाहिए. किसी पर्सनल प्रॉब्लम को खुद ही सुलझाने की कोशिश करें. उसका असर काम पर बिलकुल न आने दें.
आराधना गुप्ता, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट, कानपुर