हिंदी की खाते हैं और अंग्रेजी गाते हैं
हिंदी दिवस विशेष
-हिंदी वतन में दे रहे हैं अंग्रेजी को बढ़ावा, हिंदी को दरकिनार करने पर तुली है आज की युवा पीढ़ी -आठ माह के अंदर डेढ़ दर्जन से अधिक बॉलीवुड फिल्मों के नामकरण अंग्रेजी में हुए VARANASI हिंदी दिवस को लेकर तमाम तर्क दिये जा रहे हैं। हिंदी को बढ़ावा देने के लिए बड़ी-बड़ी बातें हो रही हैं। कई योजनाएं बन रही हैं फिर भी हिंदी का पतन तेजी से हो रहा है। खासकर युवा पीढ़ी ने तो हिंदी को बिल्कुल ही दरकिनार करके रख दिया है। बॉलीवुड फिल्में भी रिलीज हो रही हैं तो उसके नामकरण भी अंग्रेजी में ही हो रहे हैं। यानि की हिंदी की खाते हैं और अंग्रेजी की गाते हैं। कुछ ऐसा ही हिंदी के विद्वानों का भी मत है।यह बाजारी संस्कृति व मानसिक दासता का प्रतीक है जो इस तरह से हिंदी फिल्मों के नामकरण अंग्रेजी में हो रहे हैं। युवा पीढ़ी भी कहीं न कहीं हिंदी में बाधा उत्पन्न कर रही है। हिंदी के प्रति जो लगाव होना चाहिए उसमें बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं। आज की पीढ़ी मोबाइल, गूगल में फंस कर रह गई है। इंटरनेट की संस्कृति बढ़ रही है। जो कहीं न कहीं गलत भी है।
प्रो। श्रद्धानंद काशी विद्यापीठआज कल की फिल्मों नें हिंदी को तहस नहस करके रख दिया है। उनकी भाषाएं ही समझ में नहीं आ रही है। गीतों का कोई अर्थ समझ में नहीं आ रहा है, सिर्फ शो बनकर रह गया है। इससे भाषा का नुकसान हो रहा है। भाषा का नुकसान होने का मतलब हमारे संस्कार का नुकसान हो रहा है। मतलब कि विकृति संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं जो हमारे जीवन पर बुरा प्रभाव डाल रही है। मानवीय रिश्तों में कड़वाहट आ रही है। नई पीढ़ी को आनंद के अलावा कुछ दिख ही नहीं रह रहा है।
प्रो बलराज पांडेय हिंदी डिपार्टमेंट बीएचयू कई वर्षो से हिंदी के साथ मजाक हो रहा है। जब टीवी में यह होने लगा था कि ये दिल मांगे मोर और दस साल पहले फिल्म आई थी, जब वी मेट। यह सब हिंदी इंग्लिश में खिचड़ी हो रही है। यह हिंदी की अवमानना है, इसका विरोध होना चाहिए। सेंसर बोर्ड को ध्यान रखना चाहिए कि हिंदी फिल्म का शीर्षक हिंदी में और इंग्लिश में है तो इंग्लिश होना चाहिए। यहां तक दूरदर्शन में हिंदी के साथ मजाक होने लगा है। कुमार पंकज डीन, हिंदी डिपार्टमेंट बीएचयूबाजार को देख कर अब फिल्में बन रही हैं, सोचते हैं कि अंग्रेजी शीर्षक दें देंगे तो फिल्में लोगों को ज्यादा आकर्षित करेंगी। हालांकि यह गलत है। दूसरा पहलू यह भी है कि आज जो हिंदी का महत्व है वह बाजार के नाते ही हैं। टीवी पर आने वाला दिल मांगे मोर, मशहूर विज्ञापन है इसमें हिंदी व अंग्रेजी दोनों है। हिंदी के पास तो ऐसी ताकत है, जो दूसरे शब्दों को भी अपने भीतर समाहित कर लेता है। अंग्रेजी शब्दों को समाहित करने की क्षमता भी हिंदी के अंदर है।
प्रो। सदानंद शाही हिंदी डिपार्टमेंट, बीएचयू आठ माह में क्9 मूवी मंथ मूवीज क्भ् जनवरी चॉक एंड डस्टर ख्ख् जनवरी एयरलिफ्ट भ् फरवरी घायल वंस अगेन क्ख् फरवरी डायरेक्ट इश्क क्9 फरवरी इश्क फॉरेवर ख्म् फरवरी बॉलीवुड डायरी क्8 मार्च कपूर एंड संस ख्भ् मार्च रॉकी हैंडसमक् अप्रैल की एंड का
8 अप्रैल ब्लू बेरी हंट क्भ् अप्रैल फैन ख्9 अप्रैल शॉर्टकट सफारी म् मई वन नाइट स्टैंड, ट्रैफिक क्फ् मई बुद्धा इन ट्रैफिक जाम फ् जून हाउसफुल थ्री क्भ् जुलाई ग्रेट गैंड मस्ती ख्भ् अगस्त फ्लाइंग जट्ट 7 सितंबर फ्रिकी अली