वर्ष 1916 की गर्मियों में जिन्ना के मुवक्किल और दोस्त सर दिनशॉ पेतित ने मुंबई की गर्मी से बचने के लिए उन्हें दार्जिलिंग आने की दावत दी. वहीं जिन्ना की मुलाकात सर दिनशॉ की 16 साल की बेटी रती से हुई जिनका शुमार अपने ज़माने की बंबई की सबसे हसीन लड़कियों में हुआ करता था.


तीक्ष्ण बुद्धि वाली रती की जितनी दिलचस्पी रोमानी कविताओं में थी, उतनी ही राजनीति में भी. जिन्ना भारतीय राजनीति के शिखर को छूने के बिल्कुल करीब थे.सुनिए विवेचना: रती-जिन्ना की प्रेम कहानीहालाँकि उस समय उनकी उम्र 40 की थी, लेकिन दार्जिलिंग की बर्फ़ से ढकी ख़ामोश चोटियों और रती के बला के हुस्न ने ऐसा समा बाँधा कि रती और जिन्ना एक दूसरे के प्रेम पाश में गिरफ़्तार हो गए.विस्तार से पढ़ें विवेचनाशीला रेड्डी बीबीसी हिंदी के स्टूडियो मेंदो धर्मों के बीच दोस्ती का उनका फ़ॉर्मूला पहले ही परीक्षण में नाकामयाब हो गया. इसके बाद दिनशॉ ने उनसे कभी बात नहीं की और रती पर भी पाबंदी लगा दी कि जब तक वो उनके घर में रह रही हैं, वो जिन्ना से कभी नहीं मिलेंगी.
और तो और उन्होंने अदालत से भी आदेश ले लिया कि जब तक रती वयस्क नहीं हो जातीं, जिन्ना उनसे नहीं मिल सकेंगे.दो साल तक इंतज़ारपंडित जवाहर लाल नेहरू, लॉर्ड माउंटबेटन, मोहम्मद अली जिन्नाजिन्ना की अपने से 24 साल छोटी लड़की से शादी उस ज़माने के दकियानूसी भारतीय समाज के लिए बहुत बड़ा झटका थी.


जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित ने अपनी आत्मकथा द स्कोप ऑफ़ हैपीनेस में लिखा है, "श्री जिन्ना की अमीर पारसी सर दिनशॉ की बेटी से शादी से पूरे भारत में एक तरह का आंदोलन खड़ा हो गया. मैं और रती करीब-करीब एक ही उम्र की थीं, लेकिन हम दोनों की परवरिश अलग-अलग ढ़ंग से हुई थी. जिन्ना उन दिनों भारत के नामी वकील और उभरते हुए नेता थे. ये चीज़ें रती को अच्छी लगती थीं. इसलिए उन्होंने पारसी समुदाय और अपने पिता के विरोध के बावजूद जिन्ना से शादी की."रती के जीवनीकार ख़्वाजा रज़ी हैदर ख़्वाजा रज़ी हैदर लिखते हैं कि सरोजिनी नायडू भी जिन्ना के प्रशंसकों में से एक थीं और 1916 के कांग्रेस अधिवेशन के दौरान उन्होंने जिन्ना पर एक कविता भी लिखी थी.जिन्ना के जीवनीकार हेक्टर बोलिथो ने अपनी किताब में एक बूढ़ी पारसी महिला का ज़िक्र किया है जिसका मानना था कि सरोजिनी को भी जिन्ना से इश्क था, लेकिन जिन्ना ने उनकी भावनाओं का जवाब नहीं दिया. वो ठंडे और अलग-थलग बने रहे.हालाँकि सरोजिनी बंबई की नाइटिंगेल के रूप में जानी जाती थीं लेकिन जिन्ना पर उनके सुरीले गायन का कोई असर नहीं हुआ.

जिन्ना के एक और बॉयोग्राफ़र अज़ीज़ बेग ने रती और सरोजिनी नायडू के जिन्ना के प्रती प्रेम का ज़िक्र अपनी किताब में एक अलग शीर्षक के तहत किया है और उसका नाम उन्होंने दिया है, ’टू विनसम विमेन.’अज़ीज़ बेग लिखते हैं कि एक फ़्रेंच कहावत है कि मर्दों की वजह से औरतें एक दूसरे को नापसंद करने लगती हैं. लेकिन सरोजिनी में रती के प्रति जलन का भाव कतई नहीं था. वास्तव में उन्होंने जिन्ना को रती से शादी करने में मदद की.ग़ज़ब की ख़ूबसूरतमोहम्मद अली जिन्ना अगस्त 1947 में कराची में एक कार्यक्रम के दौरानप्रोफ़ेसर शरीफ़ अल मुजाहिद रती जिन्ना के बारे में एक दिलचस्प किस्सा सुनाते हैं. एक बार बंबई के गवर्नर विलिंगटन ने जिन्ना दंपति को खाने पर बुलाया.रती भोज में एक लो कट पोशाक पहन कर गईं. जब वो खाने की मेज़ पर बैठीं तो लेडी विलिंगटन ने अपने एडीसी से कहा कि वो रती जिन्ना के लिए एक शॉल ले आएं. कहीं उन्हें ठंड न लग रही हो.
ये सुनते ही जिन्ना तुरंत उठ खड़े हुए और बोले, "अगर श्रीमती जिन्ना को ठंड लगेगी तो वो शॉल मांग लेंगी." वो विरोध स्वरूप अपनी पत्नी को डायनिंग हॉल से बाहर ले गए और विलिंगटन के रहते उन्होंने गवर्नमेंट हाउज़ का कभी रुख़ नहीं किया.रती मुंहफट भी थीं. 1918 में जब लॉर्ड चेम्सफ़ोर्ड ने उन दोनों को शिमला के वायसराय लॉज में भोज पर बुलाया तो उन्होंने हाथ जोड़ कर भारतीय तरीके से वायसराय का अभिवादन किया.भोज के बाद चेम्सफ़ोर्ड ने उन्हें सलाह दी कि अगर वो अपने पति के राजनीतिक करियर को फलते-फूलते देखना चाहती हैं जो उन्हें वही करना चाहिए जैसे रोम में रहने वाले रोम में करते हैं.रती ने छूटते ही जवाब दिया, "एक्सलेंसी मैंने वैसा ही किया जैसा कि आप कह रहे हैं. भारत में मैंने भारतीय तरीके से आपका अभिवादन किया!"ख़्वाजा रज़ी हैदर बताते हैं कि एक और मौके पर रती एक भोज में वायसराय लॉर्ड रेडिंग की बगल में बैठी हुई थी.जर्मनी की बात चल निकली तो लॉर्ड रेडिंग ने कहा कि मैं जर्मनी जाना चाहता हूँ, लेकिन युद्ध के बाद जर्मन हम ब्रिटेनवासियों को अब पसंद नहीं करते... इसलिए मैं वहाँ नहीं जा सकता. रती ने फ़ौरन कहा, "तब आप भारत में क्या करने आए हैं ( भारत के लोग भी तो आपको पसंद नहीं करते?)"जिन्ना और रती के बीच बढ़ती दूरी
बाएं से- पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाक़त अली, मोहम्मद अली जिन्ना, लॉर्ड माउंटबेटन, जिना की बहन फ़ातिमा और लेडी माउंटबेटन20 फ़रवरी, 1929 को मात्र 29 साल की उम्र में रती जिन्ना का निधन हो गया.जिन्ना के सचिव रहे और बाद में भारत के विदेश मंत्री बने मोहम्मद करीम छागला अपनी आत्मकथा 'रोज़ेज़ इन दिसंबर' में लिखते हैं, "जब रती के पार्थिव शरीर को कब्र में दफ़न करने के बाद जिन्ना से कहा गया कि सबसे नज़दीकी रिश्तेदार होने के नाते वो कब्र पर मिट्टी फेंके तो जिन्ना सुबक-सुबक कर रो पड़े थे. ये पहली और आख़िरी बार था जब किसी ने जिन्ना को सार्वजनिक रूप से अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए देखा था."बहुत कम लोगों को पता है कि लंदन में अपनी पढ़ाई के दौरान जिन्ना शेक्सपियर के किरदार रोमियो की भूमिका निभाने के लिए तरसा करते थे. ये भाग्य की विडंबना ही थी कि जिस प्रेम कथा की शुरुआत एक परी कथा की तरह हुई थी, उसका अंत जिन्ना के हीरो शेक्सपियर के मशहूर नाटकों के दुखाँत की तरह हुआ.

Posted By: Satyendra Kumar Singh