भारत के लिए क्या है मोदी और राहुल का विज़न?
बिहार में नरेंद्र मोदी को कई बार आने से रोका गया है, इसलिए उनका वहां की जनता के बीच कुछ आकर्षण बना हुआ था और जिस तरह से कॉर्पोरेट जगत और मीडिया ने उनकी इमेज बना दी है, तो वे इसी का लाभ उठा रहे हैं.राहुल गांधी के पास भी मनरेगा, खाद्य सुरक्षा विधेयक, भूमि अधिग्रहण जैसी उपलब्धियां गिनाने के लिए हैं.लेकिन इन दोनों के भाषणों में भारत के निर्माण का कोई विज़न नहीं है. न ही राहुल गांधी के पास ऐसा कोई विज़न दिख रहा है और न ही नरेंद्र मोदी के पास.नरेंद्र मोदी की एक ऐसी इमेज बना दी गई है कि जैसे वही प्रधानमंत्री बनने वाले हैं. उसी का फ़ायदा उठाने के लिए नरेंद्र मोदी उग्र राष्ट्रवाद का मामला ज्यादा उछाल रहे हैं.
ये दोनों ही एक-दूसरे पर टीका-टिप्पणी में उलझ गए हैं. जहां तक मोदी का सवाल है, तो वे अपनी शर्तों पर लोगों को खींच रहे हैं. मोदी के चक्रव्यूह में कांग्रेसी फंसते जा रहे हैं.दिल्ली की रैली में राहुल गांधी ने ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे लगे कि देश में निचले और ग़रीब तबकों के लिए उनके पास कोई खास दृष्टि हो. यही हाल नरेंद्र मोदी का भी है.
लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी जहां सरकार की उपलब्धियां गिनाकर वोट देने की अपील कर रहे हैं वहीं नरेंद्र मोदी केंद्र सरकार और बिहार सरकार की खामियां गिनाने में ही लगे रहे.महंगाई, भ्रष्टाचार असल समस्या
जहां तक राहुल द्वारा अपने परिवार की क़ुर्बानियों के ज़िक्र का सवाल है, तो आज इक्कीसवीं सदी में इन चीजों का उतना मतलब मतदाता के लिए नहीं रह गया है. उसकी असल समस्या बिजली, पानी, मकान और रोज़गार की है.नेताओं से मतदाता यही अपेक्षा कर रहे हैं, लेकिन अफ़सोस की बात है कि राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी दोनों ही मतदाताओं को इन चीजों के बारे में कोई ठोस आश्वस्ति नहीं दे पा रहे हैं.