जानें नेपाल ने क्यों तोड़ दी अपनी 300 साल पुरानी ये परंपरा
लाखों जानवरों की जान बचेगी
नेपाल में यह गढ़ीमाई उत्सव हर 5 साल में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस उत्सव में लाखों की संख्या में जानवरों की बलि दी जाती है। यहां पर पशुओं की बलि के बिना यह उत्सव अधूरा माना जाता है। ऐसे में अब नेपाल के गढ़ीमाई मंदिर के ट्रस्ट ने इस दिशा में ठोस कदम उठाने का विचार किया है। कल यहां के अध्यक्ष रामचंद्र शाह का कहना था कि गढीमाई मंदिर ट्रस्ट पशु बलि समाप्त करने के हमारे औपचारिक निर्णय की घोषणा करता है। जिससे अब इस उत्सव में कोई जानवरों को साथ नहीं लाएगा, क्योंकि अब ये बलि प्रथा पूरी तरह से खत्म कर दी जाएगी। उनका कहना था कि हिंसा की जगह शांति से पूजा अर्चना करना होगा। इससे पूजा ज्यादा सार्थक होगी और लाखों जानवरों की जान बचेगी। ऐसे में यहां के लोगों को इस दिशा में खुद बढकर आगे आना चाहिए। जिससे की गढीमाई उत्सव 2019 को हम रक्तपात रहित मनाया जाए। इससे गढीमाई 2019 का यह उत्सव हमारे जीवन में नए उत्सव के आगमन की कहानी लिखेगा।जानवरों की बलि क्रूर प्रथा
ऐसे में ट्रस्ट के इस फैसले से पशु अधिकार कार्यकर्ता काफी खुश हैं। उन्होंने इस 300 साल पुरानी प्रथा को मिटाने वाले इस फैसले का स्वागत किया है। ये पशु अधिकार कार्यकर्ता काफी समय से बलि परंपरा के खिलाफ अभियान चलाते रहे हैं। इस संबंध में ह्यूमन सोसाइटी इंटरनेशनल इंडिया के गौरी मौलेखी का कहना है कि जानवरों की बलि क्रूर प्रथा है। इसको दुनिया में किसी भी देश को नहीं होना चाहिए। मौलेखी ने भारत से जानवरों को नेपाल के गढ़ीमाई उत्सव में जाने के रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी भी दी थी। जिससे आज वह इस फैसले से काफी खुश हैं। इसके अलावा अभी भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी इस दिशा में नेपाल के करीबी भारतीय राज्यों को जागरुक रहने के निर्देश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पशुओं को गढ़ीमाई ले जाने से रोकने की दिशा में कठोर कदम उठाएं।
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