बिना गुरू के नहीं होगा गीता का ज्ञान प्राप्त
अजुर्न से पहले कृष्ण ने सूर्य को दिया था गीता का उपदेश
यदि गीता के चतुर्थ अध्याय के प्रथम श्लोक के अनुसार देखा जाए तो महाभारत काल में अर्जुन को गीता के उपदेश देने के पहले श्रीकृष्ण एक भिन्न लोक में लाखों वर्ष पूर्व सूर्य देवता विवस्वान को कर्मयोग का ज्ञान दिया था। वही ज्ञान सूर्य ने अपने पुत्र मनु को दिया था और मनु ने उसे अपने शिष्य इक्ष्वाकु को दिया।
गुरू शिष्य परंपरा से ही आगे चलता है गीता का ज्ञान
उसके बाद लाखों वर्ष तक गीता का ज्ञान गुरू शिष्य परंपरा से ही आगे चलता रहा और कालांतर में वो लुप्त हो गया। इसके बाद श्रीकृष्ण ने पुन अजुर्न को उसका ज्ञान दिया। गीता के विभिन्न अध्यायों में वर्णित श्लोकों के आधार पर पता चलता है कि कृष्ण ने अजुर्न से कहा कि जो उपदेश वो उन्हें दे रहे हैं वो ना तो नया है और ना ही पहली बार वो इसे दे रहे हैं। परंतु ये बार बार लुप्त हो जाता है इसलिए इसे उन्हें इसे बार बार दोहराना पड़ता है। क्योंकि ये सुयोग्य व्यक्ति द्वारा सुपात्र को ही देने से सार्थक होता है। इसीलिए महज अध्ययन कर आप गीता पर ना तो टीका लिखने केअधिकारी हो जाते हैं और ना ही महज अध्ययनशील होने से गीता का ज्ञान पाने के लिए व्यक्ति सुपात्र हो सकता है। ज्ञान देने वाले को गीता के मर्म की समझ और सीखने वाले में उसे ग्रहण करने की योग्यता होनी चाहिए। इसीलिए गीता का ज्ञान बिना गुरू के प्राप्त नहीं हो सकता।