आपने अब तक सुपीरियारिटी कांप्लेक्स को पाला होगा। आपने समझा होगा कि मैं कुछ हूं। इसलिए ही आपके अंदर अब हीनता का भाव आ रहा है...


आपने कहा कि अपने भीतर का नरक देखना चाहिए, हिंसा देखनी चाहिए। मैंने देखने की कोशिश की, तो फिर मुझे बहुत इनफिरियारिटी कांप्लेक्स, बहुत हीनता का भाव आ रहा है।आएगा। आने का कारण यह नहीं है कि आप हीन हैं, आने का कारण यह है कि आपने अब तक सुपीरियारिटी कांप्लेक्स को पाला होगा। आपने समझा होगा कि मैं कुछ हूं। इसलिए आ रहा है। आप तो जो हैं वह हैं, लेकिन आपने अपने को कुछ और समझा होगा और जब आप भीतरखोजने गए तो आपने पाया कि वहां तो कुछ और है।


जब दो आदमी मिलते हैं तो दो आदमी नहीं मिलते, छह आदमी मिलते हैं। अगर मेरी आपसे मुलाकात हो तो उस कमरे में हम दो होंगे दिखाई पड़ेंगे, लेकिन ऐसे छह आदमी होंगे। एक तो मैं जो हूं, और एक मैं जो अपने को मैं समझता हूं, और एक वह मैं जो आप मुझको समझते हैं और ऐसे ही तीन आप। वहां छह की मुलाकात होती है। और वे जो असली मैं हैं, सबसे पीछे खड़े रहेंगे। और वे जो नकली चार हैं, बीच में बातचीत चलाएंगे, लड़ाई-झगड़ा करेंगे, सब कुछ होगा। तो अगर आप अपने भीतर खोजने जाएंगे तो कई प्रतिमाएं गिर जाएंगी जो आपने सोची थीं कि मैं हूं। आप भीतर पाएंगे कि कहां हूं मैं! एक बाप समझता है कि मैं अपने बेटे को बहुत प्रेम करता हूं, बहुत प्रेम करता हूं। इतना प्रेम मैंने कभी नहीं किया। मैं प्रेम करता हूं, इसीलिए उसे कॉलेज मे कर पढ़ रहा हूं, खून पसीना बहा रहा हूं और उसे कॉलेज में पढ़ा रहा हूं। उसे मुझे पढ़ाकर शिक्षित करना है, उसे मुझे बहुत बड़े ओहदे पर पहुंचाना है। वह कहता है, मैं अपने लड़के को बहुत प्रेम करता हूं, लेकिन अगर वह अपने भीतर खोजने जाएगा तो आश्चर्य नहीं कि वह पाएगा लड़के से उसे कोई भी प्रेम नहीं है। वह अहंकारी, महत्वाकांक्षी आदमी है, जो-जो महत्वाकांक्षाएं खुद पूरी नहीं कर पाया, वह अपने लड़के के ऊपर थोप कर पूरी करना चाहता है। जब उसे यह दिखाई पड़ेगा तो घबराहट होगी, उसे लगेगा कि मैं कैसा बाप हूं! तब बड़ी इनफिरियारिटी पकड़ेगी कि यह क्या मामला है? ऐसे पहचान करें असली और नकली इंसानों की: ओशो

तब उसे ऐसा लगेगा कि यह क्या बात है? ऐसा नहीं हो सकता! मैं तो अपने बेटे को प्रेम करता हूं, इसीलिए तो खून-पसीना एक कर रहा हूं। अगर दुनिया अपने बेटों को प्रेम करती होती और खून-पसीना बेटों के प्रेम के लिए एक करती होती, तो दुनिया बहुत दूसरी हो जाती। फिर कौन अपने बेटों को युद्धों पर लड़ने भेजता? कैसे युद्ध होते? फिर कौन अपने बेटों को हिंदू-मुसलमानों के झगड़े में कटवाता? कैसे दंगे होते? नहीं, फिर असंभव हो जाती यह बात, लेकिन कोई बाप अपने बेटे को प्रेम कहां करता है! बाप करता है अपने अहंकार को प्रेम। छोटे-मोटे बाप ही नहीं, जिनको हम बड़े -बड़े बाप कहते हैं, वे भी।-ओशोअरेंज मैरिज खत्म हो तभी दहेज की समस्या दूर होगी : ओशो

Posted By: Vandana Sharma