2011 अलविदा कहने जा रहा है ढेर सारी यादों के साथ लेकिन जरा रुककर सोचिए और उन घोटलों पर नजर डालिए जिसनें 2011 को शर्मसार किया. इसमें सबसे आगे 2 जी स्पैक्ट्रम घोटाला है.


पहले जानते हैं कि आखिर स्पैक्ट्रम किस बला का नाम है-

हवाओं में तरंगें होती हैं और तरंगों में मैगनेट पॉवर. फिजिक्स की लैंग्वेज में इसे ही स्पेक्ट्रम कहते हैं. टीवी का रिमोट हो या कॉर्डलेस फोन या मोबाइल ऑपरेशन , सभी इसी स्पेक्ट्रम के जरिए काम करते हैं. हर देश अपने क्षेत्र की तरंगों पर अपना हक रखता है और टेक्नोलॉजी  के लिए जरुरी स्पेक्ट्रम के एलॉटमेंट  के लिए नीतियां निर्धारित करता है. हर इक्यूपपेंट को चलाने के लिए स्पेक्ट्रम की आवश्यकता पड़ती है. इसका निर्धारण इक्यूपमेंट को डाइरेक्शन देने वाली टेक्नोलॉजी करती है. हमारे यहां जो सामान्य मोबाइल फोन हैं , वे जीएसएम टेक्नोलजी के आधार पर काम करते हैं.
एनडीए की पॉलिसी 2003 की टेलिकॉम नीति जब घोषित हुई , तब की सरकार ने कहा कि देश में मोबाइल कनेक्टिविटी बढ़ानी है. इसके लिए ज्यादा से ज्यादा कंपनियों को बाजार में उतरने के लिए प्रोत्साहित करना है. इसके लिए स्पेक्ट्रम महंगा नहीं होना चाहिए. यों कहें कि उस समय की सरकार ने तय किया कि मोबाइल पर बातचीत सस्ती करने के लिए स्पेक्ट्रम की नीलामी नहीं होनी चाहिए. तय हुआ कि जो भी कंपनी मोबाइल सेवा शुरू करना चाहती है , उसे 1664 करोड़ रुपए की एकमुश्त अदायगी के बाद टेलिकॉम लाइसेंस दिया जाएगा तथा साथ में सरकार 4.4 मेगा हर्ट्ज स्पेक्ट्रम मुफ्त में देगी, लेकिन इससे ज्यादा स्पेक्ट्रम अगर किसी कंपनी को चाहिए तो नीलामी का रूट अख्तियार किया जाएगा.  2003 के दरम्यान देश में टेली डेंसिटी ( मोबाइल धारकों की संख्या ) 15 फीसदी थी, 2008 में यह बढ़कर 78 फीसदी हो गईफिर 2- जी स्पेक्ट्रम घोटाला है क्या ? 2008 में 122 कंपनियों को स्पेक्ट्रम दिए गए। इस समय सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा सिर्फ दो कंपनियों को लेकर चल रहा है. स्वान और यूनिटेक.  इन्हीं कंपनियों से जुड़े लोग इस समय तिहाड़ में हैं. क्या इन दो कंपनियों को टेलिकॉम लाइसेंस देते समय नियमों की अवहेलना हुई ? क्या इसके बदले में इन कंपनियों ने राजा और कनिमोड़ी की कंपनी को रिश्वत दी ? कितनी दी , कैसे दी ? सीबीआई की चार्जशीट सिर्फ इन प्रश्नों के उत्तर तलाश रही है.

Posted By: Kushal Mishra