देशभर में होली का जश्‍न शुरू होने में अब सिर्फ दो दिन शेष हैं. ऐसे में आप होली शुरु होने से पहले इस त्‍योहार को मनाए जाने के अजब-गजब तरीकों को जानकर आश्‍चर्यचकित रह जाएंगे. आइए जानें कहा होली पर नहीं ढलता सूरत और कहां होती है रामलीला.


बरसाने में नहीं ढलता है सूरज


'बरसाने की होली' के बारे में आपने पहले ही सुना होगा लेकिन क्या आपको पता है कि बरसाने में मान्यता है कि यहां की होली देखने के लिए सूरज देवता अस्त होना भूल जाते हैं. इस बारे में एक किवदंती है कि अंग्रेजों के जमाने में ब्रिटिश कलक्टर एफएस ग्राउस को होली के रंगों से जलन थी. बरसाना की होली की गाथा सुन मथुरा के तत्कालीन अंग्रेज कलक्टर एफएस ग्राउस 22 फरवरी 1877 को पहली बार लठामार होली देखने बरसाना आए थे। अपने शोध ग्रंथ 'ए डिस्टिक्ट मेमोयर' में इस आंखों देखी होली का वर्णन उन्होंने कुछ इस तरह किया था। लिखा था कि ग्रामीण बिदूषकों की ठिठोलियां, कामुक युवा सुलभ नृत्य और हास्योत्पादक ढंग से हस्त संचालन के साथ उछल-कूद आदि पारंपरिक क्रियाकलाप काफी मनोरंजन दृश्य उपस्थित कर रहे हैं। अंग्रेज अफसर को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि होली खत्म होने के बाद ही सूरज अस्त हुए। अंग्रेज अफसर ने लिया इम्तिहान

बरसाना की रंगीली गली निवासी 85 वर्षीय चेतराम पहलवान बताते हैं कि उन्हें बुजुर्गों ने बताया था कि अंग्रेज कलक्टर ग्राउस ने इम्तिहान बतौर लठामार होली को जारी रखवाया था। वो देखना चाहता था कि सूरज अपने निर्धारित समय पर अस्त हुए या नहीं। बकौल चेतराम, ग्राउस ये देखकर चमत्कृत हो गया कि काफी देर होने के बावजूद सूरज अस्त नहीं हुए थे। जब उसने होली बंद कराई तो तत्काल बाद सूरज भी धीरे-धीरे अस्ताचल की ओर चले गए थे।बरेली में होली पर होती है रामलीलाहोली पर रामलीला के आयोजन की खबर किसी को भी चौंका सकती है. लेकिन उत्तरप्रदेश के बरेली में पिछले 155 सालों से होली की परंपरा मनाई जा रही है. बरेली के बमनगिरी मोहल्ले में वर्ष 1861 में शुरु हुई परंपरा आज तक परंपरा आज तक चली आ रही है. वर्ष 1861 में स्थानीय मुस्लिम संतों के सहयोग से होली के हुड़दंग को नियंत्रित करने के लिए रामलीला मनाए जाने की परंपरा शुरु की गई. इस रामलीला के दौरान लोग ड्रमों में रंग भरकर एक दूसरे को रंग से सराबोर करते हैं. मेवाड़ में की जाती है अर्थी की सवारी

यह बात सुनने में थोड़ी अजीब लग सकती है लेकिन मेवाड़ में होली के सात दिन बाद शीतला सप्तमी पर खेली जाने वाली को एक अलग और अजीब अंदाज में खेला जाता है. इस दिन चित्तोड़गढ़ वालों की हवेली से मुर्दे की सवारी निकलती है. इस आयोजन में लकड़ी एक सीढ़ी बनाई जाती है फिर इस सीढ़ी पर जिंदा आदमी को लिटाकर पूरे शहर में घुमाया जाता है. इस दौरान लोग अपने घरों से सीढ़ी पर लेटे व्यक्ति पर रंग डाला जाता है.

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Posted By: Prabha Punj Mishra