भारत में महात्मा गांधी के नाम से शायद ही कोई परिचित न हो लेकिन पाकिस्तान की नई पीढ़ी के मानस से अहिंसा के इस पुजारी की छवि धूमिल हो गई है.


नई पीढ़ी गांधी को यूं ही नहीं भूल गई. बल्कि सरकार और अख़बारों ने ही उन्हें भुला दिया.हैरानी नहीं होनी चाहिए कि गांधी की हत्या के समय पाकिस्तान में मातम छा गया था.अख़बारों में उनकी तारीफ़ में बड़े-बड़े लेख प्रकाशित हुए थे.लेकिन, उनके बारे में बाद में कई तरह की बातें होने लगीं, हालाँकि अभी भी पुरानी पीढ़ी के लोग उन्हें पाकिस्तान का हमदर्द मानते हैं.पढ़ें, विस्तार सेऔर रहा इतिहास तो मैंने अपनी शिक्षा के दौरान गांधी का नाम केवल एक बार पढ़ा है. वह भी एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जिसने मुसलमानों को धोखा दिया.हमारी 'पाकिस्तान अध्ययन' की क़िताब में ख़िलाफ़त आंदोलन पर एक चैप्टर था. बताया गया कि मोहम्मद अली जौहर और गांधी ने मिलकर अंग्रेज़ सरकार के ख़िलाफ़ असहयोग की एक मुहिम चलाई.


जब हिंदुओं और मुसलमानों का एकता संचालित आंदोलन ज़ोरों पर था तो गांधी ने अचानक उसे समाप्त करने की घोषणा की.बहाना बनाया कि हिंसा की एक घटना हो गई है. यूं उन्होंने मुसलमानों को बीच मझधार में छोड़ दिया, उनके विश्वास को ठेस पहुंचाई.

पाकिस्तान का विरोध करने वाला कोई नेता हमारे सरकारी इतिहास में उल्लेख के लायक ही नहीं. यह बताने के लिए भी नहीं कि उनका विचार क्या था.गांधी और जिन्नाइस बात की चर्चा भी हो जाती थी कि गांधी इतने पक्के हिंदू थे कि उन्होंने पंडित नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित को सैयद हुसैन से शादी करने से रोक दिया था.उनकी धर्मनिरपेक्षता की राजनीति महज एक दिखावा थी, मुसलमानों को चकमा देने के लिए.गांधी के बारे में पुरानी पीढ़ी के विचार उर्दू अखबारों से अलग हैं. वे कहते हैं कि गांधी की ब्रितानी राज के ख़िलाफ़ आज़ादी के आंदोलन में एक बड़ी भूमिका थी.और यह कि उन्होंने विभाजन के समय हिंदुओं और मुसलमानों के बीच बंगाल में होने वाले खूनी दंगे रुकवाने के लिए मौन व्रत किया था.उन्होंने अपनी सरकार पर दबाव डालकर पाकिस्तान को उसके हिस्से की संपत्ति दिलवायी. वह मुसलमानों के पक्ष में नेहरू और पटेल की तुलना में बेहतर आदमी थे.राजनीति में धर्मज़ैदी के अनुसार, "वर्ष 1946 में अंग्रेज़ों ने भारत को एक रखने के लिए जो कैबिनेट मिशन का ज़ोनल प्लान दिया था उसे मुस्लिम लीग ने तो स्वीकार कर लिया था, लेकिन गांधी ने इसे नष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई."

उनके मुताबिक़, "उन्होंने असम और पंजाब के हिंदू और सिख नेताओं को इस योजना के ख़िलाफ़ उकसाया. गांधी ने धर्म को जिस तरह राजनीति में घुसाया आज के भारत में हिंदुत्व की राजनीति उसी का परिणाम है."अख़बार वाले और बुद्धिजीवी कुछ भी कहें एक तथ्य यह भी है कि जब 30 जनवरी 1948 को गांधी की हत्या की गई तो पाकिस्तान में उदासी छा गई थी.तारीफ़लाहौर के 80 वर्षीय प्रकाशक रियाज़ चौधरी कहते हैं, "जब ख़बर आई कि गोडसे ने गांधी की हत्या कर दी है तो देश भर में मातम छा गया. लोग रोने लगे. यह माना गया कि मुसलमानों का समर्थक नेता मर गया."वो कहते हैं, "पाकिस्तान रेडियो ने उनकी सेवाओं को सराहते हुए उन पर बेहतरीन कार्यक्रम प्रसारित किए. अखबारों ने उन पर तारीफ़ के लेख छापे. फिर वह धीरे-धीरे पाकिस्तानियों के मन से रुख़सत हो गए."

Posted By: Satyendra Kumar Singh