भारत के नए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना डेंग ज़ियोपिंग मार्गरेट थैचर रोनाल्ड रीगन शिंज़ो अबे तईब एर्डोगान और महिंदा राजपक्षे से की जा चुकी है.


ये उपमाएं देते हुए अक्सर टिप्पणीकार उन्हें पक्के इरादे वाले, सक्रिय, अधिकारवादी और राष्ट्रवादी बताते हैं.कई लोग मानते हैं कि वह सचमुच में आर्थिक सुधारक हैं. अन्य को उनके और उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी की कट्टरवादी हिंदुत्ववादी विचारधारा से डर लगता है कि और यह चिंता होती है कि यह बहुलतावादी भारतीय समाज के लिए ख़तरा तो पैदा नहीं करेगा.हाल में संपन्न हुए चुनावों में मोदी ने गुजरात को देश के सबसे तेज़ी से विकास करते और व्यापार समर्थक राज्य के रूप में स्थापित करने के अपने रिकॉर्ड को प्रचारित किया है.उनकी अपनी छवि भी एक सख्त प्रशासक और कट्टर हिंदू राष्ट्रवादी की रही है.'बदलाव के वाहक'मोदी समर्थक मानते हैं कि भारत को विकास की कमी, भारी मुद्रास्फ़ीति, कमज़ोर सरकार और बेरोज़गारी के दलदल से बाहर निकालने के लिए वही सही आदमी हैं.
एक टिप्पणीकार को लगता है कि मोदी ने संभवतः सही में "भारत के दूसरे लोकतंत्र का उद्घाटन" कर दिया है क्योंकि प्रशासन का उनका रिकॉर्ड उन्हें "आर्थिक बदलाव का वाहक बनाता है, अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने वाला नहीं."


बीजेपी के 42 पन्ने के घोषणापत्र पर निस्संदेह रूप से मोदी की छाप है. यह ऐसे वायदों से भरा हुआ है जो मोदी की आधारभूत ढांचा मजबूत करने की धुन की ही गूंज लगते हैं, जैसे- बुलेट ट्रेनें, स्मार्ट शहर, नदियों को जोड़ने की योजना, इंजीनियरिंग और मेडिसिन के लिए अधिक स्कूल क़ायम करने, कम क़ीमत के घर, गंदी हो चुकी नदियों को साफ़ करना.मोदी और उनकी पार्टी ने विवादित मुद्दों- अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण और समान नागरिक संहिता लागू करने - को सुविधा से 41 वें पेज में कुछ पंक्तियों में निपटा दिया है.यक़ीनन मोदी व्यापार-समर्थक हैं. लेकिन क्या दिल से वह बाज़ार समर्थक हैं? राजनीति विज्ञानी आशुतोष वार्ष्णेय सवाल पूछते हैं कि क्या वह "धर्म और जाति को दरकिनार कर भारतीय राजनीति के कुशल कथाकार के रूप में आर्थिक विकास को स्थायित्व देने में कामयाब होंगे?"संस्थागत सुधारअपने चुनावी भाषणों में मोदी बार-बार "अधिकतम शासन और न्यूनतम सरकार" के बारे में बोलते रहे हैं, लेकिन यह साफ़ नहीं किया कि उनका मतलब क्या है. यह तो तय है कि कहना, करने से आसान है.सरकार का आकार छोटा करने औऱ इसे ज़्यादा जवाबदेह बनाने के लिए भारत की विशाल और अड़ियल अफ़सरशाही, जिसे 'एशिया में सबसे ख़राब' कहा गया है, में संस्थागत सुधार लाने होंगे.

दहेजिया ने मुझसे कहा था कि "उदाहरण के लिए मोदी की मार्गरेट थैचर से तुलना, एक तरह से अतिश्योक्ति है. फिर भी इतने मजबूत जनादेश की ताक़त से और उनके नज़दीकी लोगों में बाज़ार समर्थक सलाहकारों के होने से मोदी पलड़े को मजबूत आर्थिक सुधार कार्यक्रम की ओर झुका सकते हैं.मोदी पर लगातार लिखने वाले टिप्पणीकार अशोक मलिक कहते हैं कि "वह उतने दक्षिणपंथी रहेंगे जितना कि मुख्यधारा का एक चुना हुआ राजनेता हो सकता है."वह कहते हैं, इसका अर्थ यह हुआ कि वह सरकार की फूली हुई और कबाड़ के ढेर जैसी स्थिति को बदलकर "सक्षम और पारदर्शी" बनाने पर ज़ोर देंगे और इसे बाधक बनाने के बजाय सुविधा प्रदान करने वाला बनाएंगे.इसका मतलब यह भी हुआ कि वह देश की बड़ी वेलफ़ेयर योजनाओं में न तो बड़े पैमाने पर कटौती कर सकेंगे और न पूरी तरह बदल पाएंगे जिनसे ग़रीब क्षेत्रों में ज़िंदगी बेहतर हुई है लेकिन जिनमें भ्रष्टाचार भी बहुत है.इसके अलावा भारत की संघीय नीति की भी अपनी सीमाएं हैं.
मोदी को संसद में उन क़ानूनों को पास करवाने के लिए सभी पार्टियों के सहयोग की ज़रूरत पड़ेगी, जिन सुधारों को रोकने का इल्ज़ाम उनती पार्टी पर लगता रहा है. इनकी सूची में सबसे ऊपर है एकसमान वस्तु और सेवा कर, जिससे भारत को क़रीब 292.60 खरब रुपए का राजस्व मिल सकता है और जो पिछले तीन साल से लटका हुआ है.इसके अलावा बीजेपी के पास राज्यसभा में सिर्फ़ 26 फ़ीसदी सीटें ही हैं, जिससे क़ानून बनाना मुश्किल हो सकता है. फिर ज़्यादातर शक्ति राज्यों के पास है.विरोधाभासअर्थशास्त्री अरविंद सुब्रमण्यम कहते हैं, "प्रधानमंत्री मोदी को अपने जनादेश और लक्ष्य के बीच विरोधाभास का सामना करना पड़ेगा.""चुनावों में उनकी जीत शक्ति हासिल करने की क्षमता पर आधारित है, अगर ज़रूरी हो तो निर्दयतापूर्वक भी. अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए उनकी सफलता बेहद सीमित शक्तियों का अधिकतम और पूरा इस्तेमाल करने पर निर्भर करेगी."क़रीब-क़रीब किसी ने भी सुधारों के बारे में मोदी के विचार जानने की कोशिश नहीं की. लेकिन हम जानते हैं कि वह एशिया की मज़बूत अर्थव्यवस्थाओं के प्रति कितने आसक्त हैं.
जब वह गुजरात से मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने अपने जीवनी लेखक नीलांजन मुखोपाध्याय को बताया था, "मैं सिंगापुर, मलेशिया, वियतनाम, दक्षिण कोरिया और चीन, जापान को भी समझने की कोशिश करता हूं. मैं मानता हूं कि चीन की बड़ी ताक़त इसका निर्माण उद्योग है और इसलिए मैंने अपने निर्माण उद्योग को मजबूत किया है."लेकिन जब मोदी के एक अन्य जीवनी लेखक, एंडी मारिनो, ने उनसे पूछा कि अगर भारत आर्थिक रूप से तेज़ी से आगे बढ़ता है तो इसकी आत्मा का क्या होगा? उन्होंने कहा, "पाश्चात्यकरण के बिना आधुनिकीकरण. यह यकीनन बिना आधुनिकीकरण के पाश्चात्यकरण से बेहतर लगता है, जिससे भारत पहले ही अघा चुका है. लेकिन इसका मतलब क्या है?"सिर्फ़ वक़्त ही बताएगा कि मोदी कुछ करके दिखाएंगे, सुधार करेंगे या नष्ट हो जाएंगे!

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari