अफ़ग़ानिस्तान के कंधार में 2012 में बम को निष्क्रिय करते वक्त अपने दोनों हाथ गंवा चुके कैप्टन अब्दुल रहीम अपने नए हाथ पाकर काफी खुश हैं.


रहीम को केरल के कोची में अमृता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में हुए हैंड ट्रांसप्लांट ऑपरेशन के जरिए नए हाथ मिले हैं.उन्हें केरल के जॉर्ज के हाथ लगाए गए जो मोटरसाइल हादसे में ब्रेन-डेड हो गए थे.केरल के व्यक्ति के हाथउन्होंने दो साल तक इंटरनेट पर ख़ूब खोज की और अपने दोस्तों से मदद की गुहार लगाई. तब जाकर उन्हें केरल में उम्मीद की नई किरण दिखाई दी.रहीम का कहना है वे जॉर्ज को जीवनभर नहीं भूल सकते हैं. उनका कहना था, ''मैं चाहता हूँ कि मेरी मौत के बाद मेरा सारा शरीर भारत में (रिसर्च के लिए) दान में दिया जाए.''अब्दुल रहीम अफ़ग़ान सेना में बम को निष्क्रिय करने का काम करते हैं.


डॉक्टर अय्यर का कहना था, ''शरीर ट्रांसप्लांट को लेकर सारी क़ानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद 20 डॉक्टरों, 8 एनेस्थेसिस्ट और नर्सों की मदद से 15 घंटे तक चार ऑपरेशन टेबल्स पर ऑपरेशन चला. चुनौती थी दो हड्डियों, दो धमनियों और कई नसों का जोड़ना.''डॉक्टर का कहना है कि रहीम की फिज़ियोथैरेपी चल रही है और उन्हें अपनी नसों को बढ़ने देने तक के लिए दस महीने तक यहां रहना पड़ेगा.

क्या उन्हें अपने हाथों का रंग देखकर अजीब नहीं लगता, जो उनकी त्वचा से गहरे रंग के हैं? दस साल के बच्चे कि पिता, रहीम का कहना था - ''क्या फर्क पड़ता है.''ये कोची में इस इंस्टीट्यूट का दूसरा सफल हैंड ट्रांसप्लांट है.

Posted By: Satyendra Kumar Singh