- शौर्य डांस के जरिए मार्शल आर्ट का करते हैं प्रदर्शन

- इसमें दिखती है जन जातीय बहादुरी की झलक

ALLAHABAD: बात सिर्फ जीविका चलाने की नहीं है। बात है अपनी परम्परा और संस्कृति को बचाए रखने की। ये एक जिद है कि अपनी माटी की धरोहर को इंटरनेशल लेवल पर फेम दिलाना है। ये सोच है बुंदेलखण्ड के सागर डिस्ट्रिक्ट के रहने वाले राजकुमार रायकवार की। राजकुमार कहते हैं कि लोक कलाएं आज भी जिन्दा हैं, लेकिन उन्हें सही स्टेज नहीं मिल रहा है। यही कारण है लोक कलाएं गुम होती जा रही हैं। आज के समय में गवर्नमेंट चार सौ रुपए जैसी रकम देकर अगर लोक कलाकारों को स्टेज परफार्मेस करने को कहती है तो कौन सा कलाकार इसके लिए तैयार होगा। आखिर उन्हें भी अपने परिवार का खर्च चलाना है। इसी कारण वे इन कलाओं के लिए मेहनत करने से ज्यादा अपनी फैमिली के खर्च को पूरा करने के लिए दूसरे काम करते हैं।

- अखाड़ा और शौर्य कला कैसे एक हैं?

- बुदेंलखण्ड में शौर्य कलाओं को सिखाने के लिए अखाड़े तैयार किए जाते थे। ये परम्परा कई सौ साल पुरानी है। बुंदेलखण्ड की माटी ही ऐसी है। जहां सूरमाओं का जन्म होता है। यहां पर शस्त्रीय युद्ध कौशल की ट्रेनिंग दी जाती है। साल में कई ऐसे अवसर भी आते हैं, जब इस कला में पारंगत आर्टिस्ट अपनी क्षमता का प्रदर्शन लोगों के सामने करते हैं। आज भी दशहरा के मौके पर चौराहों पर इस कला का प्रदर्शन किया जाता है।

- आप इस लोक कला से कैसे जुड़े ?

- मेरे पिता भगवानदास रायकवार को इस कला से बहुत प्यार है। इसी कारण उन्होंने क्99ब् में स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया की जॉब से रिटायरमेंट ले ली और इस कला को आगे ले जाने की कोशिश में लग गए। मेरा बचपन भी इन्हीं कलाओं के बीच गुजरा। यही कारण है कि बचपन से ही इस कला से मुझे बेहद प्यार और लगाव है। इसी वजह से मैंने इस कला को व‌र्ल्ड लेवल पर पहचान दिलाने की जिद ठानी है। जिसके लिए लगातार कोशिश कर रहा हूं।

- ये काम कैसे पूरा करेंगे?

- इन कलाओं को बचाने के लिए ही इसको डांस से जोड़ने का प्रयास कर रहा हूं। जिससे लोगों का इंटरेस्ट इसमें बढ़े और लोग बड़ी संख्या में इससे जुड़े। इसको ज्यादा रुचिकर बनाने के लिए भी कई नए प्रयोग कर रहा हूं। अभी तक लोग इसे प्रोफेशन के रूप में नहीं लेते थे। क्योंकि इसके कारण लोगों का खर्च नहीं चल सकता है। इसलिए आज जरूरत है कि इसे व‌र्ल्ड फेम दिलाया जाए। जिससे लोगों को ज्यादा से ज्यादा काम मिल सके और उनकी जिंदगी बेहतर हो सके।

-आखिर गर्वनमेंट की योजनाओं का क्यों नहीं मिल रहा लाभ

इसके पीछे भी एक बड़ा कारण है। सरकार की योजनाएं ज्यादातर वेब साइट्स पर होती हैं वो भी इंग्लिश में। ऐसे में गांवों में रहने वाले लोक कलाकार को कैसे मालूम होगा कि सरकार क्या योजनाएं चला रही है। वहीं जिस तरह दूसरे लोगों के लिए योजनाएं बनायी गई और उनका प्रचार प्रसार किया जाता है, रंगकर्मियों या फिर लोक कलाकारों के लिए उस लेवल पर कोई योजना नहीं है। जो है भी उनका प्रचार प्रसार नहीं होता।

-कहां-कहां किया है प्रोग्राम

अभी तक अपने इस प्रोग्राम को लेकर क्फ् देशों की यात्रा कर चुका हूं। रसिया और सिंगापुर में इण्डिया फेस्टिवल में भी टीम के साथ परफार्मेस दे चुका हूं। देश में भी एनसीजेडसीसी के लगभग सभी केन्द्र में प्रोग्राम दिए हैं। लोकरंग यात्रा भोपाल जैसे कई इवेंट में शामिल हुए हैं और अपनी कला का प्रदर्शन किया है।

-टीम में कितने मेंबर्स हैं और प्रैक्टिस कैसे करते हैं

मेरी टीम में कुल म्भ् मेंबर्स हैं। जो एक ही गांव के हैं। ये गांव सागर डिस्ट्रिक्ट के पास है। टीम के मेंबर्स मूलरूप से खेती किसानी करते हैं। उसके बाद मिले समय में ये प्रैक्टिस करते हैं। मै खुद भी इनके गांव में जाकर प्रैक्टिस करता हूं। जिससे इनमें अपनी लोक कला को बचाने के लिए चल रही उम्मीद जिंदा रहे।

Posted By: Inextlive