Allahabad : इंडिया में ब्रिज बिल्डिंग बॉडी इम्प्लांट में यूज होने वाले मटेरियल की टेस्टिंग आज भी ओल्ड टेक्निक से की जा रही है. जबकि विदेशों में इसके लिए होलोग्राफी जैसे एडवांस तरीके का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसके जरिए मटेरियल की फ्लैक्सिबिलिटी वेट और वाइब्रेशन क्वालिटी आदि परफेक्टली परखी जा सकती है. जिसकी प्रजेंट सिनेरियो में इंडिया को बहुत ज्यादा जरूरत है. भारतीय मूल के स्विस साइंटिस्ट प्रो. प्रमोद रस्तोगी ने वेडनसडे को ये बातें कहीं. वह आईआईआईटी के साइंस कान्क्लेव में पार्टिसिपेट करने आए हैं. उन्होंने बताया कि इस टेक्निक की खोज काफी पहले हो गई थी लेकिन लेजर तकनीक के इंट्रोड्यूस होने में हुई देरी के चलते कई देश अब इसे अप्लाई कर रहे हैं.


क्यों है जरूरीहोलोग्राफी के अविष्कार के लिए 1944 में अमेरिकी साइंटिस्ट डेनिस गेबोर को नोबल प्राइज दिया गया था। इसके 25 साल बाद लेजर टेक्निक के डेवलपमेंट के बाद इसे अमेरिका, इंग्लैंड जैसे यूरोपियन कंट्रीज इस्तेमाल कर रहे हैं। फिलहाल यह इंडिया में अभी तक नहीं आ सकी है। यह बड़े ब्रिज, बिल्डिंग, इम्प्लांट सहित दूसरे काम में प्रयुक्त होने वाले मटेरियल की जांच में यूज की जाती है। प्रो। रस्तोगी ने बताया कि विदेशों में इस टेक्निक का यूज इनके अलावा टायर और आटोमोबाइल सेक्टर में भी किया जा रहा है। इससे मटेरियल की क्वालिटी को ज्यादा बेहतर तरीके से जांचा जा सकता है। आज भी एविएशन इंडस्ट्री में होलोग्राफी टेस्टिंंग से पास मटेरियल का ही सबसे ज्यादा यूज किया जाता है। जबकि इंडिया में इसकी जगह फाइबर आप्टिक सेंसर मटेरियल में फिट किए जा रहे हैं।महामशीन में भी हुआ इस होलोग्र्राफी टेक्निक का इस्तेमाल
हाल ही में गार्ड पार्टिकल को ढूंढने के लिए जिस महामशीन यानि लार्ज हाइड्रान कोलाइडर मशीन को बनाया गया था उसके मटेरियल और मॉडल की टेस्टिंग के लिए भी होलोग्र्राफी टेक्निक का इस्तेमाल किया गया था। होलोग्राफी एक्सपर्ट प्रो। रस्तोगी ने साइंटिस्ट डब्ल्यू स्कैंडल के साथ इस काम को अंजाम दिया था। प्रो। रस्तोगी को स्विस एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग साइंसेज का फस्र्ट इंडियन एकेडमिक मेंबर भी बनाया गया है। उन्होंने कहा कि डेवलपिंग कंट्री होने की वजह से इंडिया को अब लेटेस्ट साइंस टेक्निक को फॉलो करना होगा। इसी से नेशन डेवलप हो सकेगा।

Posted By: Inextlive