- कमिश्नर बादल चटर्जी से भावनात्मक तौर पर जुड़ा जन समुदाय

- तबादले के विरोध में दिनभर चला धरना-प्रदर्शन और पुतला दहन

ALLAHABAD: यह एक बड़ा सवाल है। क्या इसके पहले शासन ने अधिकारियों के तबादले नहीं किए। क्या वह अधिकारी अपने कर्तव्यों का पालन उचित प्रकार से नहीं कर रहे थे। ऐसा नहीं है, तबादले पहले भी हुए और अधिकारियों ने अपने काम को निपटाया भी। बावजूद इसके बादल चटर्जी में ऐसा क्या है कि लोग उन्हें लोकल हीरो बनाने पर तुले हैं। दरअसल, यह जन भावनाओं से जुड़ा मामला है। जनता जनार्दन उनके कार्यो से प्रसन्न थी। लोगों को लगने लगा था कि समस्याओं से जूझते इस शहर के दिन बहुरने वाले हैं। भ्रष्टाचार पर लगाम कस रही है। फिर अचानक उनके तबादले ने लोगों का विकास का सपना तोड़ दिया। यही कारण है कि लोग सरकार के इस फैसले के खिलाफ आंदोलन करने को मजबूर हैं।

- इस शहर को बदलने के लिए ऐसे ही अधिकारियों की जरूरत थी। बादल चटर्जी ने कुर्सी संभालते ही कुछ ऐसे निर्णय लिए जिनके लिए शब्दों में तारीफ नहीं की जा सकती। उनके फैसलों का असर भी दिखने लगा था।

आकाश

- बारिश के मौसम में यह शहर जलभराव से जूझता नजर आता है। कारण साफ है, नालों पर अतिक्रमण हो चुका है। भू माफियाओं ने उन पर अपने महल खड़े कर लिए हैं। जब इनके टूटने की नौबत आई तो शासन ने पब्लिक के हित को दरकिनार कर अपना फरमान सुना दिया।

सर्वेश

- जिन डॉक्टरों को सरकारी ओपीडी में होना चाहिए वह नदारद रहते थे। गरीब जनता इलाज के लिए प्राइवेट हॉस्पिटल्स में मोटी रकम फीस के नाम पर चुका रही थी। कमिश्नर के कदम उठाने से चरमराई व्यवस्था पटरी पर आने लगी थी।

उत्तम बैनर्जी

- जनता अगर अधिकारियों के पास जाती है तो अव्वल उनको मिलने नहीं दिया जाता। फाइलें बाबू की टेबल पर धूल खाती हैं। इसके उलट उनकी सुनवाई होने लगी थी। समस्याओं का निदान हो रहा था। ऐसे में कमिश्नर का तबादला लोगों को अखर गया है।

गौतम कुमार

- एसआरएन हॉस्पिटल की कई मशीनें लंबे समय से खराब पड़ी हैं। इनकी मरम्मत नहीं हुई है। जो जांच फ्री ऑफ कास्ट हो सकती थी उसके पैसे पब्लिक को देने पड़ रहे थे। बादल चटर्जी ने चिकित्सा माफियाओं के इस रैकेट को तोड़ने का पूरा प्रयास किया था।

रवि श्रीवास्तव

- आखिर शासन बताए कि कमिश्नर का तबादला किस आधार पर किया गया है। उन्होंने किसी व्यक्तिगत पर एक्शन नहीं लिया। व्यवस्था को सुधारने के लिए कदम उठाया। जिससे आम जनता को लाभ हो रहा था।

विजय मजूमदार

- संगम नगरी में हर छह साल के अंतराल में कुंभ व अर्धकुंभ मेले का आयोजन होता है। इतना होने के बावजूद यहां पर्यटन और सौंदर्यीकरण के नाम पर कुछ नहीं हुआ। बादल चटर्जी ने तीन चौराहों के सौंदर्यीकरण को लेकर येाजना की शुरुआत कर अच्छे संकेत दिए थे।

अभिषेक

- कमिश्नर ने एक नई प्रथा को जन्म दिया था। वह अपने कार्यालय में पब्लिक की सुनने लगे थे। तत्काल एक्शन भी लिया जाता था। कई मेडिकल स्टोर्स पर छापा इसका जीता जागता उदाहरण है। इससे चिकित्सा माफियाओं पर नकेल कसने लगी थी।

विवेक

जाग गई थीं उम्मीदें

दस फरवरी को बादल चटर्जी ने कमिश्नर पद का कार्यभार संभाला था। उनके आते ही पब्लिक को पुराने दिन याद आ गए। जब वह यहां नगर आयुक्त और एडीएम सिटी थे। उस दौरान बिगड़ैलों को नियम-कानून का अच्छा पाठ पढ़ाया था। इस बार भी उम्मीद के मुताबिक उन्होंने कई बेहतरीन कदम उठाए। बात चाहे चिकित्सा पेशे में माफियाओं के दबदबे की हो या नालों व सड़कों पर अतिक्रमण कर इमारत खड़ी करने वाले बिल्डरों की। उन्होंने सबको लाइन पर लाने की कवायद छेड़ दी। हाईकोर्ट के निर्देश पर उन्होंने एमएलएन मेडिकल कॉलेज में चल रही डॉक्टरों की मनमानी पर लगाम कसने में कोई कसर नहीं छोड़ी। डॉक्टरों की प्राइवेट प्रेक्टिस और दवा माफियाओं के बीच सांठगांठ को भी उन्होंने उजागर किया।

तो टूट जातीं कई मंजिला इमारतें

बादल चटर्जी ने शहर के सौंदर्यीकरण को चार चांद लगाने की बेहतरीन योजना भी तैयार करवाई। प्रमुख चौराहों का सौंदर्यीकरण और अतिक्रमण को खत्म करना उनकी प्रियारिटी में शामिल था। जांच-पड़ताल में पता चला कि नालों पर अतिक्रमण कर रसूखदारों ने अपनी बिल्डिंग तैयार करवा ली है। एडीए द्वारा नापजोख शुरू किए जाने के बाद बिल्डर्स की रातों की नींद उड़ने लगी। कई नर्सिग होम्स और बिल्डर्स को नोटिस भी मिली। उनको लगने लगा कि जल्द ही उनकी मनमानी पर अंकुश लग सकता है। वहीं पब्लिक को विकसित और व्यवस्थित इलाहाबाद की तस्वीर नजर आने लगी।

इनाम की जगह सजा मिलने पर बौखलाई जनता

सरकारी नौकरी से नदारद रहने वाले डॉक्टरों और शिक्षकों को सबक सिखाने के लिए बादल चटर्जी ने मोबाइल ट्रैकिंग सिस्टम के जरिए उनको बेनकाब करना शुरू कर दिया। यह सब जनता की निगाहों में था। उनको लग रहा था कि ईमानदारी से अपने फर्ज को निभाने वाले ऐसे अधिकारियों को प्रदेश सरकार इनाम देगी। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। महज सात महीनों के कार्यकाल के बाद अचानक उनको इस पद से हटाकर प्रतीक्षा सूची में डाल दिया गया। पब्लिक का कहना है कि यह सरासर नाइंसाफी है। केवल निवर्तमान कमिश्नर के साथ नहीं बल्कि जनता जनार्दन के साथ भी। उनका यही आक्रोश अब सड़कों पर नजर आने लगा है। लोग उनके तबादले को निरस्त किए जाने की मांग भी कर रहे हैं।

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मिलने लगे डॉक्टर, होने लगा इलाज

वैसे तो अपने कार्यकाल में बादल चटर्जी ने कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर कदम उठाए लेकिन सबसे ज्यादा सराहनीय रही मेडिकल कॉलेज की व्यवस्था को पटरी पर लाने की कवायद। हाईकोर्ट के निर्देश पर उन्होंने सरकारी डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस का भंडाफोड़ करना शुरू कर दिया। इसका असर यह हुआ कि कई डॉक्टरों के नर्सिग होम पर ताला लग गया और वह एसआरएन हॉस्पिटल की ओपीडी में नजर आने लगे। इससे मरीजों को बड़ी राहत मिली। उनके तबादले पर आक्रोश व्यक्त करने वाली जनता की मानें तो ऐसे समय पर बादल चटर्जी का तबादला वाकई झकझोरने वाला रहा।

बादल चटर्जी के इन कार्यो को जनता ने सराहा

- शहर के नालों पर कब्जा करने वालों को नोटिस

- रिलायंस के सहयोग से शहर चौराहों के सौंदर्यीकरण की योजना

- फीस के नाम पर लूटने वाले कालेजों पर कार्रवाई

- मेडिकल कॉलेज और सरकारी हॉस्पिटल्स की व्यवस्था सुधारने के लिए छापेमारी और मोबाइल ट्रेकिंग

- आईईआरटी मे रैगिंग का मामला सामने आने पर दोषियों के खिलाफ कड़े कदम उठाना

- जल जमाव वाले मोहल्लों से जल निकासी के इंतजाम के लिए कवायद शुरू करना

- कार्यो को लेकर प्रशासनिक अमले में कार्यो का विकेंद्रीकरण और अधीनस्थ कर्मचारियों की मॉनीटरिंग करना

- मिलावटखोरों और दवा माफियाओं के खिलाफ अभियान चलाना

क्या कहती है पब्लिक

कमिश्नर के तबादले का विरोध पिछले तीन दिन से चल रहा है। आइए जानते हैं सोमवार को शहर में जगह-जगह प्रोटेस्ट करने वाली पब्लिक ने क्या कहा

- आज के दौर में इमानदारी की कोई जगह नहीं है। पब्लिक के हित में काम करने वाले अधिकारियों को ज्यादा दिन कुर्सी नसीब नहीं होती। हालांकि जनता सब जानती है और इसलिए सड़कों पर उतरी है।

सलिल श्रीवास्तव

Posted By: Inextlive