Bareilly : फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह की लाइफ पर बेस्ड फरहान अख्तर स्टारर फिल्म 'भाग मिल्खा भाग' के टाइटल सांग ने देश के फर्राटा धावकों में जबरदस्त जोश का संचार कर दिया है. हालांकि जोश जुनून और जज्बे से लबरेज होकर रेस लगाने को बेताब सिटी के फर्राटा धावकों का हर कदम पर असुविधाओं के हर्डल से सामना हो रहा है. बरेली में नेशनल लेवल तक अपनी धाक जमाने के बाद भी वे इंटरनेशनल ट्रैक से 'आउट' हो रहे हैं आखिर क्यों?


60 रुपए में 4,000 कैलोरीकहने को तो बरेली में स्पोट्र्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) का सेंटर है, साई ने एथलेटिक्स कोच अप्वॉइंट किया है। दो साल पहले साई ने एथलेटिक्सप्लेयर्स के लिए हॉस्टल फैसिलिटी भी अवेलेबल करवा दी है। पर हॉस्टल के प्लेयर्स को पूरे दिन की डाइट के लिए महज 60 रुपए ही मिलते हैं। वहीं, क ोच के मुताबिक एथलीट को एक दिन में 4,000 कैलोरी मिलना बेहद जरूरी है। डाइट के लिए प्रॉपर अमाउंट न मिलने से कोच भी प्लेयर्स को ज्यादा मेहनत नहीं करवा पाते हैं। एक्सपट्र्स के अनुसार, बिना प्रॉपर डाइट के प्लेयर्स मेहनत करेंगे तो गंभीर बीमारियों के शिकार हो सकते हैं। यही नहीं कोई प्लेयर कहीं कॉम्पिटीशन में पार्टिसिपेट करने जाता है तो उसे केवल 20 रुपए ही दिए जाते हैं डाइट के नाम पर।नहीं मिलते sponsors


धावकों के आगे बढऩे में सबसे ज्यादा योगदान कॉम्पिटीशन का होता है पर यहां के प्लेयर्स के लिए एक साल में केवल एक ही कॉम्पिटीशन ऑर्गनाइज किया जाता है। वहीं, अगर कोई एसोसिएशन अपने लेवल पर कॉम्पिटीशन ऑर्गनाइज करना चाहे तो  ढूंढने पर भी स्पांसर्स नहीं मिलते। एसोसिएशन के पदाधिकारियों के मुताबिक, अगर साई के स्टेडियम में भी कोई इवेंट ऑर्गनाइज करना चाहें तो इसके लिए कैंट बोर्ड को रेंट देना होता है।

Dry grass पर injuryसिटी के धावकों को प्रैक्टिस के लिए साई के स्टेडियम में जो ट्रैक प्रोवाइड किया गया है, वह ग्रास का है। यूं तो सबसे अच्छा ट्रैक आर्टीफीशियल ग्रास का होता है, पर यहां उन्हें जो ग्रास ट्रैक प्रोवाइड कराया गया है, वह ड्राई रहता है। इस पर रनिंग करने के लिए उन्हें ब्रांडेड शूज भी प्रोवाइड नहीं किए जाते हैं। खास बात यह है कि ड्राई ग्रास पर रनिंग करने से प्लेयर्स को सबसे ज्यादा इंजरी होती है। वह इसकी वजह से ही सिंक पेन के शिकार भी हो जाते हैं।Kits भी किस्मत में नहींसाई के हॉस्टल में रहने वाले धावकों को तो स्पोट्र्स किट अवेलेबल कराई जाती है पर जो भी लोकल प्लेयर स्टेडियम में प्रैक्टिस करने पहुंचते हैं, उन्हें किट अवेलेबल नहीं कराई जाती है। न हाई क्वालिटी शूज और न ही ट्रैक सूट मुहैया होता है। ऐसे में, उन्हें एथलेटिक्स के प्रति कोई खास क्रेज नहीं रह जाता है।

No policies for job


बरेली से इंटरनेशनल लेवल के फर्राटा धावक निकल चुके हैं लेकिन इंटरनेशनल चैंपियनशिप में पार्टिसिपेट करने के बाद ये प्लेयर्स डिफरेंट जॉब्स में चले गए। ऐसे में, जो भी नए प्लेयर्स स्टेडियम में आ रहे हैं, वह भी एथलीट्स को डिफरेंट सेक्टर्स में जॉब की गारंटी न मिलने से इनसिक्योर हो रहे हैं और वह प्रैक्टिस से ज्यादा अपनी स्टडीज पर ही ध्यान दे रहे हैं।And no expertsकिसी भी एथलीट की प्रिप्रेशन के लिए कोच के अलावा फिजियोथेरेपिस्ट, डायटीशियन, डॉक्टर और साइकोलॉजिस्ट क ा होना भी जरूरी है। प्लेयर्स को होने वाली इंजरी की देखभाल के लिए डॉक्टर, मसल्स पेन आदि के लिए फिजियोथेरेपिस्ट, डाइट मेंटेन करने के लिए डायटीशियन और प्लेयर की मेंटल स्ट्रेंथ बनाए रखने के लिए साइकोलॉजिस्ट सबसे ज्यादा जरूरी है। पर बरेली के एथलीट्स के लिए कोच के अलावा कोई भी अदर स्पेशलिस्ट अवेलेबल ही नहीं है। ऐसे में, प्लेयर्स के आगे बढऩे के रास्ते में बैरियर्स भी बढ़ गए हैं। प्राइवेट सेक्टर्स से उम्मीद एथलेटिक्स एसोसिएशन के मुताबिक अगर प्राइवेट सेक्टर प्लेयर्स क ो आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी लें तो फील्ड में रिवोल्यूशनरी रिजल्ट्स मिलने की उम्मीद है। फर्राटा दौड़ के लिए एथलेटिक्स के प्रति प्लेयर्स और पब्लिक में अट्रैक्शन नहीं है। ओलंपिक में जाने का सपना
अभी मैं क्लास 10 की स्टूडेंट हूं, और मैं एक एथलीट के तौर पर अपना कॅरियर संवारना चाहती हूं। अब तक मैंने यूपी स्टेट ओपन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में गोल्ड और नार्थ जोन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता है। मेरा सपना ओलंपिक में जाने का है, पर कई बार सिटी में अवेलेबल फैसिलिटीज और सीनियर्स की पोजीशन देखकर निराशा भी हो जाती है। पर मैं जितना संघर्ष कर सकती हूं, उतना जरूर करूंगी।-वैशाली सिंह, नार्थ जोन एथलेटिक्स चैंपियनशिप, सिल्वर मेडल विनरशायद गलत ट्रैक पर आ गई12वीं से एथलीट हूं। ओपन स्टेट चैंपियनशिप, वीमेंस नेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप और इंटर जोनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप में मेडल विनर रह चुकी हूं। मैं डेली प्रैक्टिस के लिए स्टेडियम आती हूं, पर लगता है यह मेरा रास्ता नहीं है, मैंने सिविल सर्विसेज की प्रिप्रेशन करनी भी शुरू कर दी है। सुविधाओं के अभाव में मैं ओलंपिक का सपना भी नहीं देख सकती।मोनिका सिंह, वीमेंस नेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप, ब्रांज मेडल विनरहर मोड़ पर बस hurdleमैं ओपन नेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप में पार्टिसिपेट कर चुका हूं और स्टेट ओपन में तो गोल्ड मेडल मिल चुका है। पर जब मैं अपना स्टेमिना बढ़ाने और पॉवर गेन करने के बारे में सोचता हूं, तो तमाम फाइनेंशियल हर्डल्स रास्ते में आते हैं। यहां तो इंजरी होने पर डॉक्टर का खर्च भी खुद ही उठाना पड़ता है, ऐसे में आगे की राह काफी कठिन नजर आने लगती है।
-मो। फहीम, ओपन स्टेट एथलेटिक्स चैंपियनशिप, गोल्ड मेडल विनरTalent यहां बेशुमारमुझे लगता है कि जितनी मेहनत बरेली के एथलीट्स करते हैं, उन्हें अगर उतनी ही बुनियादी सुविधाएं खेल में आगे बढऩे के लिए दी जाएं। तो यह निश्चित है कि हमारे शहर का नाम ओलंपिक तक भी पहुंच जाएगा। क्योंकि यहां प्रतिभा की कमी नहीं है। पर फाइनेंसियल हेल्प और गवर्नमेंट पॉलिसीज ना होने की वजह से कई बार एथलीट्स को निराश होना पड़ता है।-कैलाश, ओपन स्टेट एथलेटिक्स चैंपियनशिप, सिल्वर मेडल विनरढीला पडऩे लगा अब जोशमैंने ओपन स्टेट एथलेटिक्स चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता, इसके बाद मेरा जोश काफी बढ़ा था। जज्बा इतना ज्यादा था मानों मैं आसमान से तारे भी तोड़ लाऊं, पर जैसे-जैसे दिन बीतते गए। जोश भी काफूर सा होता जा रहा है। अगर एक ही साल में 2-3 कॉम्पिटीशन ऑर्गनाइज करवाए जाएं तो एथलीट्स का जोश बरकरार रहेगा और वह बेहतर रिजल्ट्स दे पाएंगे।आशू कुमार, ओपन स्टेट एथलेटिक्स चैंपियनशिप, सिल्वर मेडल विनरFuture के लिए security नहींयह सही है कि बरेली के एथलीट्स में जज्बे की कमी नहीं है, पर एथलीट्स को फ्यूचर के लिए जॉब सिक्योरिटी नहीं है। ऐसे में, पेरेंट्स ही बच्चों को फील्ड में आगे बढऩे के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं। इसके अलावा, जरूरी डाइट, प्रॉपर ट्रैक भी एथलीट्स को नहीं मिल पाता है। वहीं, एथलीट्स के जज्बे को बनाए रखने के लिए साइकोलॉजिस्ट की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। यहां तक कि हमारे पास एक फीजियोथेरेपिस्ट भी नहीं है, जो प्लेयर्स की इंजरी के समय उन्हें ट्रीटमेंट दे सके। ऐसे में, एथलीट्स का जज्बा रास्ते में आने वाली बाधाओं की वजह से ही टूटने लगता है।-जेएस द्विवेद्वी, एथलेटिक्स कोच, साई स्टेडियम कभी sponsors नहीं मिलतेएथलेटिक्स एसोसिएशन से जुड़ा होने की वजह से मैं कई बार एथलेटिक्स चैंपियनशिप ऑर्गनाइज करने की प्लानिंग करता हूं, पर हमें कभी भी स्पांसर्स ही नहीं मिल पाते हैं। इतना ही नहीं, हमें साई स्टेडियम में चैंपियनशिप कराने के लिए ही कैंट बोर्ड को उसका रेंट देना होगा। इसलिए, सिटी में कभी भी चैंपियनशिप ही ऑर्गनाइज नहीं हो पाती है। मैं खुद भी एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप का गोल्ड मेडलिस्ट हूं पर मुझे मजबूर होकर अपनी मंजिल को भूलना पड़ा।-साहिबे आलम, सेक्रेट्री, यूपी एथलेटिक्स एसोसिएशनnidhi.gupta@inext.co.in

Posted By: Inextlive