Bareilly : आजादी मिलने से अब तक देश में डेवलपमेंट की जो बयार बही उसके साथ ही शुरू हुई मुसीबतों ने आम जनता के माथे की शिकन को भी गहरा कर दिया. पŽिलक को उसके मौलिक अधिकारों से संवारने वाला संविधान 26 जनवरी 1950 को देशभर में लागू हो गया. उम्मीदें जगीं कि आने वाला कल बेहतर होगा. लेकिन वह इंतजार 64 साल बाद आज भी उस कल के लिए बरकरार है. हल चलाने वाला देश सैटेलाइट टेक्नोलॉजी डेवलप कर स्पेस में तो पहुंच गया. लेकिन आम जनता अपने बुनियादी अधिकारों की आजादी के लिए आज भी संघर्ष कर रही है. खुद को मिलने वाली सुविधाओं से आज भी समझौता करने को मजबूर इस आम इंसान के लिए यह रिपŽिलक डे भी क्या सच में असली गणतंत्र ला सका है?


Transport become tragedyदेश भर में पटरियों का जाल बिछाकर सुपरफास्ट और एक्सप्रेस ट्रेनें दौडऩे तो लगीं, लेकिन आम मुसाफिरों के लिए अवैध वसूली और करप्शन के 'हमसफरÓ भी साथ लाई। तत्काल कोटे में टिकट लेना हो तो बिना दलालों के यह मुमकिन नहीं। अनरिजव्र्ड टिकट लेना पड़े तो जगह मिले गारंटी नहीं। भेड़-बकरियों की तरह जनरल डिŽबे में घुसे गरीब लोगों से वसूली अलग से। रोडवेज बसें भी इससे अलग नहीं। यहां सीट तो मिल जाती है, लेकिन आरामदायक सफर के लिए प्रॉपर रोड नहीं मिलती। ऑटो की सिचुएशन तो इससे भी ज्यादा खराब। 'जनरल टिकट पर सीट की कोई गारंटी नहीं होती। रेलवे की मिली-भगत से तत्काल रिजर्वेशन पर एजेंट कŽजा जमाए बैठे हैं। पैसेंजर्स को दलालों के हाथों बाजार से दोगुने मूल्य पर टिकट खरीदनी पड़ती है। रोडवेज की बसों का हाल भी बेहाल है.'-राजीव खुराना, व्यापारी।सुविधा के नाम पर दुविधा


आजादी के बाद हुए डेवलपमेंट ने इंडिया को भले ही देश को स्पेस टेक्नोलॉजी वाले देशों में शामिल कर दिया हो, लेकिन विकास की इस सड़क पर सुविधाओं के मील के पत्थर कम दुर्दशा के गड्ढे ज्यादा बने। सिटी की ही बात करें तो बुनियादी सुविधाओं के नाम पर आम आदमी शोषण का शिकार ज्यादा हुआ है। अपने आशियाने के लिए आवासीय योजनाओं में अलॉटमेंट तो होता है, लेकिन प्रोजेक्ट की देरी और अधूरा काम सपने को भी पूरा होने से पहले तोड़ देतें हैं। बिजली दिन में 8-10 घंटे गायब रहे, लेकिन विभाग को बिजली के बिल का पेमेंट समय पर चाहिए। पीने का पानी बिना फिल्टर किए पीना क्राइम सरीखा है। सारा टैक्स देने के बाद भी सड़क से सफाई तक हर जगह दिक्कतें, जिनकी सुनवाई नहीं।'किसी भी सिटी के विकास के लिए वहां के परफेक्ट इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होती है। डेवलपमेंट के लिए बिजली, पानी, घर, यातायात के साथ ही शुद्ध हवा, रोटी कपड़ा और मकान जरूरी हैं। लेकिन मौलिक अधिकार के नाम पर लूट मची है.' अर्चित सेठी, क्लब मेंबरहेल्थ में खराब हालत

जनता को बेहतर मेडिकल सुविधाएं देने के लिए सरकार की ओर से बेशक कई कदम उठाए गए, लेकिन जमीन पर जनता तक पहुंचने में उनमें से कई औंधे मुंह गिरने लगीं। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल्स में फ्री इलाज और दवा की सुविधा के बीच कमीशन का कीड़ा तकलीफ देने लगा। वहीं जांच और दवा के लिए गरीब जरूरतमंदों से वसूली किसी से छुपी नहीं। डॉक्टर से मिलने वाले चंद सेकेंड्स के लिए ओपीडी की लंबी लाइनों में इंतजार, दवा के लिए कई बार अगले दिन आने की परेशानी और अच्छे इलाज के लिए मन में तमाम आशंकाएं। इन्हीं बातों का फायदा प्राइवेट हॉस्पिटल्स ने उठाया। जनता से बेहतर इलाज के  बदले भारी बिल वसूलते हैं। वहीं इन निजी हॉस्पिटल्स-नर्सिंग होम्स की अनियमितताओं पर नकेल कस पाने में अधिकारी फेल रहे।'शहर में डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में मिलने वाली सुविधाएं मरीजों को देखते हुए ना के बराबर हैं। अव्यवस्था और खामियों पर आरटीआई से भी जवाब नहीं मिलता.' - कमलेश त्रिपाठी, सर्विसपर्सनपुलिस सिर्फ पॉवरफुल लोगों की आम इंसान की सेफ्टी और कानून व्यवस्था मेंटेन करने के लिए जिम्मेदार पुलिस आजाद मुल्क में कईयों के लिए आतंक और डर का नाम है। एक कंप्लेन दर्ज कराने के लिए आम आदमी को पुलिस स्टेशन के चक्कर लगाने पड़ते हैं। बिना किसी पहुंच या रुतबे के पहुंचे आम इंसान की फरियाद नहीं सुनी जाती। लोगों के लिए पुलिस का रवैया भी कई बार किसी बेइज्जती से कम नहीं। मॉरल पुलिसिंग महज एक सपना रहा, हकीकत में ऐसी कोई मशीनरी नहीं जिसमें जनता अधिकारियों तक सही तरीके से अपनी कंप्लेन पहुंचा सके। खाकी के नाम पर वसूली, ट्रैफिक रूल्स सिखाने की कवायद में खुद की जेब गर्म करना पुलिस की ड्यूटी में जुड़ सा गया है।

'संविधान में जो अधिकार हैं वो नहीं मिलते हैं। पुलिस टहलाती है और अधिकारियों के दबाव पर ही एफआईआर दर्ज करती है। पुलिस का रवैया संतोषजनक नहीं रहता है.' -नितिन अग्रवाल, फाइनेंसियल एडवाइजरहायर एजूकेशन की राह पर टूटते हैं सपनेस्कूलिंग खत्म करने के बाद अपने करियर के तमाम सपने संजोए जब एक स्टूडेंट हायर एजूकेशन की राह पर चलता है तो उसे इंस्टीट्यूशंस, टीचर्स व पूरे एजूकेशन सिस्टम से कई अपेक्षाएं होती हैं। उसे यह उम्मीद रहती है कि उसकी मेहनत का मूल्यांकन ईमानदारी से होगा। उसका रिजल्ट टाइम से निकलेगा। वो जो नॉलेज गेन कर रहा है उसे स्किल्ड बनाएगा। यही नहीं इंस्टिट्यूशंस के इंफ्रास्ट्रक्चर उसकी मंजिल की पहली सीढ़ी बनेंगे। लेकिन जब हायर एजूकेशन की राह में अधिकांश के सपने थक कर टूट जाते हैं। उसे वह नॉलेज नहीं मिल पाती जो मार्केट के डिमांड के हिसाब से स्किल्ड बना सके। न टाइम से रिजल्ट डिक्लेयर होता है, ना ही प्रॉपर ग्रूमिंग व ट्रेनिंग और ना ही इंस्टीट्यूशन उसकी प्लेसमेंट के लिए खास हेल्प करते हैं।
'यदि हमारे मेहनत का सही फल नहीं मिल पाता तो यह हमें जानने का हक है कि हमारे द्वारा दिए गए रुपयों को कहां और किस तरह से इस्तेमाल होता है। बजट को सभी के लिए ऑनलाइन कर देना चाहिए। सबसे बड़ी प्रॉŽलम प्लेसमेंट अवेलेबल ना कराने की है। बिना सुविधाओं के हायर एजूकेशन किस काम की.'- अनवर शमीम, स्टूडेंट

Posted By: Inextlive