गोरखपुर में ग्राउंड वॉटर की कमी नहीं है. नौसड़ में 1.65 मीटर हांसूपुर में 5.95 मीटर और बडग़ो में 5.10 मीटर में ग्राउंड वॉटर मिल रहा है पर जिले के पानी में आर्सेनिक की मात्रा अधिक होने से हर पांचवां व्यक्ति पेट से संबंधित रोगों से परेशान है.


गोरखपुर (ब्यूरो)।डॉक्टर्स की मानें तो दूषित पानी पेट व लीवर संबंधित बीमारियों के साथ कैंसर का भी कारण बन सकता है। लिवर व किडनी को इफेक्ट करती है आर्सेनिक
जिला अस्पताल के डॉक्टर राजेश कुमार बताते हैैं कि जो भी मरीज ओपीडी में आते हैैं। उनमें देखा जाता है कि सल्फर युक्त पानी से उन्हें कुष्ठ रोग हो रहा है। वहीं, आर्सेनिक शरीर को कमजोर तो करता ही है। साथ में रोग प्रतिरोधक क्षमता को घटाता है। हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ। वत्सन खेतान ने बताया कि तराई क्षेत्र होने के कारण पीने वाले जल में फ्लोराइड बढऩे से फ्लोरीसिस होता है और हड्डियां गलने लगती हैं। दूषित पानी से पीलिया, कुष्ठ, किडनी, लीवर, आंत्र शोध, डायरिया, फाइलेरिया, घेंघा इत्यादि रोगों का भी खतरा बढ़ जाता है। 2018 में गोला के एक गांव में आर्सेनिक की मात्रा अत्यधिक मात्रा में पाए जाने से कई बच्चे दिव्यांग होने के मामले भी सामने आ चुके हैैं।एमएमएमयूटी में हुई स्टडी


सिटी से लेकर रूरल एरिया में बीमारी का कारण अधिकांश लोगों के घरों में लगे निजी सबमर्सिबल और हैैंडपंप से आने वाला आर्सेनिक युक्त पानी है। इस पर एमएमएमयूटी के प्रो। गोविंद पांडेय की तरफ से सर्वे रिपोर्ट में भी खुलासा हो चुका है। पर्यावरणविद् प्रो। गोविंद पांडेय बताते हैैं कि दोहन और रिचार्ज का संतुलन न होने से गोरखपुर और आसपास के भूजल में आर्सेनिक की मात्रा बढऩे लगी है। वह बताते हैं कि जब तक भूमि की नीचे जल रहता है तब तक आसपास की चट्टानों में मौजूद आर्सेनो पाइराइट अघूलनशील होने के चलते उसमें नहीं मिलते। पर जैसे ही दोहन के चलते पानी से खाली हुए स्थान पर हवा भरती है तो हवा का आक्सीजन आर्सेनो पाइराइट को पीटीसाइट में बदल देता है। पीटीसाइट बनते ही आर्सेनिक जल में घुलने लगता है। यही वजह है कि बीते कुछ वर्र्षों में गोरखपुर के भूजल में आर्सेनिक की मात्रा बढ़ी है। जल की बर्बादी की कई वजहें

पानी की बर्बादी पर पर्यावरणविद् प्रो। गोविंद पांडेय ने बताया कि जल की बर्बादी की एक नहीं कई वजहें हैं। औद्योगिक संस्थानों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में तो इसे लेकर लापरवाही बरती ही जा रही है। घरों और सार्वजनिक स्थानों पर भी इसे लेकर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। कृषि क्षेत्र में जल का जमकर दोहन हो रहा है। जलापूर्ति की बात करें तो शहरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 135 लीटर की आपूर्ति का मानक है, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में 70 लीटर प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन। अध्ययन के मुताबिक इसमें से 15 से 20 परसेंट जल बर्बाद हो जाता है। इसकी वजह सिर्फ व सिर्फ जल का दुरुपयोग है। कहीं भोजन बनाने में जल का दुरुपयोग हो रहा तो कहीं नियमित कार्य में। सभी को यह सोचने की जरूरत है कि क्या वह जिस मात्रा में जल का दोहन कर रहे, उस मात्रा में भूमि को जल दे पा रहे हैं। इसमें सभी को अपनी भूमिका सुनिश्चित करनी होगी। जल और कल के लिए चेतावनी - जितना जल का दोहन हमारे द्वारा किया जा रहा है, उसके मुकाबले 10 प्रतिशत का रिचार्ज भी हम नहीं सुनिश्चित नहीं कर पा रहे। - इस रिचार्ज में भी हमारी भूमिका कम प्रकृति की ज्यादा है, क्योंकि 10 प्रतिशत में से सात से आठ प्रतिशत रिचार्ज बारिश से हो जाता है। - गोरखपुर में दोहन-रिचार्ज का यह आंकड़ा जल संरक्षण में भूमिका को लेकर लोगों को सचेत करने वाला है।ऐसे बचा सकते हैं जल - वाहन को धोने के लिए पाइप की बजाय मग का इस्तेमाल करके।- घरेलू व नियमित काम में केवल काम के दौरान पानी का नल खोलकर।- घरों में पतली धार या नाजिल वाला नल लगाकर।- खेतों में ड्रिप व स्प्रिंगलर सिंचाई पद्धति का इस्तेमाल करके।
- वर्षा के जल को इस्तेमाल करके। - बाथरूम और रसोई में इस्तेमाल जल का बागवानी आदि कार्यों में इस्तेमाल करके। गोरखपुर में ग्राउंड वॉटर लेवल स्थान --- प्री मानसून -- पोस्ट मानसूननौसड़ -- 6 -------- 1.65 मंडी परिषद - 6.85 ---- 3.25हांसूपुर --- 9.05 ----- 5.95पीआडिटी सेट - 4.70 ---- 1.64सिक्टौर ----- 7.05 ---- 5.10बडग़ो ------ 5.70 --- 5.10 (नोट: आंकड़े मीटर में 2022 की रिपोर्ट के अनुसार हैं.)

Posted By: Inextlive