तारीख गुजरती जाती लेकिन बारी नहीं आती
- जिले में पेंडिंग मुकदमों का आंकड़ा हुआ 40 हजार के पार
- सुनवाई में विलंब तोड़ रहा वादकारियों का भरोसा GORAKHPUR: जिले के न्याय विभाग में मुकदमों का बोझ बढ़ता जा रहा है। कोर्ट में लंबित मुकदमों की तादाद 40 हजार का आंकड़ा पार कर चुकी है। अदालतों में फाइलों के बढ़ते पहाड़ के नीचे दबे वादकारी फैसले के इंतजार में कचहरी का चक्कर काट रहे हैं। दीवानी कचहरी में हर माह सैकड़ों वाद दाखिल होते हैं। उनकी अपेक्षा मामलों के निस्तारण में तेजी न आने से वादों की संख्या नहीं घट पा रही। अधिवक्ताओं का कहना है कि मुकदमों की पैरवी में ढिलाई, कई बार कोर्ट के खाली रहने से मुकदमों का निस्तारण करा पाना संभव नहीं हो रहा है। इसलिए शासन को मुकदमों के आधार पर न्यायिक व्यवस्था में बदलाव करना चाहिए। हर माह 300 से अधिक वादजिला एवं सत्र न्यायालय में वादकारियों की भीड़ दिनभर लगी रहती है। मुकदमों की पैरवी के लिए जुटने वाले वादकारी तारीख पर तारीख कोर्ट का चक्कर लगा रहे हैं। वादकारियों को न्याय मिलने में हो रही देरी से समस्याएं खत्म होने की जगह बढ़ती जा रही हैं। मुकदमों के फैसले में होने वाले विलंब से उनको बार-बार तारीखों पर आना पड़ता है। कचहरी से जुड़े लोगों का कहना है कि लगातार काम करके मुकदमों का निस्तारण कराया जा सकता है। कुछ अदालतों के खाली रहने तो कुछ अदालतों में वादों से जुड़े लोगों की लापरवाही भारी पड़ रही है। कोर्ट से जुड़े लोगों की मानें तो सितंबर माह में करीब 40 हजार मुकदमे लंबित थे। इनमें आईपीसी की विभिन्न धाराओं के 34 हजार से अधिक मुकदमे पेंडिंग चल रहे हैं।
इतने मुकदमों का बोझ ं अधीनस्थ न्यायालय आईपीसी के दर्ज मुकदमे - 31,106 अन्य अधिनियमों में दर्ज वाद - 1556 सत्र न्यायालय अभियोजन संवर्ग एससी-एसटी एक्ट - 1016 गिरोहबंद - 405 सत्र न्यायालय आईपीसी - 3451 अन्य अधिनियमों के वाद - 1976 कुल मुकदमे - 39510कुल अदालतें - 49
खाली चल रही अदालतें - 10
नोट - कुछ में कभी-कभी कोर्ट लगती है। गैंगेस्टर एक्ट - 01 एससी-एसटी एक्ट- 01 ईसी एक्ट - 01 एंटी करप्शन कोर्ट- 05 परिवार न्यायालय -01 सीजेएम - 01 सिविल जज सीनियर डिवीजन - 01 सिविल जज जूनियर डिवीजन -01 एडीजे कोर्ट - 19 एसीजेएम-04 अन्य अदालतें- 03 इस वजह से होता विलंब - अदालतों के खाली होने पर समय से सुनवाई नहीं हो पाती है। - मुकदमों की लचर पैरवी से पेंडेंसी लगातार बढ़ती जाती है। - मुकदमों के गवाहों और विवेचकों के अनुपस्थित रहने की वजह से। - जवाब दाखिल करने में होने वाली देरी से मामले पेंडिंग रह जाते हैं। - कंडोलेंस, हड़ताल और न्यायिक कार्य के बहिष्कार का असर पड़ता है।