जन-जन की बात, चाय पर चर्चा

GORAKHPUR: यूपी विधानसभा चुनाव की तारीख तय हो चुकी है। इसके साथ ही चट्टी-चौराहों पर शुरू हो चुका है चर्चाओं का दौर। कहीं कोई किसी पार्टी को जिता रहा है। इस पूरे माहौल को एक अलग रंग दे रही है चाय के अड्डों पर जमने वाली चौपाल। इन दुकानों पर एक से एक चुनावी एक्सपर्ट मौजूद हैं। पीएम के फैसलों से लेकर सीएम के समीकरणों की बिंदास अंदाज में समीक्षा चल रही है। बैंक रोड पर स्थित ऐसे ही एक चाय के अड्डे पर आई नेक्स्ट टीम पहुंची। यहां हमने चाय पर चर्चा के दौरान जो कुछ सुना पेश उसकी लाइव झलक

 

स्थान: बैंक रोड स्थित राजेंद्र कुमार की चाय की दुकान

समय: दोपहर करीब तीन बजे

 

रोज की तरह लोगों का हुजूम जुटा हुआ है। अंदर जगह भरी हुई है। लोग दुकान के बाहर ही हाथों में चाय का गिलास लिए बातों में मसरूफ हैं। आई नेक्स्ट टीम वहां पहुंचती है।

 

आई नेक्स्ट रिपोर्टर: क्या लगता है आप लोगों को, किसका माहौल बन रहा है चुनाव में?

रजत पांडेय: भइया, फिलहाल तो नेशनल मुद्दों का माहौल चल रहा है। सर्जिकल स्ट्राइक, नोटबंदी है जिसकी चर्चा लोग कर रहे हैं।

 

अफजाल खान (रजत पांडेय को रोकते हुए) देखिए केवल नेशनल बातों से काम नहीं बनेगा। लोकल लेवल पर क्या काम हुआ है? कौन सा डेवलपमेंट हुआ है?

 

देवेंद्र त्रिपाठी: वैसे देखा जाए कहीं न कहीं लोगों के मन में बीजेपी की इमेज बन चुकी है। बाकी पार्टियों का नाम इतना ज्यादा नहीं है।

 

अफजाल खान: क्या बीजेपी-बीजेपी? डेवलपमेंट क्या हुआ है? एक डेवलपमेंट बता दें मुझे?

 

रजत पांडेय: क्यों नहीं हुआ है डेवलपमेंट? बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें बनी हैं।

 

अफजाल खान: आम आदमी की एक भी रिक्वॉयरमेंट पूरी हुई है? इतनी ज्यादा गंदगी है यहां। कैसे मेट्रो सिटी बनेगा ये शहर? आखिर कौन सा डेवलपमेंट होगा?

 

(इसी बीच बहुत देर से वहां खड़ा शख्स अचानक आगे आता है। पूछने पर अपना नाम शालू बताता है.)

शालू: देखौ भईया, अखिलेश जितिहैं इहां से? अखिलेश जी का उम्मीद है?

 

(पूरी बहस अचानक नया मोड़ ले लेती है.)

अफजाल खान: हां भाई, अखिलेश जी ने लिमिटेड टाइम में माइलस्टोन खड़ा किया है। उन्होंने जो कर दिया है ना, बता रहे हैं कर नहीं पाएगा कोई। क्षमता है उस आदमी में हां।

 

काम तो किया है उस आदमी नेलेकिन अपने घर के झगड़े से बहुत परेशान है

(अचानक एक नया शख्स सामने आता है। पूछने पर नाम बताता है अरविंदमणि त्रिपाठी)

अब चर्चा अखिलेश-मुलायम झगड़े का रुख कर लेती है।

अरविंदमणि त्रिपाठी: हां, बाप-बेटों में झगड़ा है, लेकिन फिर भी अखिलेश का जलवा है।

 

(बिलाल रिजवी बहस में दाखिल होते हैं)

 

बिलाल: देखिए अखिलेश की पार्टी में जो भी हो रहा है। लेकिन उन्होंने अपने काम से अपनी पहचान बनाई है।

 

(इस बीच एक बुजुर्ग शख्सियत हाजी निसार अहमद, बोलना शुरू करते हैं.)

 

हाजी निसार अहमद: देखो भाई, बाप-बेटे का झगड़ा है। आखिर में बाप बेटा पर रहम कर ही देता है। यही दुनिया का दस्तूर रहा है। बाकी आंखें बूढ़ी हो गई देखते-देखते, विकास-ऊकास कोई किया नहीं आज तकहां।

 

(इसी बीच में भाजपा और सपा के मुद्दे पर थोड़ा शोर-शराबा बढ़ता है। लोगों को समझाया जाता है। फिर बात शुरू होती है। फिर रजत पांडेय बोलना शुरू करते हैं.)

 

रजत पांडेय: गोरखपुर में विकास के नाम पर बस खाली प्रोपोगेंडा ही हुआ है। बस नाम के लिए बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें बना दी हैं। सत्ताधारियों ने अपना पेट भरा है बस।

 

अरविंदमणि: कोई विकास नहीं होता है अब। घोषणाएं बस खाली घोषणाएं ही रह गई हैं। अखिलेश अलग फीता काट रहे हैं, मोदी अलग फीता काट रहे हैं। फीटा काटके काम खतम हो जा रहा है। शहर तो गड़हा में जा रहा है।

 

अफजाल खान: वास्तव में एक सही आदमी विधायक बनना चाहिए। जो लोगों को उनकी जरूरत की चीजें मुहैया करा पाए। डेवलपमेंट को सही दिशा दे सके।

 

रजत पांडेय: इस बार तो बहुत से ऐसे उम्मीदवार आ गए हैं, जिनका हमने कभी नाम ही नहीं सुना? अब ऐसे आदमी को न तो जनता जानेगी और न वो जनता को पहचानेंगे। तो काम कहां से होगा?

 

कुल मिलाकर बहस का लब्बोलुआब यही रहा कि स्थानीय मुद्दों पर नेशनल मुद्दे हावी हैं। लोग शहर की समस्याओं से तो जूझ रहे हैं, लेकिन नेशनल लेवल के हिसाब से रणनीतियां तय हो रही हैं।

 

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टी प्वॉइंट

देखो भइया 90 साल से तो यहां पर हमारी दुकान ही है यहां। 60 साल से ज्यादा उमर हमारी खुद की हो गई। बाप-दादा ने जब यहां दुकान खोली थी, तब से इस चौराहे को देख रहा हूं। शहर को देख रहा हूं। घने पेड़ों की जगह यहां घनी इमारतें खड़ी हो गई, लेकिन शहर की तकदीर वीरानी ही रह गई। क्या ये पार्टी, क्या वो पार्टी। सबके अपने-अपने स्वार्थ हैं बस। जब तक सत्ता नहीं मिली तब तक सपने दिखाते हैं। सत्ता मिलने के बाद गायब हो जाते हैं।

राजेंद्र कुमार, चाय दुकान के मालिक

(बैंक रोड पर 90 साल से दुकान है)

Posted By: Inextlive