इस जेल में तो मेरी ही हुकूमत चलेगी..
गोरखपुर मंडलीय कारागार
- 1903 में गोरखपुर जेल का अंगे्रजों ने कराया था निर्माण - 822 बंदियों की क्षमता है जेल की - 1700 सौ बंदी निरुद्ध हैं जेल में ---------- इनके भरोसे जेल की सुरक्षा 1 वरिष्ठ जेल अधीक्षक 1 जेलर 3 डिप्टी जेलर 100 से अधिक बंदी रक्षक 13 सीसीटीवी लगे थे, एक ही है चालू 2 जैमर, एक भी काम का नहीं --------------- जेल में बंद वीआईपी व माफिया - पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी - पत्नी मधुमणि त्रिपाठी - माफिया सुधीर सिंह - पवन सिंह - सपा नेता गोपाल यादव - सस्पेंड प्रिंसिपल डॉ। राजीव मिश्रा - डॉ। पूर्णिमा शुक्ला - डॉ। कफील -------------- i breaking - जेल में माफियाओं, वीआईपी कैदियों की बढ़ी संख्या - खराब सीसीटीवी व जैमर से नहीं हो पा रही है रखवाली - जांच में फंसे अफसरों के भरोसे है जेल GORAKHPUR:बीआरडी में मासूमों की मौत के आरोपियों के बाद पवन सिंह की गिरफ्तारी से गोरखपुर जेल में वीआईपी कैदियों की संख्या बढ़ गई है। इससे एक तरफ पहले से जेल में बंद कुछ लोगों के चेहरे खिल गए हैं तो वहीं दूसरी तरफ जेल में आमदनी बढ़ जाने से कुछ अफसरों व कर्मचारियों की तो बांछें ही खिल गई हैं। माफियाओं, बदमाशों और गुंडों के खिलाफ होने वाली कार्रवाई गोरखपुर जेल में बेअसर है। दागदार अफसरों के सहारे चल रही जेल में वीआईपी के साथ ही उनके चहेते बंदियों की मौज है। जेल की सुरक्षा दागी अफसरों के भरोसे है तो सीसीटीवी से लेकर जैमर तक फेल है जिससे कैदियों की निगरानी संभव नहीं।
आवभगत को लेकर मची होड़ बीआरडी मेडिकल कॉलेज प्रकरण में गिरफ्तार सस्पेंड प्रिंसिपल डॉ। राजीव मिश्रा, उनकी पत्नी डॉ। पूर्णिमा शुक्ला और डॉ। कफील की गिरफ्तारी के बाद से जेल में रौनक बढ़ गई है। इसका असर कर्मचारियों पर नजर आ रहा है। जेल से जुड़े लोगों का कहना है कि वीआईपी और माफियाओं की आवभगत को लेकर जेल अधिकारियों-कर्मचारियों में होड़ मची है। जेल के भीतर खुफिया निगरानी का कोई इंतजाम न होने से सबकी मनमानी चल रही है। बॉक्स जेल में बंद लेकिन है मौजा ही मौजाविभिन्न मामलों में जांच की आंच झेल रहे अफसरों के हवाले गोरखपुर जेल है। वरिष्ठ जेल अधीक्षक रामधनी आजमगढ़ में तीन बंदियों के भागने के मामले में जांच का सामना कर रहे हैं। जेलर राम कुबेर सिंह पर कई गंभीर आरोप लगे हुए हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ के करीबी डॉक्टर से रंगदारी मांगने के मामले में जेलर की जांच चल रही है। आरोप है कि शातिर बंदी संजय यादव को जेलर का संरक्षण मिला हुआ था। जेलर के रसूख के चलते डीआईजी जेल अपनी जांच पूरी नहीं कर पा रहे हैं। जेल से बंदियों के मोबाइल पर बात करने के पुख्ता सबूत होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हो सकी थी। मंगलवार को डीआईजी जेल ने एसएसपी गोरखपुर से बात करके मोबाइल कॉल डिटेल मांगा है। जेल में छह साल से अधिक समय से तैनात बंदी रक्षकों का ट्रांसफर न होने से मनमानी खत्म नहीं हो पा रही है। इस संबंध में जब जेलर रामकुबेर सिंह से बात की गई तो उन्होंने यह जवाब दिया। मेरा सीयूजी नंबर है, जब चाहूंगा तभी रिसीव करूंगा। जिसका नंबर सेव नहीं होता, उसका फोन मैं रिसीव नहीं करता। चाहे फोन करने वाले मेरे आईजी हों या डीआईजी, इसका कोई फर्क नहीं पड़ता है।
वर्जन जेल सुपरीटेंडेंट और जेलर पर लगे आरोपों की जांच की जा रही है। जेल की हर हरकत पर नजर है। जेल में बंदियों को वीआईपी ट्रीटमेंट देने वाले कतई बख्शे नहीं जाएंगे। - यादवेंद्र शुक्ला, डीआईजी