GORAKHPUR : 'तलवार खूं में रंग लो अरमान रह न जाए बिस्मिल के सर पे कोई अहसान रह न जाए.Ó आजादी की लड़ाई के दीवाने पं. राम प्रसाद बिस्मिल जी ने फांसी के फंदे को चूमते हुए अंग्रेजों को कुछ इस तरह ललकारा था. मगर शायद उन्हें यह नहीं मालूम था कि उनकी इस लड़ाई को लोग इतनी जल्दी भूल जाएंगे. शहीदों के नाम पर पार्क बन गए तो चौराहों पर मूर्तियां लग गई. मगर उन्हें याद सिर्फ आजादी के दिन ही किया जाता है. आजादी के लिए अपनी जान तक लुटा देने वाले क्रांतिकारी अगर जिंदा होते तो उन्हें आज काफी अफसोस हो रहा होता.


टाइम पास का अड्डा बना शहीद पार्क
आजादी की जंग में गोरखपुर का अहम योगदान है। यहां क्रांतिकारी रणनीति बनाते थे। इन शहीदों ने अगर देश की आजादी के लिए अपना खून बहाया तो अंग्रेजों के जाने के बाद सिटी में जगह-जगह इन्हें जिंदा रखने के लिए पार्क बनाए गए और मूर्तियां लगाई गई। मगर इन शहीदों ने भी नहीं सोचा था कि जिस पीढ़ी के लिए वे अपनी जिंदगी को मौत के हाथों में रख आजादी की लड़ाई लड़ रहे है, वे उन्हें भूल जाएंगे। फांसी का फंदा चूमने वाले इन शहीदों का बदला चुकाने के बजाए 15 अगस्त और 26 जनवरी को उन्हें याद कर एहसान जता रहे है। पं। राम प्रसाद बिस्मिल जी को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई थी। उनकी याद में सिविल लाइंस में एक पार्क बना है, जिसकी केयर जीडीए करता है। इस पार्क में डेली सैकड़ों लोगों का जमावड़ा रहता है। मगर ये लोग पं। जी की कुर्बानियों को याद करने नहीं बल्कि मौज-मस्ती करने जाते है। उनका मकसद पार्क में टाइम-पास करना, लंच करना और फ्रेंड्स के साथ स्मोकिंग करना होता है। जीडीए भी पार्क बनाकर मानो भूल गया है तो प्रशासन ने कभी बिस्मिल जी को याद करने की कोशिश भी नहीं की। पार्क की गंदगी, कूड़ा के साथ वाइन  की बोतलें, लंबी-लंबी घास के साथ टूटा फाउंटेशन शोभा बढ़ा रहा है। कुछ ऐसा ही हाल कलेक्ट्रेट परिसर में बने शहीद उद्यान का है। जहां शहीदों की याद में मेला तो नहीं लगता, मगर पार्किंग के चलते गाडिय़ों को रेला जरूर लगता है। पार्क का चबूतरा टूटा हुआ है। वहीं सिटी में लगी क्रांतिकारियों की मूर्तियां भी खुद पर आंसू बहा रही है। बेतियाहाता चौराहे पर लगी सरदार भगत सिंह और काली मंदिर चौराहे पर लगी सरदार पटेल की मूर्ति दुर्दशा का शिकार है।

Posted By: Inextlive