जिंदगी से हार गया दाने-दाने को मोहताज अशोक

-बीपीएल राशन कार्ड निरस्त होने से भुखमरी की कगार पर परिवार

-दो जून का निवाला भी नहीं जुटा सका तो दे दी जान

LUCKNOW : वह पेशे से मजदूर था, परिवार में पत्‍‌नी और छहच् बच्चेदिनभर की जीतोड़ मेहनत के बाद दो जून का निवाला जुटाना मुश्किल था। गरीबी का आलम ऐसा कि घर में न दरवाजे और न ही आराम करने के लिए चारपाई। 15 साल पहले जो बीपीएल राशन कार्ड बना वह भी छह महीने पहले कैंसिल कर दिया गया.फाकाकशी की नौबत देख पत्‍‌नी व बड़ी बेटी ने नौकरी का जुगाड़ किया, पर, आसपड़ोस के लोगों ने मां-बेटी के चरित्र पर ही सवाल उठाना शुरू कर दिया। गरीबी और आत्मसम्मान पर चोट अशोक बर्दाश्त नहीं कर सका। और आखिरकार फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। दिलदहला देने वाली घटना गुडंबा के बसहा गांव की है। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिये भेज दिया है।

बेहद गरीबी में काट रहा था जीवन

गुडंबा के बसहा गांव निवासी अशोक कुमार रावत (45) पेशे से मजदूर था। वह पत्‍‌नी रन्नो, बेटों दीपक, मनीष, शिव और बेटियों खुशबू, मेहर व महक के साथ रहता था। बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले अशोक के पिता राधेलाल को 80 के दशक में तत्कालीन इंदिरा सरकार में कॉलोनी (ग्राम समाज द्वारा आवंटित जमीन पर सरकारी अनुदान से बना कमरा) आवंटित हुई थी। पिता की मौत के बाद कमरे को अशोक व उसके भाई वेदप्रकाश ने आधा-आधा बांट लिया। हालांकि, बरस गुजर जाने के बाद भी आर्थिक हालत इस कदर दयनीय बनी रही कि वे कमरे में दरवाजा तक न लगा सके। घर में चारपाई न होने की वजह से सभी परिवारीजन जमीन पर ही सोते थे।

नहीं बन सका बीपीएल कार्ड

15 साल पहले अशोक का बीपीएल राशन कार्ड बन गया था। इस कार्ड से मिलने वाले राशन से परिवार गुजर-बसर कर रहा था। पर, छह महीने पहले बीपीएल राशन कार्ड निरस्त कर दिया गया। अशोक की पत्‍‌नी रन्नो ने बताया कि दोबारा राशन कार्ड बनवाने के लिये सेक्रेटरी और ग्राम प्रधान ने लिस्ट बनाई। लिस्ट में उन्हीं लोगों का नाम शामिल किया गया जिन्होंने इसके एवज में सेक्रेटरी को रिश्वत दे दी। लेकिन, अशोक तंगहाली के चलते रिश्वत न दे पाया लिहाजा, उसका राशन कार्ड दोबारा नहीं बन सका। रन्नो के मुताबिक, राशन कार्ड निरस्त होने की वजह से अशोक को मिलने वाली मजदूरी से दो जून की रोटी तक नहीं जुट पा रही थी। यह देख उसने बेटी खुशबू के साथ अमरसंडा गांव, कुर्सी रोड स्थित ऐसिया पब्लिक स्कूल में आया की नौकरी कर ली।

मान ली जिंदगी से हार

अशोक खुद मजदूरी करने चला जाता जबकि, रन्नो व खुशबू स्कूल में नौकरी करने चली जाती। उन्हें नौकरी पर जाता देख आसपड़ोस के लोगों ने उनके चरित्र पर अंगुली उठाते हुए कानाफूसी करना शुरू कर दिया। पड़ोसी की यह बातें अशोक तक पहुंची। गरीबी के चलते प्रतिकूल परिस्थिति उस पर पत्‍‌नी व बेटी पर झूठा लांछन सह न सका। सोमवार को रन्नो व खुशबू अपनी ड्यूटी पर चली गई। बेटा दीपक ऑटो क्लीनर का काम सीखने जबकि, मनीष व शिवा अपने स्कूल प्राइमरी पाठशाला चले गए। घर में केवल मेहर ही बची थी। मेहर ने बताया कि वह कई दिनों से पिता अशोक से आर्ट की कॉपी लाने के लिये रुपये मांग रही थी। सुबह करीब 8 बजे अशोक ने मेहर को बुलाकर रुपये दिये और कॉपी लाने को कहा। मेहर कॉपी लेने चली गई इसी बीच अशोक ने कमरे की छत पर लगे कुंढे में साड़ी के फंदे से फांसी लगा ली। कॉपी लेकर वापस लौटी मेहर ने पिता को फंदे से लटका देखा तो उसकी चीख निकल गई। शोरशराबा सुनकर पहुंचे आसपड़ोस के लोगों ने पुलिस को घटना की सूचना दी।

फिलहाल मामला मेरे संज्ञान में नहीं है। कोई शिकायत मिलती है तो जांच कराकर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

ज्योत्सना यादव

एसडीएम, बीकेटी

Posted By: Inextlive