- आई नेक्स्ट की ओर से हॉकी के महान खिलाड़ी केडी सिंह बाबू को श्रद्धांजलि

- हॉकी में उनकी परफॉरमेंस देखकर हतप्रद रह जाते थे दूसरे खिलाड़ी

- पहली बार केडी सिंह बाबू को प्रदान की गई थी Helms Trophy

LUCKNOW: इस बार हॉकी के महान खिलाड़ी कुंवर दिग्विजय सिंह को आई नेक्स्ट श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है। केडी सिंह बाबू ने अपने करियर की शुरुआत लखनऊ से की। यहां पर लखनऊ यंगमैन एसोसिएशन की देखरेख में उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया। भले ही उनका जन्म बाराबंकी जिले में हुआ हो, लेकिन उनकी कर्मस्थली लखनऊ ही रही है।

लखनऊ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली पहचान

लखनऊ की माटी में हॉकी के जादूगर बाबू केडी सिंह की स्मृति मानो आज भी रची बसी है। विश्व में अपनी कलाइयों के करतब से हॉकी के मैच का रुख मोड़ने के लिए फेमस केडी सिंह बाबू ने लखनऊ को इंटरनेशनल लेवल पर पहचान दी है। इसके चलते लखनऊ का विकास भी तेजी से हुआ है। यहां पर होने वाले इंटरनेशनल मुकाबलों के चलते यह व‌र्ल्ड में बड़ी तेजी से पॉपुलर हुआ है।

14 वर्ष की उम्र में उठाई हॉकी

केडी सिंह भले ही हमारे बीच नहीं है, पर उनकी स्मृतियों से हर खिलाड़ी जुड़ा हुआ है। प्रदेश की राजधानी से सटे बाराबंकी जिले में दो फरवरी 1922 को केडी सिंह बाबू का जन्म हुआ। 14 वर्ष की आयु में ही उन्होंने हॉकी खेलनी शुरू कर दी। धीरे-धीरे हॉकी में उनका जादू बिखरना शुरू हो गया। लखनऊ यंगमैन एसोसिएशन की टीम से खेलते हुए कलाइयों के इस जादूगर ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी थी। देश की राजधानी दिल्ली में आयोजित हुए ट्रेडर्स कप में बेहतरीन स्टिक वर्क और ड्रिबलिंग से उन्होंने वहां पर मौजूद लोगों को हतप्रभ कर दिया।

हुसैन ने माना, कमाल के खिलाड़ी

इसी ट्रेडर्स कप में लखनऊ की युवा टीम का मुकाबला दिल्ली की दिग्गज टीम के साथ हुआ। इस मुकाबले में ओलंपिक खिलाड़ी हुसैन भी शामिल हुए। बाबू केडी सिंह को तब यह नहीं बताया गया कि उनके खिलाफ खेल रही टीम में कोई ओलंपिक खिलाड़ी भी खेल रहा है। इसका मेन कारण था कि कहीं इसके चलते उनका नेचुरल गेम प्रभावित न हो। वह किसी दबाव में ना खेलें। हॉकी के जादूगर ने मैच के दौरान हुसैन को दबाए रखा। हुसैन भी कम आयु के इस लड़के केखेल कौशल से खासे प्रभावित हुए। हुसैन ने मैच के बाद कहा कि यह लड़का एक दिन हॉकी का महान खिलाड़ी बनेगा। बाबू ने 16 वर्ष तक यूपी की टीम का प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद भारतीय हॉकी टीम के उपकप्तान भी बने।

फिर ओलंपिक में झटका 'सोना'

लंदन में 1948 में हुए ओलंपिक में वह भारतीय टीम के वाइस कैप्टन हुए। यह पहला मौका था जब भारत ने आजादी के बाद किसी खेल में हिस्सा लिया था। इसकेबाद वर्ष 1952 में आयोजित ओलंपिक में कप्तानी भी उनकेहाथ में आ गई। दोनों ही ओलम्पिक में भारतीय टीम ने गोल्ड हासिल किया। अन्य देशों के खिलाड़ी गोल करने की उनकी जादुई कला से प्रभावित थे। विरोधी टीमें यह समझ नहीं पाती थी कि इस रणनीति से गोल कैसे किया जा सकता है। अपनी कला में माहिर खिलाड़ी बाबू केडी सिंह गेंद को पहले गोल पोस्ट पर मारते थे और वापस आने के बाद उसे जाल से फंसा देते थे।

हॉकी के लिए उठाया जिम्मा

बाबू केडी ने यूपी में हॉकी खेल को विकसित किया और खिलाडि़यों को आगे बढ़ाया। इसी का नतीजा था कि यूपी ने हॉकी के खेल में इंटरनेशनल खिलाड़ी देश को दिए। उनके नाम पर लखनऊ में स्टेडियम भी बनाया गया। इसमें स्पो‌र्ट्स हॉस्टल का संचालन भी होता है। 27 मार्च 1978 में उनके निधन के बाद उनके काम को उनके प्रशंसक और ओलंपिक खिलाड़ी स्व। जमनलाल ने आगे बढ़ाया था।

उपलब्धियों का सफर

- केडी सिंह बाबू को 1952 में व‌र्ल्ड का और 1953 में एशिया का बेस्ट स्पो‌र्ट्स मैन का खिताब मिला।

- यही वह समय था जब पहली बार किसी भारतीय खिलाड़ी को Helms Trophy प्रदान की गई।

- क्9भ्8 में केडी सिंह बाबू को भारत सरकार ने पद्मश्री से नवाजा।

- क्9ब्म्-ब्7 में अफगानिस्तान जाने वाली टीम के लिए केडी सिंह बाबू को पहली बार भारतीय टीम में जगह मिली।

- क्97ख् में म्यूनिक ओलम्पिक के लिए उन्हें भारतीय हॉकी टीम का कोच बनाया गया।

- केडी सिंह के नाम पर लखनऊ में एक शानदार स्टेडियम बनवाया गया।

- यूपी स्पो‌र्ट्स डायरेक्ट्रेट की देखरेख में साल में एक बड़ा टूर्नामेंट आयोजित किया जाता है।

- केडी सिंह बाबू ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ स्पो‌र्ट्स, रेलवे बोर्ड, रायफल एसोसिएशन ऑफ इंडिया और वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन कमेटी, उत्तर प्रदेश के मेम्बर रहे।

Posted By: Inextlive