दो बजते ही अल्ट्रासाउंड एक्स-रे पैथोलॉजी में बंद हो जाती है जांच दो बजे के बाद आया एक्सीडेंटल केस तो जांच करानी होगी बाहर स्टाफ की कमी से जूझ रहा कबीर चौरा मंडलीय अस्पताल

वाराणसी (ब्यूरो)मंडलीय अस्पताल कबीरचौरा में यह कैसी इमरजेंसी की सुविधा मिल रही है। दिन में दो बजे के बाद अगर कोई एक्सीडेंटल केस आता है तो सिर्फ मरहम, पट्टी की ही सुविधा मिलती है। यदि एक्सरे या अन्य किसी जांच की आवश्यकता महसूस हुई तो उसके लिए बाहर निजी पैथोलॉजी के अलावा कोई विकल्प नहीं है। क्योंंकि हास्पिटल में सभी तरह की जांच दो बजे के बाद बंद हो जाती हैं। ऐसे में इमरजेंसी में आए मरीजों को भारी फजीहत झेलनी पड़ती है। जबकि अस्पताल में बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हैं 24 घंटे इमरजेंसी सुविधा.

बाहर मची है लूट

मंगलवार को दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने कबीर चौरा स्थित मंडलीय हॉस्पिटल में मिलने वाली 24 घंटे इंमरजेंसी सेवा की पड़ताल की तो पग-पग पर मरीजों की पीड़ा नजर आयी। दो बज ही रहे थे कि परिजन स्ट्रेचर पर एक मरीज को लेकर इमरजेंसी पहुंचे। इमरजेंसी में बैठे डाक्टर ने उपचार किया और साथ में कुछ जांच कराने को कहा। जांच कहां कराई जाए के सवाल पर सीधे-सीधे बाहर जाने का फरमान सुना दिया गया। अंदर क्यों नहीं हो सकता के सवाल पर बताया गया कि यहां दो बजे के बाद पैथोलॉजी, अल्ट्रासाउंड या फिर एक्सरे सभी जगह जांच की सुविधा बंद हो जाती है। मजबूरी में मरीज के परिजन बाहर गए और निजी पैथोलॉजी में जांच कराकर लौटे। उनका कहना था कि डाक्टर साहब बाहर जांच के नाम पर तो लूट मची है.

सिर्फ एक ईएमओ की तैनाती

एसएसपीजी मंडलीय अस्पताल में दोपहर दो बजे के बाद इमरजेंसी से लेकर पूरे 325 बेड के अस्पताल के मरीजों की देखरेख की जिम्मेदारी एक ईएमओ (इमरजेंसी मेडिकल अफसर) पर होती है। इमरजेंसी में कोई गंभीर मरीज आ गया और उसी समय वार्ड में किसी मरीज की तबीयत बिगड़ गयी तो अकेला ईएमओ क्या करेगा। ऐसे में मरीजों के सामने संकट गहरा जाता हैं। कबीरचौरा मंडलीय अस्पताल में प्रतिदिन मरीजों की सांसत तो होती ही है साथ ही उनके तीमारदारों की भी फजीहत होती है.

तब परिजन हो जाते हैं उग्र

अक्सर देखने को मिलता है कि इलाज के अभाव में मरीज के परिजन मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। गरीब व लाचार मरीज बाहर का खर्च उठाने में अक्षम होते हैं। वे रेफर करने के बाद भी इन अस्पतालों के डाक्टर के सामने गिड़गिड़ाते हैं, लेकिन उनकी मदद करने वाला कोई नहीं होता.

स्टाफ की क्राइसिस है। अगर स्टाफ मिल जाए तो तीन सिफ्ट में इमरजेंसी सेवाएं देना कोई बड़ी बात नहीं है। मरीजों की सेवा के लिए इमरजेंसी में डाक्टर बैठते ही हैं। दो बजे के बाद जांच की सुविधा बंद कर दी जाती है।

डॉएसपी सिंह, प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक

Posted By: Inextlive