गुजरात से भारी संख्या में साड़ी मंगाकर लगाया जाता है बनारसी ठप्पा पर्यटकों की भीड़ का लाभ उठा रहे व्यापारी 50 करोड़ प्रतिदिन सूरत की साड़ी का कारोबार 500 रुपए में मंगाते हैं साड़ी 1000 से लेकर 2000 रुपए में बेचते हैं


वाराणसी (ब्यूरो)सिटी के शोरुम, मठ, गेस्ट हाउस और होटल्स में सजी तड़कती, भड़कती साडिय़ां जो देख रहे हैं वह बनारसी नहीं है बल्कि सूरत की साडिय़ां हैं। आपको यकीन नहीं होगा कि जब से विश्वनाथ धाम बना है बनारस के साड़ी मार्केट में सूरत की साडिय़ों का कब्जा हो गया है। हर गली, हर मुहल्ले में साडिय़ों की दुकान खुल गयी है। सूरत से सफेद साडिय़ां मंगाकर यहां पर रंगाई, धुलाई और पॉलिश करने के बाद बनारसी साड़ी का ठप्पा लगाकर बेचा जा रहा है.

50 करोड़ का कारोबार

सूरत से प्रतिदिन करोड़ों रुपए की साडिय़ां मंगाई जा रही है। सूरत की साडिय़ों का रेट कम होने की वजह से यहां के साड़ी कारोबारियों को इसका बिजनेस करने में काफी आसानी होता है। सूरत से 3 से 400 रुपए में मंगाकर यहां पर हजार रुपए में बेच रहे हैं। सभी सूरत की साडिय़ों पर बनारस साड़ी का टैग लगाकर बेचा जा रहा है। प्रतिदिन 50 करोड़ से अधिक का कारोबार हो रहा है.

बिहार तक डिमांड

सूरत की साडिय़ों ने अब सभी जगह अपनी पैठ बना ली है। शहर ही नहीं पूर्वांचल के जिले समेत यूपी से सटे बिहार तक के कारोबारी यहां से बल्क में सूरत की साडिय़ां लेकर बनारसी साड़ी का ठप्पा लगाकर बेच रहे हैैं। इसमें उनका दोगुना मुनाफा होता है और बनारसी साड़ी के नाम पर इसे कोई भी ले लेता है। कई दुकानदार तो 500 की सूरत की साडिय़ों को 2 से ढाई हजार में बेच देते हैं। जैसा ग्राहक वैसा दाम वसूल लेते हैं.

शहर में सूरत का कब्जा

शहर में जितनी भी साड़ी की दुकान देख रहे हैं सभी में सूरत की साडिय़ों का कब्जा है। सस्ती व टिकाऊ होने के कारण यहां के कारोबारी बल्क में सूरत से साडिय़ां मंगाते हैं। इसके बाद एक-एक साड़ी में यहां का टैग लगाते हंै। इसके बाद टसर सिल्क, रेशम की साड़ी बताकर कस्टमर्स को बेच देते हैं.

दशाश्वमेध सबसे बड़ा हब

सूरत की साडिय़ों का सबसे बड़ा बाजार है दशाश्वमेध से लेकर लक्सा तक। इन क्षेत्र में एक हजार से अधिक साड़ी की शॉप्स और शोरुम्स हंै। साड़ी कारोबारियों की मानें तो इन शोरुम्स में 80 परसेंट तक सूरत की साडिय़ों का कारोबार होता है। शोरुम में चमकती, दमकती साड़ी बनारसी साड़ी की तरह दिखती जरूर हैं लेकिन वह बनारसी नहीं होती। बनारसी साड़ी समझकर जब कस्टमर्स जाते हैं तो उन्हें बेच दिया जाता है।

ऐसे होता है खेल

यहां के कारोबारी सूरत से सफेद साडिय़ां मंगवाते हैं और जरूरत के हिसाब से रंगाई कराते हैं। इसके बाद धुलाई कराने के बाद पॉलिश कर ग्राहकों को बनारसी साड़ी के नाम पर बेच देते हैं। इसके चलते बनारस में साड़ी मैन्युफैक्चरिंग का कारोबार 30 परसेंट रह गया है, क्योंकि 70 परसेंट साड़ी कारोबारी ट्रेडिंग करने लगे हैं। इसके चलते यहां की बनारसी साड़ी का कारोबार धीरे-धीरे खत्म होने लगा है और सूरत का हावी लगा.

सरकार को इसे रोकना चाहिए अन्यथा बनारसी साड़ी का अस्तित्व बनारस से खत्म हो जाएगा.

शैलेश प्रताप सिंह, उपाध्यक्ष, हिन्दू बुनकर कल्याण समिति

यहां के मार्केट में सूरत की साडिय़ां बेची जा रही हैं। बड़े-बड़े कारोबारी शोरुम्स से लेकर दुकानों में सूरत की ही साड़ी सप्लाई कर रहे हैं.

रोहन कुमार, साड़ी कारोबारी

बनारस के ही कारीगर मंदी के दिनों में सूरत पलायन कर गए। यहां की कारीगरी वहां पर चली गयी, अब उसका सूरत के कारोबारी लाभ उठा रहे हैं.

घनश्याम जायसवाल, संरक्षक, जरी उद्योग व्यापार मंडल

Posted By: Inextlive