आधी रात को होलिका दहन के साथ रंगोत्सव का आगाज रात में ही निकली होलियारों की टोली जमकर की मौज मस्ती


वाराणसी (ब्यूरो)भुक्त, मुक्त, गुप्त और सुप्त परम्पराओं में रची-बसी काशी में रविवार की रात अग्नि की लपटों में होलिका दहन हुआ। होलिका को स्वाहा करती लपटों को लोगों ने नमन किया और इसके साथ ही रंग, अबीर-गुलाल बरस पड़ा। नगर में विभिन्न स्थानों पर होलिका दहन मुहूर्त काल में हुआ। चढ़ती रात के साथ होलिका दहन का क्रम भी तेज होता गया। हालांकि होलिका दहन का मुहूर्त तो रात 11:13 बजे से रात 12:37 बजे तक ही था, लेकिन शहर और देहात के कई इलाकों में होलिका दहन का क्रम इसके बाद ही शुरू हो सका.

विधि-विधान से पूजन

दहन से पूर्व होलिका का विधि विधानपूर्वक पूजन किया गया। वैदिक मंत्रोच्चार के बीच होलिका को लाल सूत से बांधा गया। बतासा, गुड़, तिल, जौ और मिश्रित जडिय़ां होलिका में डाली गई। पंडित ने मंत्र पढ़ा और पूजा शुरू हो गयी। शुभ मुहूर्त में होलिका में आग लगायी गयी और हर ओर होली है हैप्पी होली का शोर गूंजने लगा।

लोगों ने की परिक्रमा

जीवन की मंगल कामना संग सुख-समृद्धि की प्राप्ति तथा रोग-शोक से मुक्ति की लालसा लिए लोगों ने धूं-धूं कर होलिका को जलाती अग्नि की लपटों को नमन करते हुए परिक्रमा की। परिक्रमा के साथ उबटन को इसमें होम कर दिया। होलिका की राख को बहुतेरे अपने आंचल और कपड़ों में गठिया कर घर भी ले गए। इसके साथ ही अबीर-गुलाल संग रंग उडऩे का सिलसिला शुरू हो गया.

ईको फ्रेंडली मूर्तियां

ढोल-नगाड़ा पिटते हुए होली की टोलियां त्योहार के हुलास की मुनादी करने लगे। नगर में कई स्थानों पर होलिका की मूर्ति भी लगाई गई थी। ईको फ्र ंडली होलिका भी आकर्षण का केंद्र रही। हरिश्चंद्र रोड, चेतगंज, भोजूबीर, जवाहर नगर एक्सटेंशन, पांडेयपुर, आशापुर, लंका, साकेतनगर आदि इलाकों में गोहरों से तैयार की गई होलिका का दहन किया गया। नगर के पक्के महालों में आधी रात के बाद होलिका दहन की शुरु आत हुई। दशाश्वमेध, लक्सा, महमूरगंज, कमच्छा, विनायका, रविंद्रपुरी, दुर्गाकुंड, लंका, सामनेघाट, सुंदरपुर, मंडुवाडीह, चांदपुर, मुड़ैला, लहुराबीर, जगतगंज, तेलियाबाग, चौकाघाट, अंधरापुर, नदेसर, कचहरी सहित वरुणापार के इलाकों में भी होलिका दहन के बाद होली का हुल्लड़ शुरू हो गया.

भोजपुरी गीतों पर मस्ती

होली में हम ना छोड़ब, होली खेले मसाने में., गाल छू के गोड़ लागे देवरा समेत भोजपुरी गीतों पर रात बारह बजे के बाद रंग लगाने और हुल्लड़बाजी का सिलसिला शुरू हो गया।

चेहरे को नुकसान

होली पर चेहरे पर रंग लगाए तो संभलकर लगाएं, क्योंकि आंख में पडऩे पर आंख लाल हो सकती है और चेहरा भी बदरंग हो सकता है। लोग चेहरे पर रंग लगाने की जगह सिंथेटिक्स कलर लगा देते हैं जिससे चेहरा बदरंग हो जाता है। महीनों तक स्किन में खुजली और चकत्ता पड़ जाता है। इसके चलते काफी दिक्कत होती है। खासकर हरा काई रंग चेहरे पर लगाने से बचें। इसका केमिकल काफी खतरनाक होता है.

आंख और चेहरा बचाकर होली खेलें। स्किन खराब होने पर काफी समय लग जाता है ठीक होने में। गुलाल से होली खेलने पर त्वचा सुरक्षित रहता है.

डॉमुकुंद श्रीवास्तव, स्किन रोग विशेषज्ञ

Posted By: Inextlive